लोकसभा चुनाव 2024: सपा ने 16 उम्मीवार को मैदान में उतारे, उन सभी सीटों का सियासी समीकरण 

स्वतंत्र प्रभात 

संभल, फिरोजाबाद, मैनपुरी, लखीमपुर खीरी, फर्रूखाबाद, अकबरपुर, बांदा, फैजाबाद, बस्ती, लखनऊ, अंबेडकरनगर, बदांयू, उन्नाव, गोरखपुर, एटा, धरौहरा - ये वो 16 लोकसभा की सीटें हैं जिन पर समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. लोकसभा चुनाव के लिए जिन नेताओं को समाजवादी पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है, वे कौन हैं, इन 16 सीटों का सियासी समीकरण क्या है, आइये जानते हैं.
लोकसभा चुनाव ऐलान से पहले ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सिपहसलार उतारने शुरू कर दिए हैं. सपा ने मंगलवार को सूबे की 16 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया. अखिलेश ने अपने दो मौजूदा सांसदों सहित 2019 के चुनाव में हारे कई उम्मीदवारों पर एक बार फिर से भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है. इतना ही नहीं सपा ने अपनी पहली लिस्ट में सीटों के कास्ट समीकरण का भी ख्याल रखा है, जिसके चलते ओबीसी समुदाय पर सबसे बड़ा दांव खेला है. ऐसे में सवाल उठता है कि सपा ने जिन 16 सीटों पर अपने कैंडिडेट घोषित किए हैं, उन सीटों के सियासी समीकरण क्या हैं और बीजेपी से मुकाबला कर पाने में कितना सफल हो पाएंगे?

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. इंडिया गठबंधन के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत चल ही रही है. हालांकि अखिलेश ने 11 सीटों की पेशकश कांग्रेस को और 7 सीटों को आरएलडी को देकर गठबंधन की रूपरेखा तय कर दी है. अखिलेश ने एक तरह से यह भी राजनीतिक लकीर खींच दी है कि उनकी पार्टी 62 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. समाजवादी पार्टी ने इन 62 सीटों में से 16 पर कल उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. जिन लोगों को पहली सूची में टिकट पार्टी ने दिए हैं, उनमें डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, देवेश शाक्य, अन्नू टण्डन, रविदास मेहरोत्रा, राजाराम पाल, शफीकुर्रहमान बर्क जैसे नाम शामिल हैं.

संभल: बर्क रख पाएंगे बरकरार सीट?
समाजवादी पार्टी ने संभल लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क पर एक बार फिर से दांव लगाया है. मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी मोदी लहर में 2014 में जीतने में सफल रही थी, लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के चलते बीजेपी अपनी जीत बरकरार नहीं रख सकी थी. दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण के दम पर सपा से शफीकुर्रहमान बर्क करीब पौने दो लाख मतों से जीतने में सफल रहे थे. इससे पहले 2014 में महज पांच हजार वोटों से बीजेपी के हाथों वे चुनाव हार गए थे. बीजेपी पहली बार संभल सीट 2014 ही में जीत सकी थी.

संभल लोकसभा सीट पर यादव, मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं और जीत की गारंटी माने जाते हैं. संभल सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, लेकिन अब तक के इतिहास में सिर्फ दो बार ही मुस्लिम सांसद रहे हैं और दोनों ही बार शफीकुर्रहमान बर्क जीते हैं. एक बार बसपा से और दूसरी बार सपा से जीते हैं, इससे पहले यादव समुदाय के सांसद रहे हैं. बसपा इस बार अकेले चुनावी मैदान में उतर रही है, जिसके चलते 2014 के चुनाव जैसी स्थिति बन रही. राम मंदिर को लेकर अलग तरह का माहौल है. ऐसे में बीजेपी से शफीकुर्रहमान बर्क कैसे मुकाबला करेंगे और अपनी सीट क्या बरकरार रख पाएंगे?

