एलडीए के बिना नक्शा पास बना डाली संजय नाग ने अवैध मार्केट

एलडीए के बिना नक्शा पास बना डाली संजय नाग ने अवैध मार्केट


बिना नक्शा पास के अवैध कंपलेक्स तैयार

एलडीए के जोन 4 में केशव नगर पुलिस चौकी बगल में काला के प्लाट में कई दिनो से खाली प्लॉट पर निर्माण कार्य चल रहा था। बता दें कि इस प्लॉट पर संजय नाग कमर्शियल मार्केट बना रहे हैं जबकि एलडीए की तरफ से कमर्शियल दुकान निकालने का नक्शा नहीं पास हुआ है। 

आलम यह है कि यह सब तब है जब मामला एलडीए के संज्ञान में है जी हां बता दें कि स्थानीय एक्स ई एन केके बंसला, जेई संजय शुक्ला व जेई ज़ाकिर अली वहां के दायरे में यह क्षेत्र आता है समस्त जानकारी उनके संज्ञान में होने के बाद भी काम धड़ल्ले से धुआंधार चल रहा है।

बिना नक्शे के बन रही कमर्शियल के काम्प्लेक्स , एलडीए की कार्रवाई ठंडे बस्ते में

सीतापुर रोड केशव नगर पुलिस चौकी के पास के पास बिना कमर्शियल नक्शा पास करवाए बनाई जा रही काम्प्लेक्स के निर्माण का सिलसिला जल्दी से अभी भी जारी है और लखनऊ विकास प्राधिकरण है कि मौन है।

 हालांकि इस मामले को लेकर जॉन के जेल संजय शुक्ला से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस मामले पर कार्रवाई कर दी गई है और निर्माणकर्ता को नोटिस भेज दिया गया है लेकिन समाज अब यह नहीं आता कि नोटिस भेजने के बाद भी निर्माण ज्यों का त्यों चल रहा है आखिर इसके पीछे क्या वजह है नोटिस भेजी गई है या इसके पीछे कुछ और ही दाल पक रही है क्योंकि इस मामले को लेकर दोबारा संजय शुक्ला से या फिर बताया गया कि नोटिस भेजने के बाद भी निर्माण जो करते हो जारी है उसके बाद भी किसी भी तरह के कोई कार्यवाही नहीं की गई और निर्माण का सिलसिला ज्यों का त्यों जारी है 

हालांकि एलडीए को चाहिए था कि कंपलेक्स के मालिक संजय नाग को बार नोटिस दिया जाए कि वह इमारत के निर्माण कार्य को रोक दे और पहले नक्शा पास करवा ले लेकिन इमारत का निर्माण कार्य नहीं रोका इसके पीछे की पूरी वजह एलडीए है अगर उसने पहले ही सख्त एक्शन लिया होता तो संजय नाथ निर्माणकर्ता की ऐसी हिम्मत ना पड़ती।

सूत्रों के मुताबिक लोग पहले विभाग की आंखों में धूल झोंकने के लिए रिहायशी इमारत का नक्शा पास करवा लेते हैं और फिर ऊंची-ऊंची कमर्शियल इमारतें खड़ी कर दी जाती हैं। ऐसा करके न केवल सरकार को नक्शा फीस के रूप में जमा होने वाले रेवेन्यू का नुकसान हो रहा है, बल्कि नियमों की भी धज्जियां उड़ रही हैं।

About The Author: Swatantra Prabhat