संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।

संजीव-नी।
 
फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।
 
आओ उजालों से कुछ सीख लेते है,
ताज़ी हवाओ से उमंगें भर लेते हैं।
 
जमाने की तमाम बुराई रखे एक तरफ,
फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।
 
पतझड़ में पत्तो को समेट देते है किनारे,
सावन की फुहारो से मन भिगो लेते है
 
कलिओ के साथ दो पल खिल लेते है,
भवरों संग प्रेम गीत गुन-गुना लेते हैं।
 
कितना विलाप करे जिंदगी का भी अब,
नन्हो संग खिलखिलाना सीख लेते है।
 
सुरज सुबह उगता, शाम अस्त होता हि है,
उजालों के संग कुछ मौज मना लेते है।
 
जीवन कभी डाल-डाल कभी पात-पात,
जिंदगी से जीना जिलाना सीख लेते हैं।
 
संसार में निराशा की गुंजाइश नहीं,
सूरज से कुछ चलो रौशन हो लेते है।
 
संजीव ठाकुर,

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