राजनीति की रेल, हालाँकि डबल इंजन फेल

भारत की जनता को बधाई कि उसे बुलेट ट्रेन के  बदले में जो तेज रफ्तार रेल मिली है ,उसमें बैठने से पहले हर रेल यात्री को कम से कम एक-दो बार तो ' नमो' नमो' कहना ही पडेगा। टिकिट  खरीदते  समय ,टिकिट रद्द करते समय। घर वालों को भी बताते समय नमो-नमो करना जरूरी भी है और मजबूरी भी।  

जीते जी अमरत्व पाने की ये बीमारी कांग्रेस के नेताओं से होती हुई अब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तक आ पहुंची है ।  रेल मंत्री और रेल मंत्रालय ने नई तेज गति की रेल का नामकरण करते हुए  माननीय प्रधानमंत्री जी की वंदना  करने का अद्भुद प्रयास किया है। रोजाना करीब ढाई करोड़ यात्रियों को आवागमन की सुविधा देने वाली भारतीय रेल भले ही दुनिया की छोटी बड़ी रेल सेवा है लेकिन आज भी रफ्तार और जन सुविआधाओं के मामले में दूसरे देशों से बहुत पीछे है।

भारतीय रेल नेताओं की वंदना में जरूर दुनिया में नंबर एक पर है और नयी रेल का नाम ' नमो ' रखने के बाद तो भारतीय रेल चमचत्व में विश्व गुरु बन गयी है। भारतीय रेल ने एक ऐसे व्यक्ति के नाम पर रेल चलाई है जिसका योगदान भाजपा के ही लालजी भाई और अटल बिहारी से भी ज्यादा आंक लिया गया है।

'नमो ; का पूरा अर्थ है ' नरेंद्र मोदी '। भारतीय राजनीति का ये पहला ऐसा नाम है जो एक साधारण परिवार से राजनीति में आकर हर मामले में असाधारण हो जाना चाहता है।  असाधारण होने  की महत्वाकांक्षा बुरी बात नहीं है लेकिन जब इस महत्वाकांक्षा के पीछे वैसी ही कामना हो जैसी कांग्रेस में थी तो सवाल खड़े किये जा सकते हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी ने खुद को अजर-अमर बनाने के लिए रेल का नाम 'नमो ' रखने पर कोई आपत्ति नहीं  की ।  

कभी नहीं कहा कि- उनकी अपनी पार्टी में उनसे पहले भी एक से बढ़कर एक बड़े नेता हुए हैं जिनके नाम पर इस नई रेल का नाम रखा जा सकता है। नामी होने की  बात आयी तो वे सभी को भूल गए ।  यहां तक की एकात्म मानवतावाद के जनक दीन दयाल उपाध्याय को और श्यामा प्रसाद मुखर्जी  को भी। अटल-आडवाणी को भुलाना तो उनकी विवशता थी ही।

नयी रेल के नामकरण को लेकर राजनीतिक आपत्तियां आएँगी ये सबको पता था इसीलिए गोदी  मीडिया के जरिये देश को ये बताया जा रहा है की ' नमो ' का अर्थ नरेंद्र मोदी नहीं बल्कि कुछ और है। सफाई दी जा रही है कि ' नमो '  शब्द  सनातन धर्म  से लिया गया है ।

हिंदू धर्म में नमो का मतलब भगवान से होता है। जब भगवान को नमस्कार किया जाता है तब हम नमो शब्द का उपयोग करते हैं। इसका उपयोग वास्तव में सनातन धर्म के मंत्रों से संबंधित है। मेरे ख्याल से हमें अब ' नमो' नाम पर आपत्ति करने के बजाय नमो का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने देश को बुलेट ट्रेन के एवज में कम से कम नमो ट्रेन तो दी।

वे यदि अपने दूसरे वादों की तरह यदि इस ट्रेन को न भी देते तो आप नमो का क्या बिगाड़ लेते ? कुछ वर्ष  पहले जब मै चीन   की यात्रा पर गया था तब मैंने वहां भारत की नयी नमो रेल से भी कहीं बढ़िया बुलेट ट्रेन देखीं थीं ।  एक ट्रेन तो 'मेग्लेव ट्रेन' थी जो 450  किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है लेकिन  उसका नाम ' शी जिन पिंग   ' रेल नहीं था। उसका नाम चीन के गांधी माओ के नाम पर भी नहीं था।

लगता है कि चीनी सरकार और जनता नाम का महत्व समझती ही  नहीं है। हम रफ्तार के मामले में चीन और जापान का  अनुशरण करते हैं ,अब लगता है कि ये दोनों  देश नामकरण के मामले  में भारत की नकल करेंगे। भारत में रेलें व्यक्तियों,नदियों और नमो के नाम पर भी चलाई जाती हैं।

