शहीद भगत सिंह: फांसी तख्ते की जगह पाकिस्तान ने वहां पर बना दी मस्जिद व काॅलोनी,मिटाया वजूद

स्वतंत्र प्रभात। एस.डी.सेठी।

आज 23 मार्च के दिन सिर्फ 23 वर्ष  की उम्र में लाहौर की सेंट्रल जेल में अंग्रेजी हुकुमत ने 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह समेत उनके साथियों  राजगुरू और सुखदेव को भी फांसी पर लटका दिया था। जबकि उनकों फांसी का हुक्म 24 मार्च  का दिन तय था। मगर डरी-सहमी अंग्रेजी हुकुमत ने एक दिन पहले ही उन्हें फांसी पर लटका दिया था।उनके शवों को भी रात के अंधेरे में अंग्रेजी हुकुमत ने जला दिया था। लेकिन जैसे ही इस बात की जानकारी लोगो को हुई तो हजारों की भीड ने उस जगह को घेर लिया। इस बात से डरे अंग्रेज अधिकारी अधजले शवों को ही नदी में फैंक कर भाग खडे हुए। दरअसल उनके द्वारा सुबूत मिटाने की कौशिश की गई।

  लेकिन लोगों ने उनके अधजले शव को नदी से बाहर निकाल लिया। और पूरे संस्कार के साथ उनका अंतिम दाह संस्कार किया गया। अब इस जगह की हालत बहुत ही खराब है। इस जगह के सामने पाकिस्तान में एक मस्जिद बना दी गई है। इस बात का जिक्र लेखक कुलदीप सिंह नैयर ने अपनी किताब में किया । सीनियर जर्नालिस्ट रहे कुलदीप नैयर ने ' शहीद भगत सिंह पर शहीद भगत सिंह, क्रांति के प्रयोग (The Martyr Bhagat Singh my Experiments in-Revolution)नामक किताब लिखी थी।

इस किताब की भूमिका में ही उन्होंने यह साफ किया है कि जिस जगह पर भगत सिंह को फांसी हुई, वह जगह अब ध्वस्त हो चुकी है।उनकी कोठरियों की दीवारें ध्वस्त होकर मैदान की शक्ल ले चुकी है।दरअसल वहां की व्यवस्था ही नहीं चाहती थी कि भगत सिंह और उनके शहीद साथियों की कोई निशानी वहां ठीक हालत में रहे। कुलदीप नैयर की किताब के मुताबिक अब पाकिस्तान में लाहौर सेंट्रल जेल के उस स्थान पर अधिकारियों ने शादमा नाम की एक काॅलोनी बसाने की अनुमति दे दी थी।

जबकि भगत सिंह व उनके दोस्तों को जिन कोठरियों में रखा गया था,उसके सामने एक शानदार मस्जिद के गुंबद खडे हैं। बकौल कुलदीप नैयर , मैने कुछ शादाब के बाशिंदों से पूछा कि क्या वे भगत सिंह से वाकिफ हैं। तो उनमें से लोगों के ना में जवाब मिले। दरअसल पाकिस्तानी हुकुमत शायद भगत सिंह की फांसी से संबंधित स्मारकों व निशानियों को मिटा देना चाहती है। किताब के मुताबिक जिन जगहों पर भगत सिंह व उनके साथियों,राजगुरू और सुखदेव को फांसी देने से संबंधित तख्ता था,वहां अब चौराहा बन गया है।

वहां के हैवी ट्रेफिक की धूल में तख्ता कब कहां खो गया किसी को नहीं मालूम।* ( भगत सिंह को फांसी देने  वाले जल्लाद की तीसरी पीढी की टीस आज भी है)*23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी पर लटकाने वाले जल्लाद की पीढी पवन जल्लाद के परदादा लक्षणसिंह ने अंग्रेजी हुकुमत में शहीद भगत सिंह को फांसी दी थी। इसी पीढी के और और पवन के दादा कालू राम ने पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह और केहर सिंह को फांसी पर लटकाया था।

पवन जल्लाद के मुताबिक उनके परदादा लक्षणसिंह ने ब्रिटिश हुकुमत के दौरान लाहौर आकर शहीद भगत सिंह को फांसी दी थी।इसकी टीस आज भी हमारी पीढी के सीने में नासूर की तरह चुभती है। पवन जल्लाद  को सरकार से उसे हर महीने कुल 3000 रूपये वेतन मिलता है। जिसमें परिवार का भरण-पोषण नही चलता है। वह फेरी लगाकर कपडे बेचता है। उसकी सरकार से  ख्वाहिश,गुहार है कि  सरकार वेतन को बढाने के अलावा बच्चों को सरकारी नौकरी दे तो गुजारा हो सके।

 
 

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