आजादी के अमृतकाल में भी ठंड की रात मे खेतों से जानवरों को भगाते कट रही किसान की जिंदगी 

स्वतंत्र प्रभात हरदोई।

ब्रिटिश हुकूमत में भारतीय किसानों की दुर्दशा का चित्रण करते हुए अब से करीब 100साल पहले सन 1921 मे भारत के महान कहानीकार रहे मुंशी प्रेमचंद ने" पूस की रात" नामक कहानी लिखी थी। कहानी में हल्कू नामक पात्र पूस की रात में जानवरों से अपने खेत को बचाने के लिये फूस की झोपड़ी में एक सूती चादर के सहारे भंयकर ठंड में रात काट रहा है।

उसका कुत्ता झबरा उसके साथ होता है जो जानवरों की आहट पर भौंक कर हल्कू का जगाता रहता है।आज कहानी लिखे जाने के 100साल बाद भी किसान की जिंदगी हल्कू की जिंदगी से आगे नहीं बढ़ पायी है। हम इक्कीसवीं सदी में पहुंच गये है। बर्तमान में  सरकारों द्वारा देश में अमृतलाल मनाया जा रहा है। लेकिन देश की अधिसंख्य आबादी जो कृषि से जुड़ी है। वह आज भी हल्कू की तरह जिंदगी जीने को मजबूर हो रही है।देश में किसानों की दुर्दशा कमोवेश हर राज्य में हो रही है

लेकिन हम यहां उप्र राज्य के जनपद हरदोई में किसानों की दुर्दशा की एक झलक प्रस्तुत कर रहे हैं। दिल्ली लखनऊ मुख्य रेल मार्ग पर बसा हरदोई जनपद 5989 स्कावयर किमी का स्वामी है।पूरा जनपद 19ब्लाक ,5तहसील ,26 थानों 6नगरपालिका 7नगर पंचायत 2072गाव जिसमें 1306 ग्राम पंचायतो में बटा हुआ है। 2011की जनगणना के अनुसार जनपद की कुल आबादी 4091380 है जिसमें 1901403महिलाये 2191442पुरुष है। इसमें से नगरीय आबादी 540489 ग्रामीण आबादी 3550489 है। यहां की 80% से ज्यादा आबादी खेती बाड़ी पर निर्भर है।जनपद के कृषि संसाधनों पर नजर डाली जाए तो आंकड़े पर्याप्त मात्रा में है लेकिन उचित रखरखाव के चलते यह सब सफेद हांथी साबित हो रहे हैं।

सिंचाई संसाधनों की उपलब्धता आंकड़ों में पर्याप्त है लेकिन 70से 80%नलकूप बन्द पड़े हैं वहीं नहरों में टेल तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। इसके बावजूद भी किसान अपने निजी संसाधनों से जैसे तैसे फसलों को तैयार करता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सरकारों के फैसलों से जानवरों की आमद ज्यादा बढ़ी है इस कारण किसानों को अपनी फसल बचाने के लिए रात-दिन खेतों की रखवाली करने को मजबूर होना पड़ रहा है। कड़ी मशक्कत के बाद किसानो  द्वारा कमाई गयी उपज का बाजिब मूल्य मिलने से किसान गरीब और गरीब होता चला जा रहा है।आज अन्नदाता को राजनीति की पॉलिथीन से कवर कर दिया गया है ताकि वह अंदर ही अंदर घुटता रहें और बाहरी वातावरण से उसका संबंध विच्छेद रहे वह अपने परंपरागत समाज को समझ ही सके यही नहीं वह अपने को भी नहीं समझ सकता है कि वह कितने टुकड़ों में बट कर अपना जीवन जी रहा है।आवारा गोवंश किसानो के लिये बड़ी समस्या बने हुये है।

वैसे आवारा गोवंशों को लेकर उप्र सरकार काफी संजीदा है और गोवंश संरक्षण के लिये लगातार करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा भी रही है इसमें कोई संदेह नहीं है।जिले के मुखिया  जिलाधिकारी भी इस समस्या को लेकर काफी गम्भीर दिखाई दे रहे हैं।गोसरक्षण को लेकर अपने अधीनस्थों को प्रतिदिन निर्देशित करते देखे जा रहे हैं लेकिन पता नहीं किस कारण से जमीनी हकीकत मुख्यमंत्री जिलाधिकारी के आशानुरूप परिलक्षित होती दिखाई नहीं दे रही है। आवारा गोवंशों से किसानो को निजात दिलाने के लिये प्रत्येक ग्राम पंचायत में गौशाला बनाये जाने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन प्रशासनिक मक्कारी के चलते योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।जिन ग्राम पंचायतों में गौशाला बन गये है उनके संचालन में जानबूझकर कर बिलम्ब किया जा रहा है

जहां संचालन हो रहा है वहां अव्यवस्था का बोलबाला बताया जा रहा है। जिम्मेदार केवल आफिस में बैठकर व्लोअर की गर्माहट में मस्ती करते नजर रहे हैं ।वहीं राजनैतिक दलों के नेता खासकर बिपक्ष जिस पर जनहित में सरकारों पर दबाव बनाने की जिम्मेदारी होती वह भी  इस अन्नदाता की समस्या पर खामोश रहकर कुम्भकरणी नींद में सोया दिखाई दे रहा है।जो केवल चुनाव में ही किसान हितैषी चेहरा लेकर वोट लेने के लिए ही दिखाई देगा।जबकि किसान पूस की रात में 5 डिग्री तापमान में बिना झबरा के फूस की झोपड़ी में भंयकर ठंड झेलने को मजबूर हो रहा है।  पूस की रात कहानी में हल्कू अकेला पात्र हैं लेकिन आधुनिकता का दम्भ भरते समाज में आज हर घर में एक हल्कू मौजूद हैं जिसकी कड़कड़ाती ठंड भंयकर कोहरे से भरी पूस की रात खेतों पर जानवर भगाते जिंदगी कटी जा रही है

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