संजीव-नी कैसे जख्म दिखाएँ ज़माने को l

 
 
 
 
कैसे जख्म दिखाएँ ज़माने को,
हमेशा जहर दिया दीवाने को।।
 
नादाँ न समझ पाया जमाने को,
हमेशा हमदर्द समझा ज़माने को।
 
फरेब नहीं किया कभी किसी से,
मासूम,बूझ न पाया ज़माने को।
 
बन्दीश थी प्यार पर दीवाने की,
इश्क में प्यारा पैगाम दिया ज़माने को।
 
ग़ज़ल,आशिकी, दिवानगी बेमानी है 
आशिक है क्या समझेगा ज़माने को।
 
आवारा मसीहा था दीवाना,मस्ताना,
आशिक की फिक्र ही कहाँ ,जमाने को।
 
इश्क नेमत है, बताओ जरा ज़माने को,
मोहब्बत पाकीजा है समझा जरा ज़माने को,
 
छोङ आशिकी मनाले ज़माने को,
बन जा बाहुबली,चला ज़माने को।।
 
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़

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