कुपोषण से जंग लड़ता एक बेबस परिवार

बस्तीः उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कुपोषण एक बड़ी समस्या है और समस्या से निपटने के लिए सरकार करोड़ों का बजट खर्च कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों के विपरीत है। बस्ती जिले में आज एक परिवार कुपोषण की बीमारी की वजह से ना सिर्फ बर्बाद हो गया बल्कि अब इस

बस्तीः उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कुपोषण एक बड़ी समस्या है और समस्या से निपटने के लिए सरकार करोड़ों का बजट खर्च कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों के विपरीत है। बस्ती जिले में आज एक परिवार कुपोषण की बीमारी की वजह से ना सिर्फ बर्बाद हो गया बल्कि अब इस परिवार को जीने की इच्छा तक नहीं रह गई है इस परिवार के मुखिया इच्छा मृत्यु की मांग की है। कप्तानगंज थाना क्षेत्र के ओझा गंज गांव में रहने वाले हरीश चंद्र मुफलिसी में जीवन जी रहे हैं और इनका परिवार कुपोषण की वजह से तिल तिल कर मौत के आगोश में होता जा रहा है।

जानकारी के अनुसार हरिश्चंद्र की दो बेटियां और एक बेटे की कुपोषण की वजह से मौत हो चुकी है। हरिश्चंद्र से जब हमने बात की तो उसने बताया कि उसकी 2 और 6 महीने की बेटी और 15 दिन के बेटे की कुपोषण की बीमारी को लेकर मृत्यु हो चुकी है, हाल ही में उसकी पत्नी की भी बीमारी के बाद मौत हो गई और अब वह अपनी 5 साल की एक बेटी को लेकर परेशान है जिसे भी कुपोषण है और वह लाल निशान पर पहुंच गई है, हरिश्चंद्र ने कहा कि वह मजदूरी कर के अपने परिवार का पेट पालता है लेकिन पिछले 3 महीने से उसे कोई काम नहीं मिला जिस वजह से उसके सामने अब मौत को गले लगाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है,

परिवार मुफलिसी का जीवन जीने को मजबुर है, आज उसके सामने ऐसे हालात है की परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है, हरिश्चंद्र का पूरा परिवार कुपोषण की भेंट चढ चुका है और अब मात्र परीवार में बच्ची एक बेटी भी मौत के कगार पर खड़ी है, और सरकारी अफसर कागज में कुपोषण से ऐसे लड़ रहे जैसे अब उनके फाइलों में कोई भी कुपोषण बच्चा नहीं है और गरीब परिवार में ऐसे बच्चो को सरकार की सभी सुविधा पहुंचाई जा रही है। लेकिन शायद कुपोषण को लेकिन शायद कुपोषण को लेकर चलती का रही योजनाएं हरिश्चंद्र जैसे लोगो के लिए नहीं है और इसी का नतीजा है कि एक परिवार कुपोषण की बीमारी से खत्म हो रहा

जब की स्वास्थ्य महकमे को इस बात की आज तक जानकारी तक नहीं हो पाई। वहीं इस मामले को लेकर जब हमने एडिशनल डायरेक्टर हेल्थ सीके शाही से बात करने का प्रयास किए तो उनका जवाब सुनकर आपको लगेगा जैसे साहब को इस कुर्सी पर जबरदस्ती बैठा दिया गया है, भले ही सरकार एडी हेल्थ को लाखो की सैलरी से रही है लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि कुपोषण किस चिड़िया का नाम है, सीके शाही ने इस बाबत कहा को आप मुझसे मत पूछिए क्यूं की यह मेरा विभाग नहीं है और मुझे इस बात की जानकारी भी नहीं है। मानवाधिकार आयोग ने लिया सज्ञान,स्वास्थ्य विभाग व प्रशादन स्तब्ध।

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