रावण की ओट में सियासत की मजबूरी

रामलीला के मंचों से रावण दहन की ओट में सियासी दलों ने जमकर सियासत की और जनता ठगी से खड़ी देखती रह गयी, क्योंकि रामलीलाओं  में न असली राम लड़ रहे थे और न असली रावण जल रहे थे। सब कुछ नकली था। असली थे तो सिर्फ नेताओं के चेहरे और उनके भाषण। जिनमें राम का नाम ले-लेकर अपने विरोधियों की धज्जियां उड़ाई जा रहीं थीं। दिल्ली से पटना तक एक ही माहौल  था। राम और रावण तो केवल निमित्त थे।

दिल्ली में द्वारिका की रामलीला में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी आदत के मुताबिक मंच और माइक का पूरा इस्तेमाल किया।  उन्होंने जनता को विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ ही अपना और अपनी पार्टी का एजेंडा परोस दिया, इंदिरा गाँधी के बीस सूत्रीय कार्यक्रम  के जबाब में अपने दस सूत्रीय कार्यक्रम को परोसा। राम मंदिर और रामलला का जिक्र किया। अब चूंकि प्रधानमंत्री हैं तो कोई उन्हें मंच का दुरूपयोग करने से रोक भी नहीं सकता। मंच के दुरूपयोग को सदुपयोग मान लिया गया।आयोजकों ने भी पूरे मैदान में राम के बजाय मोदी जी के कटआउट लगाकर अपनी मोदी भक्ति का भरपूर मुजाहिरा किया।

देश की आर्थिक  राजधानी मुंबई में भी दिल्ली की तर्ज पर दशहरे पर जमकर राजनीति हुई ।  बाला साहेब की शिवसेना के दोनों गुटों ने एक-दूसरे के प्रति जमकर भड़ास निकाली। जनता रामलीला के बजाय शिवसेना की लीला देखकर दंग रह गया ।शिवसेना का एक धड़ा शिवाजी पार्क  में था तो दूसरा धड़ा आजाद पार्क में। शिवाजी पार्क में उद्वव ठाकरे ने गुजरात के अहमदाबाद में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के स्वागत पर भी सवाल उठाए। उद्धव ठाकरे ने कहा कि गुजरात में नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में पाकिस्तान के क्रिकेटरों का स्वागत फूलों की वर्षा की गई।

गरबा का नृत्य किया गया। ठाकरे ने कहा कि इन दृश्यों को देखने के बाद, उन्हें एक पल के लिए लगा कि पाक खिलाड़ी भाजपा में शामिल हो गए हैं क्या? ठाकरे ने कहा कि मौजूदा सरकार जनरल डायर सरकार है जिसने निर्दोष प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के गुट विधायकों की अपात्रता मामले का उल्लेख किया। इससे पहले शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अजित पवार और हसन मुश्ररिफ का हवाला देकर बीजेपी पर निशाना साधा।

आजाद मैदान में  शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री  एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर पलटवार किया। शिंदे ने कहा कि मैदान-स्थल महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि विचारधारा और विचार महत्वपूर्ण हैं। शिंदे ने कहा कि उनकी रैली में बाला साहेब के विचार हैं। एकनाथ शिंदे ने कहा कि असली शिवसेना आजाद मैदान में है। उन्होंने कहा कि सत्ता के लिए उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व को धोखा दिया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि आजाद मैदान आज आजाद शिवसैनिक जुटे हैं।
 रवां  के जरिये पटना मे भी पलटिक्स हुई।  

जेडीयू ने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अपने पांच प्रत्याशी उतारकर सपा की तरह ही आईएनडीआईए गठबनधन  के साथ घात किया। जम्मो-कश्मीर और काँगड़ा में भी रावण जलाये गए लेकिन वहां सियासत नहीं हो पायी ,हालाँकि कोशिश की गयी । दशहरे  के दिन पूरे देश में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए गए  वहीं बिसरख में  के बजाय शिव जी की पूजा की गयी।

उत्‍तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित सेक्‍टर-1 के पास मौजूद गांव बिसरख को रावण का गांव कहा जाता है.यहां  रावण दहन नहीं किया जाता है, उल्‍टा दशहरे पर रावण को बेटा मानकर याद किया जाता है. यहां की महिलाएं इस दिन रावण की जन्‍मस्‍थली पर बने अष्‍टकोणीय शिवलिंग की पूजा करने आती हैं. मान्यता  है कि यह वही शिवलिंग है जिसकी आराधना कर रावण ने भगवान शिव से वरदान प्राप्‍त किया था।

दशहरे पर भले ही देश भर में राम-रावण युद्ध हो,रावण के पुतले जलाये जाएँ लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुप्रीमो डॉ मोहन भागवत अपनी भागवत बांचते है ।  इस बार भी वे चुप नहीं रहे ,बोले ।  उन्होंने  मणिपुर के मुद्दे पर वो सब कह दिया जो माननीय प्रधानमंत्री कहने   में हिचकते रहे।  

भागवत ने कहा कि -संघ प्रमुख ने कहा कि मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है कि लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ।

वर्षों से वहां पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है।

रावण तो श्रीमती सोनिया गांधी ने भी लाल किले के मैदान में जलाया लेकिन उन्होंने वहां कोई राजनीतिक भाषण नहीं दिया। उनकी पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष  मल्लिकार्जुन खड़गे भी वहां थे,चाहते तो वे भी प्रधानमंत्री जी की   तरह ही अपने बीस सूत्रीय कार्यक्रम पर बोल सकते थे,लेकिन वे शायद रावण,राम और जनता को नाराज नहीं करना चाहते थे ,इसलिए राजनीति पर नहीं बोले। धार्मिक मंचों की सुचिता बचने के लिए भी तो एक-दो दल होना चाहिए ,की नहीं ? कांग्रेस ने दशहरे के दिन शुभकामनाओं के साथ ही अपने प्रतिद्वंदियों की गालियां खाईं।  वैसे भी प्रधानमंत्री जी गलियों को स्वास्थ्यवर्द्धक मानते हैं।

देश में पहली बार ऐसा लगा की किसी को रावण से कोई मतलब नहीं है। सभी को अपनी-अपनी राजनीति और छवि की फ़िक्र है ।  फिर चाहे वो भाजपा हो,संघ हो या शिवसेना। कांग्रेस तो जाहिर तौर पर सभी  के लिए रावण है ही।लोकतंत्र में परम्पराओं और धार्मिक आस्थाओं कि मंचों का ऐसा दुरूपयोग आखिर कौन रोकेगा ? इसके लिए तो कोई कानून फिलहाल है नही।  धर्म और राजनीती का कॉम्बो शेक बनाया और बेचा जा रहा है। अब मर्जी है, आपकी की आप इसे पियें या न पियें।

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