बसपा के लिए आसान नहीं है अकेले चुनाव 

लड़ने की राह : क्या कांग्रेस से होगा दोस्ताना ?

बहुजन समाज पार्टी ने काफी पहले घोषणा कर दी थी कि वह आने वाले लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। और अकेले दम पर चुनाव लड़ेंगी। बसपा की इस घोषणा के बाद भी इंडिया गठबंधन के कई नेताओं को विश्वास था कि देर सबेर सही मायावती को मना लिया जाएगा। लेकिन इसकी संभावना अब कम ही नजर आ रही हैं। क्यों कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में जो तनाव व्याप्त हुआ है उसने लोकसभा चुनाव तक गठबंधन की एकता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
 
मायावती कभी कच्ची गोलियां नहीं खेलतीं। शायद यह आभास उनको पहले ही हो चुका था। क्यों कि जब देश में समूचा विपक्ष एकजुट हो रहा था उस समय उनके अकेले चुनाव लड़ने के फैसले पर तमाम तरह के प्रश्न सामने आ रहे थे। लेकिन शायद मायावती जहां देख रहीं थीं। उस ओर किसी की नजर भी नहीं गई होगी। पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती ने समाजवादी पार्टी से उत्तर प्रदेश में गठबंधन किया था। तब सपा से एक सीट ज्यादा ज्यादा लेकर वह तैयार हुईं थीं। और तीन सीटें राष्ट्रीय लोक दल के लिए छोड़ी गई थीं। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो समाजवादी पार्टी को पांच सीटों पर ही विजय मिल सकी जब कि बहुजन समाज पार्टी के दस प्रत्याशी जीत कर लोकसभा में पहुंचे।
 
इस चुनाव परिणाम को देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि सपा का वोट तो बसपा में ट्रांसफर हुआ है लेकिन बसपा का वोट पूरी तरह से ट्रांसफर नहीं हुआ। यदि वोट ट्रांसफर हुआ होता तो सपा को केवल पांच सीटों पर ही विजय नहीं मिलती। दस सीटें जीतने के बाद भी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने उल्टा आरोप सपा पर लगा दिया कि समाजवादी पार्टी का वोट बसपा में ट्रांसफर नहीं हो सका।यह कहकर उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया।
                       
इसके बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में बसपा और सपा अलग अलग चुनाव लड़ें सपा तो 115 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में आ गई लेकिन बसपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। वह यहां केवल एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी। यहां बसपा के इतने ख़राब प्रदर्शन के वारे में शाय़द किसी ने नहीं सोचा होगा। विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद बसपा की स्थिति अस्तित्व बचाने की बन गई। और इस स्थिति में उसके अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा ने सभी को चकित कर दिया।
 
लेकिन कहते हैं न कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता और हर पार्टी अपना प्लान बी हमेशा तैयार रखती है। समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से तल्खी बता रही है कि लोकसभा चुनाव के समय कुछ भी हो सकता है। जब से मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में में सपा और कांग्रेस का गठबंधन नहीं हो पाया तब से अखिलेश यादव कांग्रेस पार्टी पर काफी हमलावर हो गये हैं। हालांकि कांग्रेस के नेता अब अखिलेश यादव के खिलाफ बयानबाजी करने से बच रहे हैं। कांग्रेस उ. प्रदेश में बिना गठबंधन के चुनाव में नहीं उतर सकती यदि उतरती है तो उसको एक एक सीट के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। इसी का फायदा उठाकर समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन की बात रखी।
 
और गठबंधन न होने पर उसने तुरंत ही मध्यप्रदेश में अपने 50 से अधिक प्रत्याशी लड़ाने की घोषणा कर दी। और कांग्रेस को धमकी दे दी कि समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 65 सीटें अपने पास रखेगी। वाकी की बची 15 सीटें ही विपक्ष के लिए छोड़ेगी। समाजवादी पार्टी के इस क़दम से कांग्रेस सकते में है। और वह इस विकल्प की तलाश भी कर रही है कि यदि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूटा तो उसका अगला कदम क्या होगा। कांग्रेसी नेता समाजवादी पार्टी के बाद बहुजन समाज पार्टी से नजदीकी बनाने में जुट गए हैं।
 
हालांकि अभी मायावती की तरफ से इस ओर कोई इसारा नहीं हुआ है। लेकिन वह फिर भी आश्वस्त हैं कि बसपा से गठबंधन हो सकता है। बसपा का भी यह प्लान बी है। क्यों कि वह जानती है कि इंडिया गठबंधन में शामिल होकर उसे अधिक सीटें नहीं मिल सकतीं और यदि दो दलों के बीच गठबंधन होता है तो यह बसपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। 
                                 
