कुशीनगर : अटुट आस्था बांसी नदी को मिल गयी काला पानी की सजा 

सनातन धर्म की अटुट श्रद्धा और आस्था का केंद्र रामघाट बांसी के नाम पर स्वच्छता सफाई और मां गंगा जी को सजाने पर डंका बजाने वाले क्या इस बांसी नदी में डुबकी लगायें है..? 

राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते धोते

ब्यूरो प्रमुख - प्रमोद रौनियार

कुशीनगर। जनपद में मुख्य नारायणी नदी की श्रोत झरही बांसी हिरण्यवती आदि नामो की नदिया जीवंत होकर दो दशक पूर्व कल कल निर्झर बहती थी, आज वही नदिया कलयुग के इंसानो के पापाचार से अंतिम साँसे गिन रही हैं। आज की जो बांसी नदी तस्वीर हैं यही आबोहवा कायम रही तो विलुप्त हो जायेगी माँ गंगे और कृत्रिम तरीके से पर्व मनाने पर हम विवस होंगे। 
 

व्यवस्थापक अपने गिरेबान में देखे.. 

 
शासन और प्रशासन द्वारा स्वच्छता सफाई के नाम पर ढोंग करने वाले पढ़ ले आज बांसी नदी घाट की गंदगी और नदी की काला पानी स्थित को स्पष्ट कर रही है कि नैतिक जिम्मेवारियों को निभाने वालों को आईना तो दिखा ही रही है अलावा सरकारी खजाने के घपले घोटालो की पोल भी खोल रही हैं। हम तो श्रद्धालू लोग हैं नाक बंद कर डुबकी लगाना हमारी मजबूरिया हैं। अगर ऐसा ही गंगा मईया जी के साथ धोख़ा का खेल जारी रहा तो वह दिन दूर नही जब नदी तालाब में माँ गंगा जी को देखने के लिए उन बैमानों के नाम पर आँखे तरसेगी। बांसी स्नान में सबने देखा कितनी जहरीला हो गयी गंगा जी नाक बंद कर श्रद्धालू डुबकी लगा गंगा स्नान कर रहे थे ऊपर से काला पानी और कीचड़ बह रहा था। कहा जाता है गंगा जी में नहाने से जीवन तर जाता हैं लेकिन यहा तो कुछ और ही दिखा मेले में दूर दराज से आये लाखों भक्त जिम्मेदारों को कोसते नही थक रहे थे। 
 

कैसे बचेगी मानव जीवन की आस्था.... 

एक अपना अनुभव कहता है झरही बांसी हिरण्यवती आदि नामो से जनपद में बहने वाली नदिया मुख्य नारायणी नदी के जल श्रोत हैं। पहले माँ गंगा खुले में विचरण करती थी जिन्हे कल कल निर्झर देखकर आँखे भर आती थी। आज बाँध बांधकर माँ गंगा जी की आजादी को आबादी ने छीन लिया, इंसान का नाक ही बंद कर दिया जाये जो साँसे लेना बंद कर दे तो क्या वह जिंदा बचेगा..? नतीजा हम जैसे प्राणियों के डर से गंगा जी अब दूर भाग रही हैं। जो हम सब अपनी आँखों से आज देख रहे है। इस विषम परिस्थित पर विचार करने की आवश्यकता हैं। जब नदी में गंगा जी आवे तो बने बांध के रेगुलेटर समय की मांग के अनुसार फाटक उठाना और पानी छोड़ना होगा, जिससे जनपद के नारायणी नदी की विभिन्न शाखाओं में गंगा जी आयेगी स्वच्छता सफाई करेगी नदिया सांसे लेगी तभी प्राणी जीवित रहेगे केवल पढ़ने पढ़ाने से नही होगा कि "जल ही जीवन हैं" हम इन्हे कैसे सिंचित करे जीवित रखे इस पर मंथन करना होगा। तभी हमारी जीवन की आस्था और भक्ति पर आ रही संकट समाप्त होगी और कल कल निर्झर नदियों  को देखर मन हर्षित होगा और जीवन सुरक्षित रहेगा।
 
 

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