तालाब के हिस्से को पाट कर निर्माण करा रहा बाबू कबाड़ी

सैधरी ग्राम पंचायत का है मामला

निर्माण रोकने की बजाए लेखपाल सिर्फ मुकदमा लिखवाने की कर रहे बात

लखीमपुर-खीरी। तहसील सदर क्षेत्र में तालाबों का पटान पर न केवल अवैध कब्जा किया जा रहा है बल्कि उस पर निर्माण कार्य भी कराया जा रहा है। और बड़ी बात है कि यह सब कारनामा लेखपालों के संज्ञान में चल रहा है। ऊपरी कमाई कर लेखपाल साहब चुप्पी साधे हैं। जब उन्हें बताया जाता है तो वह एक ही रटा-रटाया जवाब देते हैं ‘‘जल्द ही मुकदमा दर्ज कराया जाएगा’’। वहीं लोगों का कहना है कि लेखपाल साहब मुकदमा दर्ज कराना दूर उल्टे भूमाफिया को ही कोर्ट चले जाने की सलाह देते हैं ताकि कागजातों में फेरबदल कर भूमाफिया के अवैध कब्जे को जायज करार दिला सकें। 
 
  यह मामला है तहसील सदर की ग्राम पंचायत सैधरी का। निघासन रोड पर गौशाला के पास स्थित तालाब के कुछ हिस्से पर एक दबंग कब्जा करके अवैध निर्माण करा रहा है। आस-पास के लोगों ने बताया कि अवैध कब्जा करने वाले का नाम बाबू कबाड़ी है। वह ढखेरवा का रहने वाला है। कुछ समय पहले उसने तालाब के पास ही जमीन खरीदी थी। इसके बाद क्षेत्रीय लेखपाल से सांठ-गांठ करके जमीन के करीब स्थित तालाब के कुछ हिस्से का पटान शुरू करा दिया और अब बाकायदा उस पर निर्माण कार्य करा रहा है। इस मामले पर जब भी क्षेत्रीय लेखपाल से बात की जाती है तो वह जल्द आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। सबसे बड़ी बात है कि वह बाबू कबाड़ी के निर्माण कार्य को रुकवाने की भी जहमत नहीं उठा रहे। लोगों का यहां तक कहना है कि उक्त लेखपाल भूमाफिया को किसी सरकारी कार्यवाही से पहले ही कोर्ट चले जाने की हिदायत दी जा रही है ताकि भूमाफिया को कोर्ट में मजबूत करके अवैध कब्जे को जायज कब्जे में बदलवाया जा सके। 
 
  गौरतलब रहे कि वर्ष 2017 में योगी सरकार ने सरकारी जमीनों से कब्जा हटवाने के लिए एक एंटी भूमाफिया सेल का गठन किया था। इस सेल का काम आम लोगों या तहसील के जिम्मेदारों द्वारा दी की जानकारी के आधार पर अवैध कब्जे को हटवाना था। शायद सरकार को भी यह अहसास था कि सरकारी जमीनों पर कब्जा तहसील के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मिलीभगत से होता है। हालांकि समय के साथ-साथ यह सेल भी सफल साबित नहीं हुई। तहसील के जिम्मेदारों ने योगी सरकार की नीति को फेल करते हुए अपना गोरखधंधा जारी रखा। नतीजा तालाब, जंगल व कई सार्वजनिक जगहों के रकबे न केवल घटते जा रहे हैं बल्कि कुछ का तो नामोनिशान तक मिट गया है।

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