संजीव-नी।फूलों सा तेरे सामनें बिखर जायेंगे !गजरे सा तेरे गेसुओं में संवर जाएंगे।अपनी सांसों को रखिए महफूज,खुशबू सा सांसो मे बिखर जायेंगे!महसूस करने की कोशिश तो कीजिए!यादों की तरह दिल मे उतर जायेंगे!!जेहन में रहकर भी, क्यों हैं इतनी दूरियां,नजदीक आइये,थोड़ा हम भी संवर जाएंगे।अरे जरा नजरें इनायत तो करिए हुजूर,दूर होकर भी बेहद नजदीक नजर आएंगे!!इंतजार की अब इन्तेहाँ हो गई शायद,थोड़ा हम भी तेरी जुल्फों में ठहर जाएंगे।संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़,