फिरोजाबाद: अक्षय फिर करिश्मा दोहराएंगे?
फिरोजाबाद लोकसभा सीट से सपा ने पूर्व सांसद अक्षय यादव को प्रत्याशी बनाया है, जो रामगोपाल यादव के बेटे हैं. 2014 में अक्षय पहली बार इस सीट से जीत दर्ज कर सांसद बने थे, लेकिन 2019 में शिवपाल यादव के चुनावी मैदान में उतरने के चलते चुनाव हार गए थे. हालांकि, सपा का बसपा-आरएलडी के साथ गठबंधन भी था. फिरोजाबाद सीट पर यादव और मुस्लिम समुदाय के वोटर काफी निर्णायक भूमिका में है, जिन्हें जीत-हार का आधार माना जाता है. शिवपाल यादव अब सपा के साथ हैं, लेकिन बसपा अकेले चुनाव मैदान में उतरेगी. बीजेपी से चंद्रसेन जादौन सांसद है. फिरोजाबाद सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें से सपा तीन और बीजेपी का 2 सीट पर कब्जा है. ऐसे में बसपा और बीजेपी के सामने अक्षय यादव 2014 जैसा करिश्मा दोहरा पाएगें?

मैनपुरी: डिंपल क्या बरकरार रख पाएंगी?
सपा ने मैनपुरी लोकसभा सीट से डिंपल यादव को उतारा है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद डिंपल यादव 2022 में मैनपुरी सीट से उपचुनाव जीती थी, लेकिन 2024 में भी क्या वह जीत को बरकरार रख पाएंगी. मुलायम सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति का फायदा उपचुनाव में डिंपल यादव को मिला था और 64 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज कर सकी थी. मैनपुरी सीट सपा की परंपरागत और मजबूत मानी जाती है. इस सीट पर यादव, शाक्य, दलित और ठाकुर वोटर अहम रोल में है, जिसे जीत की गारंटी माना जाता है. बीजेपी शाक्य समुदाय पर दांव खेलती रही है तो सपा यादव वोटर और बाकी अन्य जातियों को मिलाकर अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं, लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से ओबीसी वोटबैंक में अपनी पैठ जमाई है, उसके चलते देखना है कि डिपंल यादव अपने ससुर मुलायम सिंह की विरासत को क्या 2024 में आगे बढ़ा पाएंगी?

लखीमपुर खीरी: सपा ने खेला कुर्मी दांव
लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से सपा ने उत्कर्ष वर्मा को प्रत्याशी बनाया है. यह कुर्मी और ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है, लेकिन मौजूदा समय में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी सांसद है. बीजेपी पिछले दो लोकसभा चुनाव से लगातार जीत दर्ज कर रही है और तीसरी बार भी जीत की उम्मीद लगाए है, जबकि एक समय सपा का यह गढ़ माना जाता था. सपा के दिग्गज नेता रहे रवि वर्मा लंबे समय तक इस सीट से जीतते रहे हैं, 2019 में उनकी बेटी पूर्वी वर्मा चुनाव लड़ी थी. रवि और पूर्वी वर्मा दोनों ही कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. स्थानीय समीकरणों को देखते हुए सपा ने कुर्मी समुदाय की प्रत्याशी उतारा है, लेकिन पूर्वी कांग्रेस या फिर किसी अन्य पार्टी से उतरती हैं तो फिर सपा के लिए सीट जीतने की चुनौती होगी.

