लाखों जनपद वासी जहर पीने को है मजबूर

उन्नाव। जनपद में औद्योगिक जल प्रदूषण सालों से एक गंभीर समस्या है। इसके चलते स्थानीय लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ चुके हैं। किसी के लिवर और किडनी में प्रॉब्लम है तो किसी को त्वचा संबंधी समस्या आ रही है। सिर्फ इतना ही नहीं कैंसर जैसे गंभीर रोगों के शिकार होकर मौतों का आकड़ा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। हवा में तो मानो मौत घुल ही चुकी है। जी हां हम बात कर रहे हैं आर्सेनिक की, जो उन्नाव के पानी से लेकर हवा तक में घुल रहा है।
 
दरअसल कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी, वातावरण को गंभीर तौर पर प्रदूषित कर चुका है, जानकारी के मुताबिक लोगों में आर्सेनिक की वजह से बीमारियां बढती़ ही जा रही हैं। रही बात उन्नाव की तो यहां आर्सेनिक की मात्रा खतरे के निशान को पार कर चुकी है। यहां तक कि इस क्षेत्र के आस-पास की बात तो छोड़िए पूरे जिले में निवासियों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। लेकिन प्रशासन हो या स्थानीय नेता दोनों ही चुप्पी साधे हुए हैं। कीमत के आगे कीमती जिंदगियां घुट-घुटकर दम तोड़ रही हैं।
 
विकलांगता और सांस से जुड़ी तमाम बीमारियां लोगों को काल के गाल की ओर धकेलती जा रही है। जिले में बिना आर.ओ के पानी पीना मुश्किल हो गया जो की स्थायी समाधान नहीं दिख रहा है कुछ समय बाद आर.ओ भी जल्दी जल्दी खराब होने लगे हैं। उन्नाव ' 1994 में देश की सुर्खियों में आया जब पहली बार इसके भूजल में फ्लोराइड  की मौजूदगी के बारे में बताया गया जो पीने के पानी में डब्ल्यूएचओ की स्वीकार्य सीमा एफ - से लगभग सात गुना अधिक यानी 1.5 थी। 
 
जिले की फ्लोराइड समस्या को लेकर लगभग तीन दशक पहले समाज सेवी बाबा सिद्धनाथ तिवारी ने दिल्ली तक पैदल यात्रा की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री के निर्देश पर केंद्रीय जल बोर्ड ने जिले के पानी का परीक्षण कराया था। इसमें दो सैकड़ा गांवों के पानी में इतना अधिक फ्लोराइड मिला था जो पीने के अयोग्य था। केंद्रीय जब बोर्ड की रिपोर्ट फ्लोराइड की भयावह स्थिति को देखते हुए जिले में एक परियोजना और राजीव गांधी पेयजल मिशन योजना लागू की गई थी। लुंजपुंज परियोजना के विकास खंड सिकंदरपुर सरोसी और सिकंदरपुर कर्ण के 52 गांवों को जोड़ा गया था।
 
इसके तहत चंद्रशेखर आजाद मार्ग के निकट पानी की टंकी बनाई गई थी। लेकिन इस टंकी से बमुश्किल 10-12 गांवों को ही पानी मिल पाया। इस योजना पर लगभग 1.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे पर आज भी दर्जनों गांवों को शुद्ध पानी नसीब नहीं है। केंद्रीय जलबोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार 240 फिट गहराई तक का पानी पीने के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। शहर की 10 किमी परिधि में 140 फिट तक के पानी में इतनी अधिक फ्लोराइड की मात्रा जिसके बाद हड्डी टेढ़ी होने के साथ ही मानसिक अपंगता का लोग शिकार होने लगे ।
 
हिलौली ब्लाक क्षेत्र में तो दो दर्जन गांवों के पानी को पीने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। ब्लाक मुख्यालय और गांवों में विधिवत इसका बोर्ड लगाया गया था, जल निगम के अधिकारियों के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1 पीपीएम से अधिक होने पर पानी पीने के अयोग्य होता है। इन 2380 जल स्त्रोतों के पानी में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई है। फिर साल 2012 में सदर तहसील क्षेत्र के जल और वायु प्रदूषण से परेशान ग्रामीणों ने तत्कालीन कांग्रेसी सांसद अनु टंडन को अपनी इस समस्या से अवगत कराया था।
 
लेकिन महज आश्वासन के बाद उनकी उम्मीदों को ठंडे बस्ते में फेंक दिया गया। जहरीले पानी पर कई चैनलों की ओर से कई रिपोर्टस चमकाई गईं, लेकिन कैमरे की फ्लैश लाइट जब तक जलती रही तब तक लोग इसे गंभीरता से लेते रहे। लाइट बुझते ही यहां की मासूम जिंदगियां फिर अंधेरे में चली गईं। मुद्दा भी बिक गया, समस्या भी कीमती बोलियों की ऊंची आवाजों के सामने गूंगी हो गई। सांसद अन्नू टंडन की ओर से औद्योगिक जल प्रदूषण से उन्नाव को बचाव अभियान चलाया गया। पर उसका क्या असर रहा वो आज भी उन्नाव सदर व गांवों की बद्हाली बयां कर रही है।
 
