कविता
नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए l
चंचल ठहरे हमरे कान्हा जो राधिका को चाहे ll
पुकार सुन्नत गोपियो की फिर भी ना पनघट पर आये l
मगर एक झलक देखन को "प्यारी की" बरसाने छलिया बनकर जाये ll
सुनते ही बंसी की सब मतवाले हो जाए l
प्रीत देखो कान्हा की बंसी भी राधे-राधे गाए ll
कान्हा को जो हमरे चाहे वाह राधा का हो जाये l
छोड़ गोकुल की गलियों को कान्हा से मिलाने सब वृन्दावन को आये ll
........ श्रेया पांडेय