फर्रुखाबाद : शाक्य क्या सपा को दिलाएंगे जीत
फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से सपा ने डॉ. नवल किशोर शाक्य को उम्मीदवार बनाया है. पिछले दो लोकसभा चुनाव से लगातार बीजेपी के मुकेश राजपूत चुनाव जीत रहे हैं, कल्याण सिंह के करीबी और लोध समुदाय से आते हैं. इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता सलमान खुर्शीद चुनाव लड़ते रहे हैं और एक बार फिर ताल ठोंकना चाहते थे. इस सीट पर यादव, ठाकुर, ब्राह्मण, मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटर अहम भूमिका में है. बीजेपी ओबीसी और सवर्ण वोटर के जरिए जीत दर्ज करती आ रही है, लेकिन इस बार सपा ने भी ओबीसी पर दांव खेला है, बीजेपी के सियासी आधार के सामने बसपा और कांग्रेस अगर अपना दांव चलती हैं तो फिर सपा के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा?

अकबरपुर : राजाराम क्या फिर बनेंगे राजा
अकबरपुर लोकसभा सीट से सपा ने राजाराम पाल को अपना प्रत्याशी बनाया है. 2014 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और मौजूदा समय में देवेंद्र सिंह सांसद हैं. कानपुर देहात की यह सीट मानी जाती है. राजाराम पाल बसपा और कांग्रेस से 2009 में सांसद रह चुके हैं, लेकिन 2019 में 108341 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे. कुर्मी बहुल सीट मानी जाती है. सपा राजाराम पाल के जरिए ओबीसी और दलित वोट साधकर जीत का सपना संजो रही है, लेकिन बीजेपी जिस तरह कुर्मी, ठाकुर और ब्राह्मण वोटों को अपने साथ साधकर रखे हुए है, उसके चलते सपा के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं है?

बांदा : कुर्मी बनाम क्या कुर्मी फाइट
बांदा लोकसभा सीट पर सपा ने शिवशंकर पटेल को उतारा है, जो कभी बीजेपी में रहे हैं और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं. 2014 से बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है. 2019 में बीजेपी के आरके पटेल इस सीट से सांसद चुने गए थे, जो सपा से आए थे. बांदा लोकसभा सीट पर ब्राह्मण और पटेल समुदाय का दबदबा रहा है, लेकिन दलित और अतिपिछड़े वोटर भी अहम रोल अदा करते हैं. बांदा सीट पर ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां कुर्मी, ब्राह्मण पर दांव लगाती रही है. सपा ने इसी रणनीति के तहत शिव शंकर पटेल को उतारा है, उससे पहले सपा कुर्मी समीकरण के जरिए जीत दर्ज कर चुकी है. ददुआ का इस सीट पर दबदबा रहे है, जिसके चलते उनके भाई भी इस सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं.

फैजाबाद: सामान्य सीट पर दलित दांव
सपा ने फैजाबाद लोकसभा सीट पर अवधेश प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है. सामान्य सीट होने के बावूजद अखिलेश यादव ने दलित समुदाय के पासी जाति से आने वाले अवधेश को टिकट दिया है. यह सीट बीजेपी की मजबूत सीटों में से एक है और चुनाव से लगातार जीत दर्ज कर रही है. बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर के जरिए पहले से सियासी माहौल बनाने में जुटी है. अयोध्या एयरपोर्ट को वाल्मीकि के नाम रखकर दलितों में पैठ बढ़ाने का काम किया जबकि सामान्य सीट पर दलित प्रत्याशी को उतारकर सपा ने भी अपनी रणनीति का प्रदर्शन किया है. सपा को उम्मीद है कि अवधेश प्रसाद के अनुभव का फायदा भी मिलेगा, लेकिन राम मंदिर ही नहीं बल्कि निषाद और सवर्ण वोटों के जरिए अपना दबदबा बनाए रखने की है.