कहीं न कहीं महज दिखावा बनकर रह गया वो आंदोलन, वो वादा, वो आश्वासन। हालांकि अन्नू टंडन ने ये कहा भी था कि वे इस गंभीर समस्या से वाकिफ है और सुधारने की कोशिश कर रही हैं। पर समस्या सुधरी नहीं और भी बिगड़ गई है। एक बार फिर राजनीति पर विश्वास अंधे कुएं में डाल दिया गया। आर्सेनिक के सवाल समस्या उसी के खेमे में जाते हैं जिसके पास क्षेत्रीय या फिर जिले की जिम्मेवारी होती है। पर सवाल उठते ही जांच का हवाला देते हुए आवाज को शांत कराने की कोशिश की जाती है। नेता जी के कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही मुद्दा फिर से दूसरे के पाले में चला जाता है। 
 
जनपद में हाल ये है की  बिना शोधित कर प्रदूषित पानी को सीधे लोनी व सिटी जेल ड्रेन के जरिये गंगा नदी में भेजने पर जिले में समय समय पर स्लाटर हाउस और टेनरियों को प्रदूषण विभाग द्वारा नोटिस जारी की जाती है लेकिन कुछ दिन बाद वही ढीलढाल रवैया के चलते फिर वही खेल शुरू हो जाता है। टेनरियों व स्लाटर हाउस प्रबंधन द्वारा अपने उद्योग का प्रदूषित पानी बिना शोधन के सीधे बहाया गया। इसकी जांच पड़ताल मार्च 2022 में हुई तो पता चला कि कई उद्योगों व स्लाटर हाउस से टैंकरों में भर प्रदूषित पानी रात में निकालकर खुले नालों में पलट दिया जाता है।  
 
नेशनल मिशन फ़ॉर क्लीन गंगा ने 13 अप्रैल को दही चौकी स्थिति सी.ई.टी.पी में छापा मारा था। टीम ने निरीक्षण करने के साथ इनलेट आउटलेट के साथ लोनी ड्रेन से अप स्ट्रीम और डाउन स्ट्रीम का नमूना भी लिया जिसमे जिमसें क्रोमियम की मात्रा पांच गुना अधिक मिली थी, इसके अलावा बीओडी सीओडी की। मात्रा भी बढ़ी मिली, जिसमे कई टेनरियों को बंद करने के आदेश भी दिए गए।
 
जाजमऊ और उन्नाव अन्य उद्योगों के अलावा, गंगा नदी के किनारे टेनरी उद्योगों (लगभग 450) के चमड़ा प्रसंस्करण समूहों के प्रमुख केंद्र हैं। जिले में तीन औद्योगिक क्षेत्र होने के बावजूद प्रदूषण रोकने के ठोस इंतजाम नहीं हैं। हालत ये है कि प्रदूषण पर रोक तो दूर निगरानी की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कहने को तो जल प्रदूषण रोकने और गंगा नदी में गंदा पानी जाने से रोकने के लिए दो औद्योगिक क्षेत्रों में सीईटीपी (कॉमन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगे लेकिन 200 से अधिक  उद्योगों में  कुछ 42 टेनरियां ही सीईटीपी से जुड़ी। अन्य से निकलने वाला गंदा पानी बिना शोधित किए ही नदी-नालों के जरिये गंगा में बहाया गया। 
 
लखनऊ कानपुर के बीच स्थित उन्नाव जिले का ज्यादातर इलाका गंगा नदी, सई नदी और लोन नदी के किनारे स्थित है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यहां के करीब 1200 सौ अधिक गांव के भूगर्भ जल में फ्लोराइड जैसे खतरनाक तत्व पाए गए और कहीं कहीं अन्य घातक तत्व भी मौजूद है। जिले के नवाबगंज, सिकंदरपुर सरोसी, पुरवा, असोहा, हसनगंज, सदर ,बीघापुर , एफ 84 आदि ब्लाकों के गांव फ्लोराइड की समस्या से प्रभावित है। साथ ही शहर व आसपास के भूगर्भ जल में फ्लोराइड व अन्य घातक पदार्थ मौजूद हैं। 
 
