जैसा प्रदेश वैसे ही मुद्दे

भाजपा का हिंदुत्व और कांग्रेस का ओबीसी कार्ड

स्वतंत्र प्रभात: जितेन्द्र सिंह पत्रकार

चुनाव की घंटी बज चुकी है, पांच राज्यों में स्थितियां अलग अलग हैं इसलिए एक ही मुद्दे पर चुनाव लड़ पान प्रत्येक पार्टी के लिए मुश्किल है। पार्टियों ने प्रदेश की स्थिति के अनुसार ही मुद्दे उछालने शुरू कर दिए हैं। हर राज्य में न तो हिंदुत्व के सहारे चुनाव जीता जा सकता है और न ही जातिगत तरीके से। कहीं आदिवासियों के विकास का मुद्दा है तो कहीं जाति विशेष का मुद्दा उठा है। हिंदुत्व को वहीं उठाया जा रहा है जहां अन्य मुद्दों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता दिखाई दे रहा है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और मिजोरम सभी राज्यों के मुद्दे अलग अलग हैं।

जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदिवासी बहुल इलाकों में रैली करते हैं तो कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन का काफी समय आदिवासियों के बीच गुज़ारा है तो हम आदिवासियों की समस्याओं को अच्छी तरह से समझते हैं। वहीं कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी जब मध्यप्रदेश में रैली करते हैं तो जातीय गणना का मुद्दा उठाने की पूरी कोशिश करते हैं। वैसे अगर मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों की बात की जाये तो यहां हिंदुत्व और जाति कार्ड का खेल होना तय है। क्यों कि यहां कि स्थिति उत्तर प्रदेश से काफी मेल खाती हुई दिखाई देती है।

राजस्थान और मध्यप्रदेश के काफी हिस्से में गुर्जरों की समस्याओं का चुनाव में काफी अहम रोल रहता है। इसलिए गुर्जर प्रभावी क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेताओं को इन इलाकों में उनको साधने के लिए। उनके रोल तय कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ तेलंगाना और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी नेताओं को तैनात कर दिया गया है। और उनकी मांगों या जरुरतों के हिसाब से मुद्दे तय किए गए हैं। कुल मिलाकर स्थिति यही है कि जैसा क्षेत्र और वैसे ही मुद्दों को उठाया जा रहा है।

बिहार की जाति गणना के सार्वजनिक होने के बाद से राहुल गांधी ने पूरे देश में जाति गणना कराने की मांग को मुद्दा बना दिया है और वह अपने हर मंच से केन्द्र सरकार द्वारा जातीय गणना कराने की मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी का कहना है कि यदि उनके गठबंधन की सरकार बनती है तो वह देश में जातीय गणना अवश्य कराएंगे जिससे हर जाति को उसकी संख्या बल के हिसाब से समाज में हिस्सेदारी मिल सके।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी जातीय गणना के मुद्दे पर बात करने से बच रही है। उसका मानना यह है कि जातियों से बांटने में हिंदुत्व का मुद्दा दब जायेगा और इसीलिए वह विपक्ष पर आरोप लगा रही है कि वह हिंदुओं के जातियों में बाटने की राजनीति कर रहा है। लेकिन वहीं उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो उसके घटक दल भी जातीय गणना का समर्थन कर रहे हैं और सारे देश में जातीय गणना की मांग कर रहे हैं।

और जातीय समीकरण साधने के लिए भाजपा समर्थित गठबंधन एनडीए इन जातिवादी दलों को अपने साथ जोड़े हुए है। कुल मिलाकर भाजपा सामने न आकर अपने घटक दलों के द्वारा जाति समीकरण साधे हुए है। प्रत्याशियों का चयन भी जातीय समीकरण को साधते हुए किया जाता है। कोई भी दल कितना भी जाति गणना से अलग दिखे लेकिन जब प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार की जाती है तो उसमें जातिगत समीकरण को सीधे तौर पर देखा जा सकता है।

म.प्र. का ग्वालियर चंबल संभाग में बिना क्षत्रिय वोटों को साधे समीकरण तैयार नहीं किया जा सकता। क्यों कि इन क्षेत्रों में अच्छी खासी संख्या क्षत्रियों की है और इसके बाद गुर्जरों की संख्या भी यहां काफी मायने रखती है। इस क्षेत्र में पहले कभी माधव राव सिंधिया का अच्छा खासा प्रभाव था जो कि उनके बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संभाला है। लेकिन इस बार इस क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस से काफी कांटे की टक्कर मिलती दिखाई दे रही है। भारतीय जनता पार्टी ने सनातन का मुद्दा उत्तर प्रदेश से उठाना शुरू किया था।

लेकिन अब वह देश भर में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रही है। क्यों कि हिंदुत्व से भी अधिक सनातन धर्म को समर्थन मिल रहा है। देश में अधिकांश संख्या तो हिन्दू धर्म की है ही लेकिन उसमें तमाम जातियां समाहित हैं । और वहां अन्य जातिगत पार्टियां अपने अपने हिस्से के वोट का विभाजन करा लेती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सनातनी हिंदुओं का मुद्दा उछाल दिया है।

अब वह हिंदुत्व कम और सनातनी हिन्दू ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं। और इसका अच्छा खासा प्रभाव युवाओं पर पड़ा भी है। सनातन के नाम से ही एक खास हिंदू की पहचान होती है। विपक्ष अपने को हिन्दू तो आसानी से बतायेगा लेकिन सनातनी बताने में उसको भी असहजता का एहसास होगा। क्यों कि सनातन धर्म के मायने और उसके संस्कार अलग हैं ।

देश के पांचों राज्यों में जहां नवंबर दिसंबर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। सभी में अपने अपने मुद्दे व समस्याएं हैं। और उन्हीं को देखते हुए रणनीति तैयार कर एक दूसरे को घेरने की कोशिश की जा रही है अब देखना यह है कि कौन किसको कितना घेर सकता है और किन मुद्दों पर जनता को प्रभावित कर सकता है। तेलंगाना और मिजोरम की स्थिति वाकी के इन राज्यों से अलग है। यहां क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा कायम है।

कांग्रेस और भाजपा तो केवल उनका समर्थन कर सकती हैं। वाकी के तीन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर की संभावना दिखाई दे रही है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार को मजबूत स्थिति में देखा जा रहा है और मध्य प्रदेश और राजस्थान में दोनों दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद है। प्रत्याशियों के चयन में भारतीय जनता पार्टी ने तेजी दिखाई है वहीं कांग्रेस अभी भी तमाम जगहों पर प्रत्याशियों के चयन पर उलझी हुई है।

अभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एवीपी और सी-वोटर के सर्वे में मुकाबला एक दम कांटे का बताया गया है जिसमें कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से कुछ बढ़त मिलती दिखाई दे रही है। चुनाव को अब ज्यादा समय नहीं बचा है तो सभी पार्टियों में हलचल तेज हो गई है। देखना यह है कि कौन सी पार्टी किस मुद्दे से मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है। हिंदुत्व का मुद्दा कितना असर करेगा और जातीय गणना से कितना असर डाल पायेगा विपक्ष।

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