बस्ती: कुर्मियों पर पकड़ बना पाएगी सपा
सपा ने बस्ती लोकसभा सीट पर राम प्रसाद चौधरी को टिकट दिया है. चौधरी बसपा के कद्दावर नेता रहे हैं और कप्तानगंज से पांच बार विधायक रह चुके हैं. कुर्मी समुदाय से आते हैं और दिग्गज नेता है. राम प्रसाद चौधरी के बेटे अतुल चौधरी अभी कप्तानगंज से विधायक है. बस्ती लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है और हरीश द्विवेदी दूसरी बार सांसद है. सपा यह सीट कभी जीत नहीं सकी है जबकि बसपा का दो बार कब्जा रहा है. बस्ती सीट पर कुर्मी, ब्राह्मण और दलित मतदाता काफी अहम भूमिका में है. सपा ने कुर्मी समुदाय को इस सीट पर उतारकर मुस्लिम-यादव-कुर्मी समीकरण बनाने की कोशिश की है, लेकिन रामप्रसाद चौधरी क्या इन तीनों ही जातियों को अपने साथ जोड़कर रख पाएंगे?

लखनऊ : बीजेपी के दुर्ग को भेद पाएगी सपा
सपा ने लखनऊ लोकसभा सीट पर रविवास मेहरोत्रा को प्रत्याशी बनाया है, जो लखनऊ मध्य क्षेत्र के विधायक हैं. लखनऊ सीट पर बीजेपी का लंबे समय से दबदबा है, जहां से पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पिछले दो चुनाव से राजनाथ सिंह चुने जा रहे हैं. ब्राह्मण, वैश्य,कायस्थ और मुस्लिम बहुल सीट पर सपा ने खत्री समुदाय से आने वाले रविदास मेहरोत्रा पर दांव खेला है, क्योंकि लंबे समय से राजधानी की सियासत में वो सक्रिय है. ऐसे में बीजेपी के इस मजबूत किले को क्या सपा भेद पाएगीय़

अंबेडरनगर: सपा कुर्मी कार्ड क्या होगा सफल
अंबेडकर नगर लोकसभा सीट पर सपा ने लालजी वर्मा को प्रत्याशी बनाया है, जो फिलहाल विधायक हैं और बसपा से सपा में आए हैं. अंबेडकर नगर सीट बसपा की मजबूत सीटों में से एक रही है, जहां से रितेश पांडेय सांसद हैं, लेकिन उनके पिता राकेश पांडेय सपा से विधायक हैं. इस सीट के सियासी समीकरण देखें तो दलित, मुस्लिम, कुर्मी और ब्राह्मण बहुल मानी जाती है. लालजी वर्मा की पैठ कुर्मी के साथ-साथ दलित समुदाय के बीच भी है, लेकिन बसपा किस पर दांव खेलेगी, इसके बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी. बीजेपी इस सीट को हरहाल में अपने कब्जे में लेने की कोशिश में है, क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी पांचों विधायक सपा के बने हैं. लेकिन, लोकसभा चुनाव पूरी तरह से अलग होता है. अयोध्या से सटी होने के चलते इस सीट पर बीजेपी की नजर है, जिसके चलते सपा के लिए आसान नहीं है?

बदायूं: धर्मेंद्र क्या अपनी कोई ताकत पाएंगे
बदायूं लोकसभा सीट से सपा ने धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है, जहां से दो बार सांसद वो रह चुके हैं. 2019 में यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या ने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की थी. बदायूं सीट के सियासी समीकरण देखें तो यादव, मुस्लिम, दलित और मौर्य वोट काफी निर्णायक हैं. यादव-मुस्लिम के दम पर सपा यह सीट दोबारा से जीतना चाहती है, जिसके लिए धर्मेंद्र यादव पर दांव खेला है. बीजेपी मौर्य, दलित और सवर्ण वोटों के जरिए अपने वर्चस्व को हरहाल में बरकरार रखने की है, लेकिन बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेल दिया तो सपा के लिए यह राह आसान नहीं होगी. 2022 के चुनाव में बीजेपी बदांयू की पांच से चार सीटें ही जीतने में सफल रही है और सपा को एक सीट मिली है. ऐसे में धर्मेंद्र यादव के लिए चुनौती भरा मुकाबला हो सकता है?

उन्नाव: अन्नू टंडन क्या फिर जीतेंगी?
उन्नाव लोकसभा सीट से सपा ने अन्नू टंडन को प्रत्याशी बनाया है. अन्नू टंडन 2009 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनी गई थी, लेकिन पिछले दो चुनाव से बीजेपी के फायर ब्रांड नेता साक्षी महाराज सांसद है. 2019 में बीजेपी यह सीट करीब 4 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी जबकि अन्नू टंडन को महज 85634 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही थी. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर सपा में आईं थी और पार्टी ने उन्हें उन्नाव सीट से प्रत्याशी बनाया है. माना जा रहा है कि सामान्य वर्ग के वोटों के साथ यादव और मुस्लिम समीकरण के जरिए अपनी जीत दर्ज करना चाहती है, लेकिन बीजेपी के सियासी आधार के सामने यह आसान नहीं है.

गोरखपुर: सपा ने चला निषाद कार्ड
सपा ने गोरखपुर लोकसभा सीट पर काजल निषाद को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी की मजबूत लोकसभा सीटों में से एक है, जहां से फिलहाल भोजपुरी अभिनेत्रा रवि किशन सांसद है. ऐसे में सपा ने काजल निषाद को उतारा है, जो अभिनेत्री हैं. काजल निषाद 2017 में कांग्रेस और 2022 में सपा से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली. सपा ने 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में प्रवीण निषाद ने यहां जीत दर्ज की थी और उसी समीकरण को तरजीह देते हुए यहां से काजल निषाद को मौका दिया है, लेकिन सीएम योगी के गृह क्षेत्र होने के चलते सपा के लिए यह जीत आसान नहीं रहने वाली. गोरखपुर सीट पर ब्राह्मण, ठाकुर, निषाद, दलित और यादव वोटर निर्णायक है.

एटा: शाक्य नेता पर बीजेपी ने लगाया दांव
समाजवादी पार्टी ने एटा लोकसभा सीट से देवेश शाक्य को प्रत्याशी बनाया है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता रहे कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह सांसद हैं. यह सीट बीजेपी की मजबूत सीटों में से एक मानी जाती है. यहां के सियासी समीकरण पर अगर नजर दौड़ाएं तो ओबीसी, ठाकुर और दलित वोट निर्णायक माने जाते हैं. बीजेपी यहां पर लोध समुदाय पर दांव लगाकर अपना सियासी गोटी फिट करती रही है तो इस दफा समाजवदी पार्टी ने देवेश शाक्य को उतारा है जिनका बैकग्राउंड बसपा और बीजेपी से है. देवेश शाक्य के भाई बसपा सरकार में मंत्री रहे हैं और बीजेपी से विधायक रहे हैं. सपा इस बार उन पर दांव लगाकर शाक्य, मुस्लिम और यादव समीकरण के सहारे जीत तलाश रही है लेकिन राजवीर सिंह जैसे मजबूद कैंडिडेट के सामने होने की वजह से मामला आसान नहीं होगा.

धरौहरा: सपा ने चला ठाकुर कार्ड
समाजवादी पार्टी ने धरौहरा सीट से आनंद भदौरिया को उम्मीदवार बनाया है. भदौरिया ठाकुर जाति से आते हैं. फिलहाल भारतीय जनता पार्टी से रेखा वर्मा यहां की सांसद हैं. भारतीय जनता पार्टी धरौहरा सीट पर ब्राह्मण और औबीसी समुदाय के सहारे अपनी चुनावी नइया पार लगाती रही है. इस सीट पर सवर्ण खासकर ब्राह्मण मतदाता अहम माने जाते हैं. इनके अलाव कुर्मी और मुस्लिम वोट भी सीट पर काफी अहम है. अखिलेश यादव की कोशिश है कि मुस्लिम, यादव और ठाकुर वोट के सहारे इस सीट को जीता जाए, मगर ये राह इतनी आसान नहीं होगी.

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