फ्लोराइड युक्त पानी के चलते यहां के लोग हड्डी की बीमारी से प्रभावित है। हालांकि लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध करवाने के लिए डीप बोर कर इंडिया मार्का हैंडपंप भी लगवाए गए, लेकिन फ्लोराइड के कारण लोहे के हैंडपंप भी जल्द ही जंग खा गए और खराब हो गए। फ्लोराइड युक्त पानी के चलते यहां के लोग हड्डी व दांत की बीमारी से प्रभावित है।  इस समस्या से निजात पाने के लिए जल जीवन मिशन के अंतर्गत हर घर नल योजना प्रस्तावित है। योजना के चौथे चरण में उन्नाव जिला को भी शामिल किया गया है।
 
जल जीवन मिशन योजना के तहत गंगा नदी से पानी लिफ्ट कर लोगों को पाइप लाइन के जरिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाया जाएगा । इस योजना के तहत जिले में पांच लाख नल लगाए जाने है । और यह योजना 2024 में पूरी होनी है। जल निगम अनुसार उन्नाव जिले के भूगर्भ जल में फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्व बढ़ते ही जा रहे है। इसलिए पहले यहां पर लोगों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चलाई गई लेकिन पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सकी।
 
इसके लिए अब भूगर्भ जल का प्रयोग न कर सतही जल जैसे नदी, बांध, बड़े तालाब आदि से पानी लिफ्ट कर फिर उसे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से फिल्टर करके आपूर्ति की जाएगी। बताया कि उन्नाव जिले में गंगा नदी से पानी लिफ्ट किया जाएगा।
सितम्बर 2023 की जानकारी के अनुसार एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) के तहत दही चौकी और बंथर औद्योगिक क्षेत्र के सीईटीपी (कॉमन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) को अपग्रेड किया जाएगा। इस पर 218 करोड़ रुपये खर्च होंगे। बंथर सीईटीपी पर 111 करोड़ और दही चौकी पर 107 करोड़ खर्च आएगा।
 
अत्याधुनिक उपकरण लगाकर क्रोमियम, फ्लोराइड, सीओडी (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड), पीएचबी, बीओडी और एसएस (सब स्टैंड सॉलिड) पानी से अलग हो जाएगा। इससे चर्म इकाइयों के उत्प्रवाह को सीईटीपी में साफ कर शुद्ध बनाने के बाद दोबारा प्रयोग में भी लाया जा सकेगा। पानी में हानिकारक तत्व न होने से गंगा भी प्रदूषण मुक्त होगी। अपग्रेडेशन में होने वाले खर्च का 25 फीसदी उन उद्यमियों को देना होगा जो इन ट्रीटमेंट प्लांट में उद्योगों का उत्प्रवाह (पानी) साफ करते हैं। वर्तमान में बंथर सीईटीपी के अपग्रेड करने का काम चल रहा है।
 
अधिकारियों का दावा है कि एक से दो साल में काम पूरा हो जाएगा। दही चौकी सीईटीपी को अहमदाबाद की कंपनी यूनीप्रो अपग्रेड करेगी। बंथर सीईटीपी का काम दिल्ली की ईएमएस इंफ्राकॉम के जिम्मे है। दही चौकी व बंथर सीईटीपी से लगभग 42 चर्म इकाईयां जुड़ी हुई हैं। वर्तमान में इन फैक्ट्रियों से निकलनेवाले रसायनयुक्त पानी से आसपास के गांवों का भूगर्भ इतना प्रदूषित हो चुका है कि पीना तो दूर उसे किसी भी काम में नहीं लाया जा सकता है। सबसे मुख्य समस्या यहां की टेनरियों से निकलने वाला केमिकलयुक्त पानी है। इससे पहले भी यहां ट्रीटमेंट प्लांट था लेकिन उससे निकलने वाला पानी पूरी तरह से शुद्ध नहीं होता था जिस कारण उसे दोबारा प्रयोग में नहीं लाया जा रहा था।
 
इसे शुद्ध करने के लिए ही अत्याधुनिक तकनीक के प्लांट का निर्माण कराया जा रहा है। बंथर में निर्माणाधीन प्लांट में अत्याधुनिक मशीनें लगाई जाएंगी। इसके जरिए एक दिन में पांच लाख 40 हजार लीटर पानी शोधित किया जा सकेगा। सीईटीपी के मैनेजर ने बताया कि नई तकनीक से बन रहे इस प्लांट की क्षमता पांच लाख चालीस हजार लीटर पानी है। इतना पानी रोजाना साफ हो सकेगा। जो दोबारा इन्हीं टेनरियों में प्रयोग होगा। जिसे दिल्ली की ईएमएस लिमिटेड कंपनी बना रही है। उधर, दही चौकी में भी प्लांट का काम होने को है। जनपद में कई दशकों से चली आ रही साफ पानी की प्रतीक्षा कब तक करनी पड़ेगी ये तो समय ही बता सकता है।

About The Author: Abhishek Desk