वेस्ट डी कंपोजर के जरिए पराली बनेगी जैविक खाद किसानों को मिलेगी राहत

यह वेस्ट डी कंपोजर पराली को गला देता है। जिसके बाद जमीन में उसकी जैविक खाद तैयार हो जाती है।


महराजगंज/ रायबरेली

 हर वर्ष अक्टूबर-नवंबर महीनों में पराली जलाने के बेहद अधिक मामले सामने आते हैं। सरकार और प्रशासन द्वारा हर संभव प्रयास किए जाते हैं।

 लेकिन पराली की समस्या का समाधान नहीं हो पाता है। यहां तक कि किसानों पर मुकदमे तक दर्ज किए जाते हैं, लेकिन कोई उपाय नहीं मिला। ऐसे में अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा एक ऐसा समाधान खोजा गया हैं। कि जिसमें बिना खर्चे के पराली को न जला कर खाद के रूप में तब्दील किया जा सकता है, इस प्रणाली को जैविक खाद में बदलने वाले वेस्ट डी कंपोजर का नाम दिया गया है।


आपको बता दें कि किसानों की धान की पराली न जलाने को लेकर सरकार द्वारा कृषि अपशिष्ट अपघटन के तहत एक बोतल से 30 दिन में 1 लाख मैट्रिक टन जैव अपशिष्ट को अपघटित करके खाद तैयार की जा सकती है। जिसके तहत जहां किसान अपनी धान की पराली हर वर्ष खेतों में जलाते थे, जिसके द्वारा वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न होती थी, जिस को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार द्वारा वेस्ट डी कंपोजर किसानों को वितरण किया जा रहा है।

 आपको बताते चलें कि महराजगंज ब्लॉक के 53 ग्राम सभाओं में धान की पराली न जलाने को लेकर सचिवों द्वारा व ग्राम प्रधान द्वारा हर ग्राम सभा के किसानों को वेस्ट डी कंपोजर का वितरण किया जा रहा है। इस वेस्ट डी कंपोजर से बना घोल धान की पराली को गला देता है। इतना ही नहीं इस वेस्ट डी कंपोजर के जरिए जैविक खाद भी उत्पन्न की जा सकती है। जो मिट्टी में उर्वरक की क्षमता को बढ़ाता है। इसके प्रयोग से किसानों को धान की पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

यह वेस्ट डी कंपोजर पराली को गला देता है। जिसके बाद जमीन में उसकी जैविक खाद तैयार हो जाती है। उत्तर प्रदेश में पराली को न जलाने की रोकथाम को लेकर शासन प्रशासन की तरफ से कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा रेड जोन और ऑरेंज जोन निर्धारित किए गए हैं। जहां  पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। वहीं प्रशासन द्वारा सेटेलाइट के जरिए भी निगरानी की जाती है। और हर क्षेत्र में टीम गठित कर घटनाओं पर पैनी नजर रखी जाती है

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