यू,पी, के सीतापुर जनपद में बढ़ा प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का कारोबारमत्स्य विभाग हुआ निष्क्रिय
कोरॉना से कम खतरनाक नहीं है प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का सेवन
सीतापुर अटरिया बाजारों में बिक रही अवैध मांगुर मछली धृतराष्ट्र बना मत्स्य विभाग
सीतापुर सिधौली अटरिया बिसवां सहित समूचे सीतापुर जनपद में मत्सय मत्स्य विभाग की मिलीभगत से हर छोटी-बड़ी बाजारों में हो रहा प्रतिबंधित मछली का कारोबार वही विभाग कुम्भकर्णी नींद में सोया हुआ है वहीं तालाब से मांगुर मछली निकाले जाने की सूचना पर जिला प्रसाशन ने कठोर कार्रवाई करने के निर्देश मत्स्य विभाग को देने चाहिए
पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है विदेशी थाई मांगुर पालने वाले मछली पालकों और बिक्री करने वाले व्यापारियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने के लिये सरकार ने भले ही फरमान जारी कर रखा हो लेकिन उत्तर प्रदेश में आज भी मांगुर मछलियों का पालन और व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है। जबकि एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) ने 22 जनवरी को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए है, जिसमें यह कहा गया हैं कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर निरीक्षण करें और जहां भी इस मछली का पालन को हो रहा है
उसको नष्ट कराया जाए। निर्देश में यह भी कहा गया हैं कि मछलियों और मत्स्य बीज को नष्ट करने में खर्च होने वाली धनराशि उस व्यक्ति से ली जाए जो इस मछली को पाल रहा हो। इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्धारा वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। यह मछली मांसाहारी है यह इंसानों का भी मांस खाकर बढ़ जाती है। ऐसे में इसका सेवन सेहत के लिए भी घातक है इसी कारण इस पर रोक लगाई गई थी।
सरकार ने भले ही मांसाहारी मांगुर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा कर पूरे भारत में प्रतिबंधित कर दिया हो लेकिन मतस्य विभाग की लापरवाहियों के चलते मछलियों का पालन भी हो रहा है और बाजारों में खुले आम व्यापार भी हो रहा है, लेकिन मछली पालक व्यापार में अधिक मुनाफा कमाने के लिये प्रतिबंधित मछलियों का पालन कर इस मछली से इंसानों को होने वाली कैंसर और भयानक बीमारियों को भी परोस रहे हैं। अब देखना ये है कि क्या मत्सय विभाग इन मछली व्यापारियों और पालकों पर अपना शिकंजा कसकर रोक लगा पाता है या नहीं।
मांगुर मछली पर क्यों लगी रोक?
पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है विदेशी थाई मांगुर पालने वाले मछली पालकों पर अब कार्रवाई हो सकती है। एनजीटी (राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण) ने 22 जनवरी को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए है, जिसमें यह कहा गया हैं कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर निरीक्षण करें और जहां भी इस मछली का पालन को हो रहा है उसको नष्ट कराया जाए।
निर्देश में यह भी कहा गया हैं कि मछलियों और मत्स्य बीज को नष्ट करने में खर्च होने वाली धनराशि उस व्यक्ति से ली जाए जो इस मछली को पाल रहा हो।
इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। यह मछली मांसाहारी है यह इंसानों का भी मांस खाकर बढ़ जाती है ऐसे में इसक सेवन सेहत के लिए भी घातक है इसी कारण इस पर रोक लगाई गई थी।” ऐसा बताते हैं, उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक डॉ हरेंद्र प्रसाद।
आगे हरेंद्र बताते हैं, ”इसका पालन बाग्लादेश में ज्यादा किया जाता है। वहीं से इस मछली को पूरे देश में भेजा जाता है। कई बार में छापे भी मारते है पर कोई कानून न होने की वजह से काई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है। यह मछली जहां मिलती है वहां इसको मार कर गाड़ दिया जाता है।”
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में थाई मांगुर के पालन, विपणन,संर्वधन पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन इसके बावजूद भी मछली मंडियों में इसकी खुले आम बिक्री हो रही थी।
थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड एवं आयरन के तत्व पाए जाते है।