संजीव-नी। कोई कविता नहीं लिखता

संजीव-नी।
कोई कविता नहीं लिखता 
सड़क के लिए?
सड़क बेचारी
कभी सुनसान, कभी बियाबान
कभी पथरीले, कभी कटीले,
भीड़ के हादसे को सहते,
मशीनी हाथियों का सैलाब
दर्द सहती, गुमसुम
चलती जाती है,
दर्द की अभिव्यक्ति
किससे कहें, किसकी सुने,
नियति उसकी दर्द झेलना ही है,
किसी को उसके दर्द से क्या दर्द,
हां कभी कोई लहूलुहान,
वक्त का मारा,
हादसों का शिकार
लग कर गले,
बहा जाता है रक्त
और दर्द के दो आंसू
एक अपने लिए और
एक शायद उसी की तरह
जीती और दर्द भोगती
सड़क के लिए,
वह घायल पथिक जानता है
इसका अपना कोई सगा नहीं,
इसे चलते जाना है
सिर्फ चलते जाना है,
सड़क की कोई आत्मा,
दिल या दोस्त नहीं,
कोई नहीं कहता कोई शब्द
और नहीं करता सार्थक संवाद
बेचारी सड़क के लिए,
गोष्ठी नहीं होती है,
कोई नहीं 
लिखता कविता 
सड़क के लिए?

About The Author: Abhishek Desk