14वें लोकसभा चुनाव - नही चला एनडीए का इंडिया शाइनिंग 

(नीरज शर्मा'भरथल')
 
13वें लोकसभा चुनावों के बाद गठित हुई एनडीए की सरकार भारतीय इतिहास की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। इतने ज्यादा मंत्री होने के कारण उनके मंत्रिमंडल को जंबो मंत्रिमंडल भी कहा जाता था। प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी की नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इतने बड़े गठबंधन के बावजूद उनकी सरकार में कभी किसी दल ने कोई विवाद नहीं किया। वाजपेयी के इस बार कुर्सी संभालने के लगभग 2 महीने बाद ही हरकत उल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने एक बड़ी घटना को अंजाम दिया। आतंकवादियो ने 24 दिसंबर 1999 की शाम साढ़े चार बजे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट संख्या आईसी 814 काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से नई दिल्ली के लिए रवाना होने के कुछ समय बाद हाइजैक कर लिया। फ्लाइट टेकऑफ के एक घंटे बाद लगभग शाम के पांच बजे जैसे ही विमान भारतीय वायु क्षेत्र में दाखिल हुआ, विमान में यात्री के तौर पर सवार हुए अपहरणकर्ताओं ने हथियारों के बल पर फ्लाइट को कब्जे में ले लिया और उसे पाकिस्तान ले जाने की मांग रखी।
 
अपहरण के समय इस विमान में 176 पैसेंजर समेत क्रू के कुल 15 सदस्‍य भी थे। विमान शाम छह बजे अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरा और फिर कुछ समय बाद लाहौर के लिए रवाना हो गया। इसके बाद विमान रात आठ बजकर सात मिनट पर लाहौर में लैंड हुआ। फिर अगले दिन सुबह के वक्त अपहृत विमान लाहौर से दुबई की तरफ रवाना हो गया। वहां रिफयूलिंग के बदले आतंकियों ने 27 यात्रियों को रिहा किया। जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। इस बीच आतंकियों ने रूपिन कात्याल नाम के एक यात्री की हत्‍या भी कर दी थी। उसका पार्थिव शरीर भी दुबई एयरपोर्ट पर उतारा गया। इसके बाद अपहरणकर्ता विमान को अफगानिस्‍तान के कंधार ले गए। वहां तकरीबन साढ़े आठ बजे विमान कंधार में लैंड हुआ। जैसे जैसे समय गुजर रहा था भारत सरकार की मुश्किलें बढ़ रही थीं। पूरी दुनिया की नजर इस घटना पर थी। यात्रियों के परिजन और कुछ संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच अपरहरणकर्ताओं ने अपने 36 आतंकी साथियों की रिहाई और 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती की मांगी।
 
भारत सरकार ने आतंकियों के साथ बातचीत शुरू की, हाइजैक विमान में भारतीय यात्रियों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस और इटली जैसे अन्य देशों के नागरिक भी सवार थे। आखिरकार तीन आतंकवादियों को रिहा करने के बदले विमान और यात्रियों की आजादी के समझौते पर सहमती बनी। भारत की जेलों में बंद मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद को बाहर निकाला गया। विदेश मंत्री जसवंत सिंह विशेष विमान से इन तीनों आतंकियों को अपने साथ लेकर कंधार पहुंचे। इन तीनों को कंधार में ही रिहा गया। 31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया। इसी सरकार के कार्यकाल में एक और बड़ी घटना को आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। 13 दिसंबर 2001 के दिन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैय्यबा नामक कुख्यात आतंकवादी गुटों के पाँच आतंकवादियों ने देश की संसद पर आतंकी हमला कर दिया। दिल्ली पुलिस और सुरक्षा बलों कि मुस्तैदी से कुछ ही मिनटों में इस हमले को असफल कर पांचों आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस हमले में नौ  सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और 18 घायल हुए। सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर खेल कर आंतकियों को संसद भवन की मुख्य इमारत में घुसने से रोक दिया अन्यथा नुकसान ज्यादा होता।
 
एनडीए सरकार के इस कार्यकाल की मुख्य उपलब्धियां रही आर्थिक सुधारों को पेश करना। 2004 तक उनके कार्यकाल में भारत की जीडीपी ग्रोथ की बढ़ोतरी 8 प्रतिशत तक हुई। महंगाई दर 4 प्रतिशत से कम और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई। अटल विहारी वाजपेयी की सरकार ने प्राइवेट बिजनेस और इंडस्ट्री को बढ़ावा देते हुए सरकार की भागीदारी को कम किया। इसके अलावा वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम शुरू करना, इंडियन टेलीकॉम इंडस्ट्री में उछाल, सर्व शिक्षा अभियान, अन्य देशों से वैश्विक स्तर के संबंधो को मजबूत करना, स्वर्णिम चतुर्भुज और ग्राम सड़क योजना, विज्ञान और अनुसंधान की योजनाए एवंम नए विभागों का गठन इस सरकार की मुख्य उपलब्धियां रही। एनडीए की इस सरकार का कार्यकाल 2004 में पूरा हुआ। 20 अप्रैल से 10 मई के बीच चार चरणों में चौदहवें लोकसभा चुनाव संपन्न हुए। चुनाव से पहले सरकार के इंडिया शाइनिंग, भारत उदय और फील गुड नारे पूरे देश में छा गए। लाल कृष्ण आडवाणी एक बार फिर रथ पर सवार हुए और भारत उदय रथयात्रा निकाली। लेकिन चुनाव हुए तो नतीजे राजनीतिक पंडितों को भी हैरान करने वाले सामने आए। भाजपा को वो सफलता नही मिली जिसकी उम्मीद सब लगाए बैठे थे। इन चुनावों में कुल 5435 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जिनमें 2385 निर्दलीय प्रत्याशी थे। कांग्रेस ने 417 उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें 145 निर्वाचित हुए थे। उसे 26.53 प्रतिशत वोट मिले। वहीं भाजपा ने 364 उम्म्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से 138 चुने गए।
 
भाजपा को 22.16 प्रतिशत वोट मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 34 में से दस तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 69 में से 43 उम्मीदवार जीते थे। बहुजन समाज पार्टी ने सबसे अधिक 435 उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से 19 ही निर्वाचित हुए जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के 32 में से नौ प्रत्याशी चुने गए थे। एनडीए को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर यूपीए का गठन किया। यूपीए के गठन में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी और सीपीएम के दिवंगत महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की अहम भूमिका रही। विपक्षी दलों को कांग्रेस के साथ लाने का जिम्मा हरकिशन सिंह सुरजीत ने उठाया था। 2004 में यूपीए गठन के समय कांग्रेस को 14 पार्टियां ने समर्थन दिया। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय हुआ। 22 मई 2004 के दिन यूपीए की ओर से डाक्टर मनमोहन सिंह ने भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
 
 
 
 
 
 
 
 

About The Author: Abhishek Desk