हे ईश्वर जमीं नही दी, आसमान तो दे

हे ईश्वर जमीं नही दी,आसमान तो दे,
थोड़ा जीने का अदद सामान तो दे।
 
बहुत अभिलाषा,लिप्सा,आकांक्षा नहीं, 
जीने का कोई तरीका आसान तो दे ।
 
रोज खाली हाथ लौटता हूं घर अपने, 
इंसानियत का भला करने का इमान तो दे।
 
गीली ठंडी जमीं पर सोता हूं मैं रोज, आसमानो को भेदने,तीर कमान तो दे।
 
बिना रोए दूध नहीं पिलाती मां बच्चे को, 
ना मांगू किसी से कुछ ऐसा वरदान तो दे।
 
बिना आवाज दिए देखता नहीं कोई,
मिल जाए सब को सब,ऐसा ज्ञान तो दे।
 
नन्हे हाथ मेरे पहुंचते नहीं तुझ तक,
ज्ञान के आलोक की कोई जुबान तो दे ।
 
मानव कल्याण की प्रार्थना करुं, संजीव,
ऐसा पवित्र,शांत, नितांत कोई स्थान तो दे।

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