संजीव-नी। हमें फकीरी का भी बोझा ढोने दो।।

संजीव-नी।
 
हमें फकीरी का भी बोझा ढोने दो।।
 
अपने खून को कई रगों में बहनें दो,
कई जिस्मो में उसे जिन्दा रहने दो।
 
खुदा-खुदा करके जीती है दुनिया ,
मासूमियत को जिंदगी में सांस लेने दो।
 
रक्त,देह,नेत्र दान तो महान दान  है,
अगले पल खुद को जिन्दा रहने दो।
 
दिलों में भोलापन जिंदा रहने दो, 
रिश्तों को कुछ खुशनुमा रहने दो।।
 
कभी मुफलिसी में भी सांस लेकर देखिए ,
अंदाज अलग है जिंदगी का फना रहने दो ।।
 
संघर्ष से सदैव तपते इरादे और हौसले,
खुद को विपरीत लहरों में नैय्या खेने दो।।
 
आजमा कर देखो इन हवाओं फिजाओं को,
बेहतरीन नुस्खा खुशबुओं को बना रहने दो।
 
यह रिवाज ही है ऊँचा उठने का,
जरा अम्बर को और ऊंचा रहने दो।।
 
झुक जाना संस्कारों की इबादत है,
हमें फकीरी का भी बोझा ढोने दो।।
 
परवाह न करो गर इरादे साफ है,
सूफियाना जिंदगी का मजा लेने दो।
 
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़,

About The Author: Swatantra Prabhat UP