कहते हैं कि भारत में पहली ट्रेन 1837 में मद्रास में लाल पहाड़ियों से चिंताद्रीपेट पुल लिटिल माउंट तक  चली थी. इसे आर्थर कॉटन द्वारा सड़क-निर्माण के लिए ग्रेनाइट परिवहन के लिए बनाया गया था | इसमें विलियम एवरी द्वारा निर्मित रोटरी स्टीम लोकोमोटिव प्रयोग किया गया था 25  किमी तक चलाई गयी इस रेल का नाम भी किसी अंग्रेज के नाम पर नहीं रखा गया था ,लेकिन 186  साल बाद हमने ये गलती सुधर ली और मात्र 17  किमी का सफर तय करने वाली रेल को नमो नाम दे दिया।

इस रस्ते में 5  स्टेशन पड़ेंगे। ये नमो रेल बहुत कस-बल लगा ले तो भी 180  किमी प्रति घंटा से ज्यादा नहीं दौड़ सकती। हालाँकि में ये रेल भी 130  किमी प्रति घण्टे के हिसाब से ही दौड़ सकती है। लेकिन दौड़ेगी नही।  दौड़ेगी तो 100  किमी प्रति घंटे के हिसाब से ही। लेकिन आप इसे झुनझुना नहीं कह सकते।

नयी रेल हर मामले में बेहतर है ,लेकिन इसमें आम जनता के लिए कोई कोच नहीं है ।  इस नई रेल में स्टेंडर्ड और प्रीमियम कोच हैं। इस रेल में चढ़ने के लिए कम से कम 40  रूपये चाहिए । भविष्य में ये रेल दिल्ली से मेरठ तक चलेगी और 55  मिनिट में ये सफर पूरा करेगी जो आज ढाई घंटे लगता है।  

भारत के रेल मंत्री कहने को अश्विनी वैष्णव है लेकिन सबसे जायदा हरी  झंडियां प्रधानमंत्री जी ने दिखाई हैं। मोदी जी प्रधानमंत्री के साथ ही रेल मंत्री की भूमिका में दिखाई देते हैं। प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारतीय रेल ने बहुत प्रगति की है। भारतीय रेल ने देश के वरिष्ठ नागरिकों से तमाम रिययतन छीन ली है।  आम जनता से उनकी रेलें छीन ली हैं।

बदले में उन्हें नमो रेल उपलब्ध कराई है। ताकि देश जब विश्व गुरु बने तब उसके पास भी चमचमाती हुई रेलें और रेल स्टेशन हों।
हमारे देश में भले ही रेलवे एक बहुत बड़ा विभाग है लेकिन इस विभाग का अब स्वतंत्र  बजट नहीं बनाया जाता। पहले बनाया जाता था।  देश की जनता आम बजट की तरह रेल बजट का भी इन्तजार करती थी।  

रेल बजट देश के विकास की एक झलक पेश करता था।अखबार और बाद में टीवी चैनलों के लिए भी रेल बजट और रेल मंत्री रूचि का विषय हुआ करते थे किन्तु मोदी सरकार ने ये सब बंद कर दिया। अब न देश को रेल बजट का पता चलता है और न रेल मंत्री के नाम का। रेल भी भक्तों की तरह नमो-नमो जपती नजर आने लगी है।  कोशिश ये है कि रेलों के जरिये भी देश नमो-नमो करे।  सेना के जरिये ये काम करने की योजना बन ही चुकी है।  सेना सीमाओं पर रहे या मैदान में अब विकास के गीत जाएगी।

हमारी सरकार विकास से ज्यादा ध्यान नामों पर देती है। उसे पता है कि नाम के बिना कुछ बनता ही नहीं है। नाम है तो नामा भी होगा और नाम नहीं है तो कोई राम-राम भी नहीं करने वाला। नमो रेलें दिल्ली के अलावा हरियाणा और राजस्थान में भी चलाई जा सकतीं ह।

कायदे से प्रधानमंत्री जी अभी राजस्थान का नाम नहीं ले सकते थे क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव हैं और आदर्श आचार संहिता लगी है लेकिन प्रधानमंत्री जी  पर ये तमाम संहिताएं कहाँ लागू होती हैं ? वे सबसे ऊपर हैं ,और जो सबसे ऊपर होता है उसके ऊपर कुछ भी लागू नहीं होता। गनीमत है कि उन्होंने नमो रेल चलने वाले राज्यों में मध्यप्रदेश और छग तथा तेलंगाना का नाम नहीं लिया।

मिजोरम को तो रेल चाहिए ही नहीं।  रेलें नमो-नमो जपें या कुछ और हमें और आपको इसे मतलब नहीं होना चाहिए। हमें तो ध्यान रखना चाहिए कि हम उस भारत में हैं जिसमें नमो-नमो करना धीरे-धीरे अनिवार्य होता जा रहा है। नमो रेल के लिए देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई और नमो जी का हार्दिक आभार।

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