स्वतंत्र प्रभात
बिहार में जिस तरह से एनडीए ने पशुपति कुमार पारस को दिशा दिखाई है शायद दलबदल के लिए यह एक सही कदम है। पशुपति पारस रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं जिन्होंने लोकजनशक्ति पार्टी को अपने कब्जे में लेकर रामविलास पासवान के बेटे को अलग-थलग कर दिया था और अपने सांसद लेकर एनडीए में शामिल होकर केन्द्रीय मंत्री बने और पांच साल तक राज किया। लेकिन भारतीय जनता पार्टी जानती है कि पशुपति पारस के पास जनाधार नाम की कोई चीज नहीं है। जनाधार चिराग पासवान से ही जुड़ेगा।
चुनाव की घोषणा होते ही भारतीय जनता पार्टी ने स्थिति को भांपते हुए। चिराग पासवान की पार्टी को पांच सीटें दे दी और और पशुपति पारस खाली रह गये। इससे गुस्साए पशुपति पारस ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और अब उम्मीद ये लगाई जा रही है कि बिहार में वह इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर ताल ठोकेंगे। उनकी बातचीत लालू प्रसाद यादव से हो चुकी है। लेकिन फैसला तेजस्वी यादव को लेना है। देखा जाए तो भारतीय राजनीति में ऐसे खेल तमाम बार हुए हैं। कहीं चाचा भतीजे पर भारी पड़े हैं तो कहीं भतीजा चाचा पर भारी पड़ा है। लेकिन यह इस तरह की राजनीति का सफर बहुत छोटा होता है और समझदारी इसी में होती है कि क्षेत्रीय दलों को एकता के सूत्र में रहना चाहिए नहीं तो पशुपति पारस जैसा ही हाल होता है।
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच जो मनमुटाव हुआ था वह किसी से छिपा नहीं है। मनमुटाव की शुरुआत मुलायम सिंह यादव के सामने ही हो गई थी। और शिव पाल सिंह यादव तकरीबन पांच साल तक समाजवादी पार्टी से दूर रहे। शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पार्टी का गठन भी कर लिया था। और अपनी पूरी ताकत समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को हराने में लगा दी थी। मुलायम सिंह यादव की दूसरी बहु अपर्णा यादव भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं थीं।
शिवपाल सिंह यादव ने जब विद्रोह का विगुल फूंका था जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद अपने हाथों में ले लिया था। शिवपाल सिंह यादव अपने आप को मुलायम सिंह यादव का उत्तराधिकारी मान रहे थे। इस पारिवारिक लड़ाई में न तो अखिलेश यादव का भला हो सका और न ही शिवपाल सिंह यादव का। इसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला। लेकिन समय रहते शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी में फिर से शामिल हो गए और जिससे उनकी ताकत और समाजवादी पार्टी की ताकत को बढ़ावा मिला।
अपर्णा यादव अभी भी भारतीय जनता पार्टी में हैं लेकिन अभी तक भारतीय जनता पार्टी ने उनको कोई अहम रोल नहीं दिया है। अब देखना है कि अपर्णा का अगला कदम क्या होगा। भारतीय जनता पार्टी उनको लोकसभा चुनाव में कोई अहम जिम्मेदारी देगी या अपर्णा की भी घर वापिसी होगी। इस मुद्दे पर पर मैनपुरी से सांसद और मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहु डिंपल यादव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अपर्णा को यदि समाजवादी पार्टी शामिल करेगी तो हम उसका स्वागत करेंगे।
महाराष्ट्र में पहले बालठाकरे से उनके भतीजे राज ठाकरे ने बग़ावत की थी और अपनी नई पार्टी का गठन कर लिया था। राज ठाकरे भी अपने आप को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी समझते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर बाल ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे ने शिव सेना को सम्हाल लिया। और पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, एनसीपी और अन्य दलों के साथ महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया। लेकिन उद्धव ठाकरे भी अपनी पार्टी में टूट को नहीं रोक सके। उन्हीं की पार्टी के विधायक एकनाथ शिंदे ने शिव सेना के विधायकों को तोड़ कर शिव सेना के अधिकार अपने हाथ में ले लिये और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार का गठन कर लिया।
एक नाथ शिंदे ने शिव सेना का चुनाव चिन्ह भी अपने कब्जे में ले लिया लेकिन लोग जानते हैं यह एक पल की राजनीति है और जनाधिकार उद्धव ठाकरे के पास ही है जो अगले चुनाव में सिद्ध हो जाएगा। चाचा भतीजे की लड़ाई से शरद पवार की एनसीपी भी अधूरी नहीं रही। अजित पवार ने दो बार एनसीपी को तोड़ा पहली बार तो उनको मना लिया गया लेकिन दूसरी बार एनसीपी टूट ही गई। और अजित पवार महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में शामिल हो गए। अब आने वाले चुनावों में इन नेताओं का भविष्य पता चल जाएगा।
क्षेत्रीय दलों में टूट की संभावनाएं अक्सर बनी रहती हैं। क्यों कि जब इन पार्टियों का गठन हुआ था तब पहली पीढ़ी के पास इन पार्टियों की कमान थी और अब दूसरी पीढ़ी के लोग इन पार्टियों को चला रहे हैं। नितीश की पार्टी इसलिए इस फूट से बची है कि वह लगातार सत्ता में बने रहे हैं हालांकि सत्ता में बने रहने के लिए गठबंधन करने और तोड़ने का रिकार्ड उन्होंने कायम किया है लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब रहे हैं। अन्य क्षेत्रीय दल सत्ता में आते जाते रहे हैं। इसलिए कोई नेता सत्ता से दूर नहीं रहना चाहता। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के एक दो जिलों में अपना जनाधार रखने वाली अपना दल को भी सोनेलाल पटेल के बाद दो फाड़ होना पड़ा।
अपना दल को दोनों धड़ों को उनकी दो बेटियां अलग-अलग गठबंधन के साथ जोड़ें हुए हैं। पशुपति पारस के साथ जो घटा है उसकी संभावना तभी से लगने लगी थी जब चिराग पासवान एनडीए के साथ मिल गए थे। चूंकि चिराग पासवान रामविलास पासवान के बेटे हैं तो भारतीय जनता पार्टी को यह समझने में देर नहीं लगी कि लोकजनशक्ति पार्टी का जनाधार किसके हाथों में होगा। और यही कारण रहा जो पशुपति पारस को किनारे कर दिया गया।
पशुपति पारस अब बिहार में इंडिया गठबंधन के साथ हाजीपुर लोकसभा सीट से अपने भतीजे चिराग पासवान को टक्कर देने के लिए कमर कस रहे हैं। इसमें वह कितना कामयाब होते हैं यह समय आने पर ही पता चलेगा। मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पशुपति पारस ने भारतीय जनता पार्टी पर अपने और अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के साथ नाइंसाफी करने का आरोप लगाया है और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए दो एक दिन में फैसला लेने की बात कही है।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार