स्वतंत्र प्रभात
यदि हम उत्तर प्रदेश में राजनैतिक माहौल की बात करें तो यहां छोटी-छोटी पार्टियों ने सभी बड़ी पार्टियों को राजनैतिक समीकरण बदलते पर मजबूर कर दिया है। यहां पर चुनाव पूरी तरह से धर्म और जाति पर आधारित रहता है। और इसी लिए जातिगत राजनीति करने वाले नेताओं ने अपने अपने छोटे-छोटे दलों का गठन कर लिया है जिससे बड़ी पार्टियों को उनकी आवश्यकता हो गई है। और जिस गठबंधन के पास इनकी संख्या अधिक है वह ही सबसे आगे रहता है। इसका असर पश्चिमी उत्तर, बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में कम दिखाई देता है लेकिन पूर्वांचल की राजनीति इन्हीं दलों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है।ये नेता पहले दूसरी बड़ी पार्टियों का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन तब इनकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हो पाती थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल और चन्द्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी का कुछ क्षेत्रों में अच्छा असर है। राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी अपने पिता चौधरी अजित सिंह और दादा चौधरी चरण सिंह की विरासत को सम्हाल रहे हैं। लेकिन बिना सपोर्ट के यह अपना प्रदर्शन बहुत प्रभावशाली नहीं कर सकते क्योंकि वहां कई क्षेत्रों में बड़ी पार्टियों भाजपा, सपा, और बसपा का अच्छा प्रभाव है। जयंत चौधरी पिछले दो चुनावों से समाजवादी पार्टी के साथ थे। लेकिन अभी हाल ही में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उनके दादा जी चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजने की घोषणा की तो जयंत भारतीय जनता पार्टी से रिश्ता जोड़ने में पीछे नहीं हट सके। इस तरह से उन्हें भारतीय जनता पार्टी का साथ मिल गया। जयंत के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वर्ग का अच्छा खासा जनाधार है और वह उस पार्टी को बढ़त दिलाने में अहम होता है जिसके साथ वह गठबंधन में हैं।
इसी तरह एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक उभरता हुआ नाम है चन्द्रशेखर रावण का जिन्होंने काफी संघर्ष करके अपने दल आजाद समाज पार्टी का गठन किया लेकिन चन्द्रशेखर को किसी पार्टी का साथ नहीं मिल सका जिससे कि वह पार्टी का विस्तार कर पाए हों। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चन्द्रशेखर दलित वोटों का अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं लेकिन किसी बड़ी पार्टी का सपोर्ट न मिल पाने के कारण वह अभी उतना आगे नहीं बढ़ सके हैं। लेकिन भविष्य की संभावनाएं उनके साथ हैं। पिछले कई चुनावों में गठबंधन को लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ उनको बातचीत करते देखा गया है लेकिन उसका कोई आधार नहीं सामने आ सका।
मध्य उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड क्षेत्र में मुकाबला सीधे भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच देखा जाता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन वाले दलों को गठबंधन धर्म के कारण कुछ एक सीटों पर चुनाव लड़ते देखा गया है। जिसमें पूर्वांचल की अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल पार्टी ने विधानसभा चुनावों में मध्य उत्तर प्रदेश की कुछ एक सीटों पर विजय भी प्राप्त की थी। पूर्व में यह गढ़ समाजवादी पार्टी का माना जाता था लेकिन धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी ने इसमें अपनी अच्छी खासी बढ़त बना ली और यही कारण है कि अब यहां समाजवादी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से पिछड़ती नजर आती है।
पूर्वांचल यानी कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में छोटे छोटे दलों की संख्या बहुत है और इनकी महत्वाकांक्षा भी इतनी है कि यह तुरंत पार्टी का गठन कर ऊंचे ख्वाब रखते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल, संजय निषाद की निषाद पार्टी, केशव देव मौर्य की महान दल, ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, पल्लवी पटेल की अपना दल कमेराबादी, और अभी हाल ही में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पार्टी भारतीय शोषित समाज पार्टी का गठन किया है।इस तरह से पूर्वांचल में इन पार्टियों के बिना किसी भी पार्टी के लिए चुनाव जीत पाना असंभव है। इसमें से ज्यादातर पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं और उनके नेता या तो केन्द्र में या राज्य में मंत्री हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन छोटे छोटे दलों के गठबंधन की बात की जाए तो यहां अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल, ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, संजय निषाद की निषाद पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में हैं। जब कि केशव देव मौर्य की महान दल समाजवादी पार्टी के साथ है और पल्लवी पटेल की अपना दल कमेराबादी जो अभी तक समाजवादी पार्टी के साथ थी उन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ कर एक नया गठबंधन एआईएमआईएम, और एक अन्य दल के साथ किया है और वह उसी गठबंधन के साथ चुनाव में उतर रही हैं।
इधर स्वामी प्रसाद मौर्य जो अभी तक समाजवादी पार्टी के विधायक थे ने अपनी नई पार्टी भारतीय शोषित समाज पार्टी का गठन कर लिया है और अकेले दम पर चुनाव मैदान में हैं। इन पार्टियों में से यदि अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल पटेल को छोड़ दिया जाए तो वाकी पार्टियां गठबंधन बदलती रहती हैं जो कि उनकी महत्वाकांक्षा को उजागर करता है। पूर्वांचल में जातिगत राजनीति का बोलबाला है। पहले समाजवादी पार्टी इसका फायदा उठाया करती थी। लेकिन अभी पिछले दो चुनावों से पूर्वांचल की ये छोटी-छोटी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गईं हैं और निश्चित है इससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलता नजर आ रहा है और इन छोटी पार्टियों की महत्वाकांक्षा भी पूरी हो रही है।