क्या सचमुच ही बदलाव की आंधी चल उठी ?

पूरे एक दशक बाद देश में क्या सचमुच बदलाव की आंधी चल उठी है ? ये सवाल उन सवालों में से निकला है जो आजकल पांच राज्यों के चुनावों की रैलियों में गूँज रहे है ।  खुद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को   कहना पड़ रहा है कि बदलाव की आंधी चल रही है। मोदी जी ने हालाँकि ये बात तेलंगाना में कही,किन्तु मुझे लगता है कि मोदी जी ने पहली बार मन की बात सुनकर ही ये बात कही है।

बदलाव एक सहज प्रक्रिया है। ये कभी एक दशक ले लेती है तो कभी पूरी एक सदी। बदलाव न हो तो सब कुछ ठहरा-ठहरा लगता है। देश की जनता ने 2014  के आम चुनाव में देश की सियासत को बदला और अच्छे दिनों की आस में देश की बागडोर भाजपा को सौंप दी थी ।  देश ने बदलाव के इन्तजार में पांच नहीं बल्कि दस साल भी भाजपा को दिए किन्तु जितना और जैसा बदलाव जनता चाहती थी वैसा बदलाव शायद नहीं हुआ ,इसलिए अब फिर एक दशक बाद देश में बदलाव की आंधी चलना शुरू हो गयी है।

गनीमत है कि इस सच को माननीय मोदी जी ने भी स्वीकार कर लिया है। बदलाव की आंधी इस बार पूरब से शुरू हो रही है। पूरब में पहले मणिपुर जला और जलता ही रहा। आज भी जल रहा है। मणिपुर की आग ऐसी निकली की झुलसने के डर से माननीय प्रधानमंत्री वहां चाहकर भी नहीं गए। मणिपुर तो छोड़िये वे उस मिजोरम में भी नहीं गए जहां कल विधानसभा के लिए मतदान हो चुका है। मिजोरम में बहुत बड़ी संख्या में मतदान हुआ है। मिजोरम में चुनाव प्रचार का बहिष्कार कर भाजपा और मोदी ने पहले ही हार मान ली है।

ये पूरब के वे ही राज्य  हैं जहां पहले प्रधानमंत्री जी ने   50  से अधिक दौरे किये थे। मोदी जी ने भांप लिया की पूरब  में फिलहाल भाजपा की दाल गलने वाली नहीं है। मिजोरम के साथ ही कल छत्तीसगढ़ में भी मतदान का पहला चरण नक्सलियों के विरोध के बावजूद सम्पन्न हो गया। यहां भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी ने हालाँकि पूरा कस-बल लगाया है और आखिर-आखिर में महादेव ऐप में भ्र्ष्टाचार का नमक भी मिलाया ,लेकिन यहां भी भाजपा की दाल गलती दिखाई नहीं दे रही।  बदलाव की आंधी जो चल रही है।

कायदे से इस आंधी में सत्तारूढ़ कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार को उखड़ जाना चाहिए था,लेकिन कांग्रेस ने पांच साल में छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लोगों को अच्छे दिन दिखाए हैं उनके चलते महादेव ऐप का कथित भ्र्ष्टाचार भी दबता नजर आ रहा है। हालाँकि हम चाहते हैं कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच भी हो और दोषियों को सजा भी मिले। बदलाव तो राजस्थान के डीएनए में भी है। यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की एक अघोषित रिवायत है। किन्तु इस बार लग रहा है कि राजस्थान भी इस रिवायत को बदलते दिखाई दे रहा है।

 यहां भी बात छत्तीसगढ़ जैसी ही है। यहां जादूगर  अशोक का जादू काटने में भाजपा को पसीना आ रहा है ,हालाँकि  भाजपा की मोदी- शाह की जोड़ी ने यहां भी पसीना तो खूब बहाया है।राजस्थान में भाजपा का तम्बू 2018  में उखड़ा था।  राजस्थान की सीमा से लगे मध्यप्रदेश में भी बदलाव की सुगबुहाट साफ़ सुनाई और दिखाई दे रही है ।  यहां तीन दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा को कांग्रेस के साथ ही अपनों से यानि बागियों से भी लड़ना पड़ रहा है। ये बाग़ी ही सत्तारूढ़ भाजपा के दुर्ग में आग  लगा रहे हैं।  

