कानपुर सीट पर मुकाबला रोचक होने की उम्मीद 

कांग्रेस और भाजपा दोनों में सीधा  मुकाबला, पिछले दो चुनाव से भाजपा का है कानपुर सीट पर कब्जा, उससे  पहले श्रीप्रकाश जायसवाल ने लगाई थी हैट्रिक 

(जितेन्द्र सिंह विशेष संवाददाता )
कानपुर। कानपुर नगर की लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक स्थिति में हैं यहां कांग्रेस सपा गठबंधन का मुकाबला सीधे भारतीय जनता पार्टी के बीच होता दिखाई दे रहा है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में हैं। लेकिन वह सिर्फ वोट काटती नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी से रमेश अवस्थी और गठबंधन से आलोक मिश्रा मैदान में हैं। दोनों प्रत्याशी अच्छे क्वालीफाइड हैं। 
 
कानपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ने प्रतिनिधित्व किया है और कम्युनिस्ट पार्टी से सुभाषिनी अली भी सांसद रह चुकीं हैं। लेकिन सुभाषिनी अली पर यह आरोप है कि उनके सांसद रहते कानपुर कानपुर के उधोग बंद होते चले गए। क्यों कि कम्युनिस्ट की पालिसी के तहत कानपुर के उधोगों में श्रमिकों की हड़तालें शुरू होने लगीं और कानपुर के उधोग बंद होते चले गए।
 
अगर हम पिछले समय की बात करें तो कानपुर सीट से तीन बार भारतीय जनता पार्टी के जगतवीर सिंह द्रोण सांसद रह चुके हैं। इसके बाद 1999 में कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने जगतवीर सिंह द्रोण को हराकर कानपुर की सीट पर कब्जा किया था। श्रीप्रकाश जायसवाल तीन बार सांसद चुने गए। केन्द्र में मंत्री भी रहे। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब मोदी लहर चली थी तो श्रीप्रकाश जायसवाल के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी ने मुरली मनोहर जोशी को चुनाव मैदान में उतारा और वह जीत गए। हालांकि क्षेत्रीय जनता मुरली मनोहर जोशी को हराने के बाद भी खुश नहीं थी। उनपर बाहरी होने का आरोप लगा।
 
2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने श्रीप्रकाश जायसवाल के मुकाबले विधायक और राज्य सरकार में मंत्री रहे सत्यदेव पचौरी को चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा का ब्राह्मण कार्ड इस बार भी चल गया। और सत्यदेव पचौरी फिर चुनाव जीत गए। 2024 के चुनावों में कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से ब्राह्मण कार्ड खेला है और आलोक मिश्रा को चुनाव मैदान में उतार दिया। इधर भारतीय जनता पार्टी ने रमेश अवस्थी को चुनाव मैदान में उतारा है।
 
रमेश अवस्थी मूलतः फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं। और उनपर बाहरी होने का भी तंज विपक्ष द्वारा कसा जा रहा है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के विधायक और स्थानीय कार्यकर्ता पूरी तरह से जनता को यह समझाने में लगे हैं कि रमेश अवस्थी बहरी नहीं हैं वह कानपुर में हमेशा पार्टी कार्यक्रम में शामिल होते रहे हैं। हालांकि काफी समय से वह फर्रुखाबाद से कानपुर में ही वसे हुए हैं। और उनको बाहरी कहना उचित नहीं होगा।
 
लड़ाई बड़ी ही रोचक है रमेश अवस्थी को भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टी का सानिध्य प्राप्त है। पत्रकारिता में रहकर राजनीति के सारे हथकंडे जानते हैं। और स्थानीय तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं का उन्हें काफी सहयोग मिल रहा है। वहीं आलोक मिश्रा की पत्नी इस बार कानपुर से कांग्रेस से ही मेयर का चुनाव लड़ चुकीं हैं। हालांकि वह चुनाव हार गईं थीं लेकिन उन्होंने अच्छी टक्कर दी थी। इधर लोकसभा में समाजवादी पार्टी से गठबंधन का फायदा भी आलोक मिश्रा को मिलता दिखाई दे रहा है। चुनाव बहुत ही दिलचस्प है अब देखना है कि 4 जून को जब ईवीएम खुलेंगी तब किसकी किस्मत जोर मारती है।

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