मायावती की सोच कुछ इस तरफ ही है वह नहीं चाहतीं कि अपने दलित वोटों का बंटवारा करें। क्यों अभी तक दलित वर्ग ही ऐसा वोट बैंक है जो पूरी तरह से एक ही पार्टी के साथ है वाकी के अन्य वोट बैंक समय समय शिफ्ट होते रहते हैं। यहां तक कि यादव वोटों के बिखराव को भी समाजवादी पार्टी नहीं रोक सकी। बसपा की ताकत दलित वोट बैंक ही है। और वह दलित मुस्लिम मतों को मिलाकर ही रणनीति बनाती है।
 
एक समय में यही वोट बैंक कांग्रेस के पास था। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस का ये वोट बैंक बसपा की गिरफ्त में आ गया। और इसीलिए कांग्रेस बसपा की तरफ अभी से देखने लगी है। यदि इंडिया गठबंधन टूटता है तो यह निश्चित है कि कांग्रेस बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी। इधर हाल ही में उ. प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में बसपा के प्रदर्शन को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि बहुजन समाज पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में लगी है। केवल दलित वोटों के साथ चुनाव में जीत हासिल नहीं की जा सकती। और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही है।
 
पिछले विधानसभा चुनावों में यह देखा गया है कि जिन सीटों पर सपा बसपा दोनों पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा वहां पर समाजवादी पार्टी ही चुनाव जीती। उत्तर प्रदेश में चुनावों में बहुजन समाज पार्टी सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवार बनाती है। बसपा के यह उमीदवार वहीं पर प्रदर्शन ठीक कर पाते हैं जब उस सीट पर सपा का मुस्लिम उम्मीदवार न हो। मायावती ने अकेले चुनाव में उतरने की घोषणा तो कर दी लेकिन वह भी जानती है कि यह राह उसके लिए आसान नहीं रहने वाली है। 
                                 
उत्तर प्रदेश में इस समय भारतीय जनता पार्टी से टक्कर लेने वाला कोई राजनैतिक दल है तो वह समाजवादी पार्टी ही है। और इसीलिए सारे विपक्षी दलों की निगाहें यहां समाजवादी पार्टी पर ही हैं। समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ समय से दलित प्रेम ज्यादा दिखाया है। और इसीलिए मायावती सपा से दूरी बनाए रखना चाहती हैं। और कुछ समय में बहुजन समाज पार्टी में काफी टूट हुई है उसके तमाम नेता या तो भारतीय जनता पार्टी की तरफ रुख कर गए हैं या समाजवादी पार्टी की तरफ। लेकिन मायावती यह जानतीं हैं कि उनका बेस वोट बैंक उनसे कोई नहीं छीन सकता है।
 
लेकिन दलित वोटों के सहारे ही चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसीलिए बसपा को भी किसी ऐसे साथी की जरूरत है जो दूसरे वोट बैंक को मिलाने में उसकी मददगार साबित हो सके। और अब यह समझा जाने लगा है कि यदि किसी कारणवश उत्तर प्रदेश में सपा से गठबंधन टूटा कांग्रेस बसपा से गठबंधन करने में कोई भी शर्त मानने को तैयार होगी। फिर नतीजा चाहे कोई भी हो। विपक्ष भी जानता है कि वह भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला उनका वोट बैंक छीनकर नहीं कर सकता। यदि विपक्ष को मुकाबला करना है तो उसे अपने ही बिखरे हुए वोट बैंक को एक जगह लाना पड़ेगा। अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर हैं।
 
उसके ठीक बाद अगले वर्ष लोकसभा के आम चुनाव होने हैं। मध्यप्रदेश में सपा और बसपा भी चुनाव मैदान में हैं और मजबूती से चुनाव लड़ रही हैं। हालांकि सपा बसपा जो भी मत हासिल करेंगी वहां वह कांग्रेस का ही नुकसान करेंगी। यह विपक्ष के सामने बहुत बड़ा संकट है।  विपक्ष पिछले एक दशक से अपने वोटों के बिखराव के कारण ही सत्ता से दूर है। इस बार के चुनावों में वोटों के इसी बिखराव को रोकने के लिए इंडिया गठबंधन बना ।
 
लेकिन गठबंधन बनते ही मायावती ने गठबंधन में शामिल न होकर अकेले चुनाव लड़ने एलान कर दिया। हालांकि मायावती का विपक्ष से दूरी बनाना न तो विपक्ष के लिए सही था और न ही स्वयं मायावती के लिए। लेकिन उनकी दूरदर्षिता कुछ अलग ही देख रही है। यदि मायावती वास्तव में अकेले चुनाव लड़ती हैं तो निश्चित ही उनके लिए मुश्किल काम होगा। लेकिन वह विपक्ष का बहुत बड़ा नुक्सान कर देंगी। अब देखना यह है कि 2024 आते आते हाथी किस करवट बैठेगा।

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