यहां तीन साल पहले जैसे तैसे 2018  में ढहे अपने दुर्ग पर काबिज हुई भाजपा के सामने अपने दुर्ग को  बचाने के लिए एक-एक सीट का महत्व है जबकि यहां तो पूरी 30  सीटें खतरे में हैं।यहां कांग्रेस के जय-वीरू को जोड़ी भाजपा के लिए सबसे बड़ी बाधा है। सुदूर दक्षिण में भाजपा को बदलाव की आंधी चलती दिखाई दे रही है। कर्नाटक से उठी इस आंधी का रुख अब तेलंगाना कि और है।  खुद मोदी जी ने कहा है कि तेलंगाना में बदलाव होगा,किन्तु सवाल ये है कि इस बदलाव में भाजपा की कितनी भूमिका होगी,क्योंकि यहां यदि बदलाव हुआ भी तो भाजपा मुख्य प्रतिद्वंदी दल है ही नही।  यहां तो मोर्चे पर कांग्रेस खड़ी दिखाई दे रही है।

बहरहाल जो भी है सब भविष्य के गर्त में है ,भविष्य के बारे में ज्योतिषी ही गुणा-भाग कर सकते है। हम तो केवल अनुमान लगा सकते हैं ,वो भी मोदी जीकी ही तरह। इन पाँचों राज्यों के चुनाव में जनता से जुड़े असल मुद्दे उभरते-उभरते रह गये।  कांग्रेस और भाजपा ने शुरूमें जनता से जुड़े मुद्दों पर राजनीति की ,किन्तु कांग्रेस ने अचानक हवा का रुख बदल दिया। कांग्रेस ने स्थानीय गारंटियों के अलावा जैसे ही जातीय जनगणना की बात   की वैसे ही भाजपा की हवा   खुश्क हो गयी। अब भाजपा भी जातीय जनगणना के जबाब में ओबीसी का मुद्दा उठा रही है।  

भाजपा की पूरी कोशिश है कि कैसे भी वो कांग्रेस को ओबीसी विरोधी साबित कर दे। खुद मोदी जी को पहली बार कांग्रेस द्वारा बनाई गयी पिच पर खेलना पड़ रहा है। वे बार-बार कांग्रेस को ओबीसी विरोधी बता रहे है। दलित महिला  राष्ट्रपति से लेकर ओबीसी सूचना आयुक्त की नियुक्ति तक का जिक्र उन्हें करना पड़ रहा है। यानि कांग्रेस ने भाजपा को अपनी ही जांघ उघाड़कर दिखने पर विवश कर दिया है।

सबसे  ज्यादा हैरानी की बात ये है कि जातीय  गणना का बोतल में बंद जिन्न बाहर निकालने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक इस मामले में अपना संयम  भूल गए है।  उन्होंने राज्य विधानसभा में इस मुद्दे पर बोलते हुए जिस तरह की शब्दावली और मुहावरे का इस्तेमाल किया है उसे पूरे देश में महिला विरोधी और अपमानजनक माना जा रहा है।

आपको याद दिला दूँ कि  इस देश में राजनीति की रेल को बेपटरी करने के लिए हर बार फिश प्लेटें निकालने के लिए कोई न कोई सामने आ ही जाता है। 2014  में भाजपा थी ,तो अब 2023  में जेडीयू और कांग्रेस है जो पटरी बदलकर सत्ता की रेल को अपने स्टेशनों पर लाकर खड़ी करना चाहती है।  बसपा और सपा जैसे राजनीतिक दल हड़बड़ाकर राजनीति की रेल से उतर कूदने की कोशिश भी करते दिखाई दे रहे हैं।

मध्य्प्रदेश में आईएनडीआइए [इंडिया ] की रेल में स्वर सपा के अखिलेश यादव की परेशानी मध्य्प्रदेश में साफ़ दिखाई दे रही ह। उनकी ही तरह परेशां आम आदमी पार्टी भी है। कुल जमा सबको दिखाई दे रहा है की कहीं न कहीं कुछ न कुछ बदलने  जा रहा है। जनता खुद इस बदलाव की ध्वजवाहक है। मोदी जी और राहुल गाँधी तथा नितीश कुमार की अपनी भूमिकाएं हैं।

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