हत्या, अपहरण जैसे अपराधों में भी जांच नहीं कर रही यूपी पुलिस: हाईकोर्ट

डीजीपी एसएसपी कन्नौज अदालत में तलब प्रयागराज।उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा आपराधिक मामलों की विवेचना में लापरवाही से नाराज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी यूपी और कन्नौज के एसएसपी को तलब कर लिया है। हाईकोर्ट ने डीजीपी से पिछले एक साल के दौरान दर्ज हुए उन मुकदमों की सूची तलब की है जिनमें विवेचना अभी भी

डीजीपी एसएसपी कन्नौज अदालत में तलब

‌ ‌‌‌‌प्रयागराज।‌‌उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा आपराधिक मामलों की विवेचना में लापरवाही से नाराज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी यूपी और कन्नौज के एसएसपी को तलब कर लिया है। हाईकोर्ट ने डीजीपी से पिछले एक साल के दौरान दर्ज हुए उन मुकदमों की सूची तलब की है जिनमें विवेचना अभी भी लंबित है।हाईकोर्ट कोर्ट ने उनको यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि किस कारण से इन गंभीर अपराधों में विवेचना पूरी नहीं हो सकी है। इसके लिए उन्होंने जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ क्या कार्रवाई की है। यदि कार्रवाई नहीं की गई है तो उसका भी कारण स्पष्ट करें।

‌कन्नौज के धर्मपाल सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने कहा कि आश्चर्यजनक है कि हत्या जैसे संवेदनशील मामले में भी ठीक से जांच नहीं की जा रही है। वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं कि विवेचना ठीक से नहीं हो रही है। पीठ ने कहा कि हमारी नजर में इसके लिए एसएसपी कन्नौज से लेकर के डीजीपी तक जिम्मेदार है, क्योंकि उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों के कार्यों की निगरानी करेंगे।

‌धर्मपाल के मामले में कहा गया कि उसने कन्नौज के विश्वगढ़ थाने में 22 जुलाई 2018 को हत्या, हत्या का प्रयास, मारपीट बलवा आदि धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। लेकिन इस मामले में पुलिस विवेचना नहीं कर रही है। कोर्ट पीठ ने प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया था।‌पीठ ने कहा कि सरकार की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे को देखने से पता चला कि वास्तव में इतने गंभीर मामले में पुलिस ने कोई जांच नहीं की है। इस पर नाराजगी जताते हुए पीठ  ने कहा की पुलिस हत्या अपहरण और डकैती जैसे गंभीर अपराधों में भी प्रभावी तरीके से विवेचना नहीं कर रही है। पीठ ने डीजीपी से पूछा है कि गंभीर मुकदमों में त्वरित और प्रभावी विवेचना सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने क्या कार्रवाई की है। मामले अब अगली सुनवाई 5 मार्च को होगी।

‌गवर्नमेंट प्रेस के बजाए प्राइवेट से क्यो छपवाई जा रही किताबें हाईकोर्ट‌‌

प्रयागराज। ‌इलाहाबाद  हाईकोर्ट ने गवर्नमेंट प्रेस (राजकीय मुद्रणालय) होने के बावजूद किताबें प्राइवेट प्रेस से छपवाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए जनहित याचिका कायम की है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि किताबें राजकीय मुद्रणालय से न छपवाकर प्राइवेट प्रकाशन से महंगे दाम पर क्यों छपवाई जा रही हैं। जबकि सरकारी नियम के तहत किताबें राजकीय मुद्राणालय में ही छपनी चाहिए।  पुस्तकों का प्रकाशन नहीं कराया जा रहा है।कोर्ट ने मुख्य सचिव को कानून की किताबों के सरकार द्वारा नियमित प्रकाशन, वितरण एवं बिक्री के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।‌ प्लयाचिका की सुनवाई 23 मार्च  को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने विनोद कुमार त्रिपाठी की विशेष अपील की सुनवाई के दौरान उठे सवालों पर जनहित याचिका कायम करते हुए दिया है। अपील की सुनवाई अलग से पांच मार्च को होगी।

‌बहस के दौरान दोनों पक्षों की तरफ  से अधिक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किताबों में उपबंधों में अंतर देख कर पीठ  ने राजकीय मुद्रणालय प्रयागराज के निदेशक को तलब किया। उन्होंने बताया कि राजकीय मुद्रणालय कानूनी किताबें प्रकाशित कर रहा है और बिक्री के लिए काउंटर भी खोला है। किताबों की छपाई नियमित होने के बारे में संतोषजनक उत्तर नहीं मिला,जबकि सरकार से नियमित छपाई किए जाने के निर्देश है।‌सरकारी किताबें उपलब्ध न होने के कारण अधिवक्ता प्राइवेट प्रकाशन से महंगी किताबें खरीद कर कोर्ट में पेश कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि वे ने कानूनी पुस्तकों की छपाई प्राइवेट कंपनियों को सौंप दी है। पीठ  ने सरकार को सरकारी प्रेस से नियमित प्रकाशन करने का निर्देश देते हुए ब्यौरा पेश करने के लिए कहा है।‌

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