कोटा की घटनाओं के लिए कौन है जिम्मेदार

 

 जितेन्द्र सिंह पत्रकार


राजस्थान का शहर कोटा आई आई टी कोचिंग के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। कोटा देश का सबसे बड़ा कोचिंग हब है जहां बड़े छोटे हर तरह के हजारों कोचिंग संस्थान हैं। कोटा वर्षों से आई आई टी प्रवेश परीक्षा में अच्छा परिणाम भी देता आ रहा है। हर अभिभावक का सपना बन गया है कि उनका बच्चा आई आई टी एक्जाम क्रेक कर के आई आईटियसं बने और लाखों का पैकेज पाए। और हद तो तब हो जाती है जब अभिभावक हाईस्कूल पास बच्चे को कोटा भेज देते हैं और आई आई टी की तैयारी शुरू करा देते हैं और इंटरमीडिएट के लिए किसी डमी स्कूल में एडमिशन करा देते हैं। ऐसे डमी स्कूल की व्यवस्था कोटा के कोचिंग संचालक रखते हैं। हाई स्कूल पास बच्चे की उम्र 14-15 वर्ष से अधिक नहीं होती है। इस उम्र तक बच्चों का पूरी तरह से मानसिक विकास भी नहीं हो पाता है और माता पिता उनको सैकड़ों किलोमीटर दूर पढ़ने के लिए भेज देते हैं। क्या यह बच्चों के साथ अत्याचार नहीं है। एक तो आई आई टी की तैयारी का दबाव दूसरे साथ साथ इंटरमीडिएट एक्जाम का प्रेशर बच्चों को अत्यधिक मानसिक परेशानी में डाल देता है। इसलिए कोटा में बच्चों की सुसाइड जैसी घटनाएं पनप रही हैं।

                      कोटा शहर में बड़े बड़े कोचिंग संस्थान हैं जो हाईस्कूल के बाद इंटरमीडिएट और आई आई टी एक्जाम पास कराने का जिम्मा ले लेते हैं। और माता पिता बड़ी प्रसन्नता से उनको यह जिम्मेदारी सौंप देते हैं। लाखों रुपए खर्च करके वो बच्चों को आई आईटियसं बनने का सपना बुनने लगते हैं। लेकिन यह नहीं देखते कि हमारे बच्चे का बौद्धिक स्तर क्या है। उसको इस सब्जेक्ट में रुचि है भी अथवा नहीं। हर बच्चे की बौद्धिक क्षमता एक सी नहीं होती कोई किसी फील्ड में अव्वल होता है तो कोई किसी अन्य फील्ड में अव्वल होता है। यहां सबसे जरूरी है

 हमें अपने बच्चों की च्वाइस को परखने की कि हमारे बच्चे क्या सहजता से कर सकते हैं। यदि हम उनकी क्षमता के विपरीत उन पर दबाव बनाएंगे तो कोटा जैसी घटनाओं को रोक पाना बहुत मुश्किल है। बच्चों की बात को मानें तो वहां पढ़ाई का प्रेशर बहुत रहता है। हर बच्चा उसको पूरा नहीं कर पाता है और उसे बेइज्जती महसूस होती है। बच्चों को एक तरफ माता पिता के द्वारा खर्च किए जा रहे पैसों का भी प्रेशर होता है और इस दबाव को वो इतनी कम उम्र में सहन नहीं कर पाते हैं तभी इस तरह की घटनाएं अभी हाल ही में हमें कोटा कोचिंग में देखने को मिल रही हैं।

                          ऐसा जरूरी नहीं है कि बच्चा कोटा कोचिंग से ही आई आईटियसं बने अब देश भर के तमाम शहरों में काफी अच्छी कोचिंग का विस्तार हो चुका है जिनमें तमाम तो कोटा कोचिंग की ही शाखाएं हैं। लेकिन शायद हमने कोटा को एक स्टेटस सिंबल बना लिया है। जब आई आई टी का रिजल्ट आता है तो तमाम हमने ऐसी सफलताएं देखीं हैं जिनका कोटा से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता।हमने एक गरीब के बच्चे को सफलता पाते देखा है। एक मजदूर, एक रिक्शा चालक, एक सब्जी विक्रेता के बच्चों को सफलता पाते देखा है। क्या इन सब के माता पिता कोटा के बड़े संस्थानों के खर्च को उठा सकते हैं।ये बच्चे स्वयं की काबिलियत से ऊंचे मुकाम पर पहुंचते हैं। माता पिता के साथ रहने वाले बच्चे का मानसिक स्तर ऊंचा होता है। परन्तु हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं और जानबूझ कर उन्हें बाहर जाने को मजबूर कर देते हैं तब होती हैं कोटा जैसी घटनाएं।

                        अभी हाल के दिनों में कोटा के शैक्षणिक संस्थानों में हमने बच्चों द्वारा काफी सुसाइड की घटनाओं को देखा है। लेकिन हम इससे भी सीख नहीं लेते। इतनी दूर बच्चों को भेजकर हमें यह तक पता नहीं होता कि बच्चे की मनोदशा क्या है वह प्रेशर को सहन कर पा रहा है अथवा नहीं। और हम गर्व से कहते हैं कि हमारा बेटा कोटा में आई आई टी की तैयारी कर रहा है। कोटा के कोचिंग संस्थान अब एक बहुत बड़े व्यवसायिक संस्थान बन गये हैं। वो हर हाल में चहते हैं कि हमारे संस्थान का रिजल्ट अच्छा आए। क्यों कि जिस संस्थान का जितना अच्छा रिजल्ट आयेगा उसकी उतनी ख्याति बढ़ेगी। और ज्यादा से ज्यादा बच्चा वहां एडमिशन के लिए पहुंचेगा। 

एक  कोचिंग संस्थान के संचालक, मोटीवेशनल, पूर्व आई ए एस विकास दिव्य कीर्ति सर जो कि सिविल सेवा जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी कराते हैं का कहना है कि जितने घंटे पढ़ाई करनी है मन लगाकर पढ़ो परिवार के सदस्यों के साथ भी बैठो और दोस्तों के साथ भी गपशप करो। लेकिन आपने पढ़ाई को अगर मन लगाकर कर लिया तो कहीं न कहीं यही पढ़ाई आपको सफलता के मुकाम पर पहुंचा देगी। और कोटा में पढ़ रहे बच्चे सैकड़ों किलोमीटर दूर सिर्फ पढ़ाई की तरफ ही रुख रख पाते हैं। याद रखना चाहिए कि हमें अपने बच्चों को सफल बनाना है और फिर वह सफलता किसी भी क्षेत्र में हो।

 हर बच्चे में एक अलग प्रतिभा छुपी होती है बस हमें उसकी प्रतिभा को पहचान कर उसका उत्साहवर्धन करना है। और अगर कहीं वो गलती कर रहा है तो उसको सही रास्ता दिखाना। हमको अपने दिखावे से बचना होगा बच्चों की इच्छा के अनुसार उनका उत्साहवर्धन करना होगा तभी हम अपने बच्चों के साथ न्याय कर पाएंगे और उनको आगे बढ़ता देख पाएंगे। लेकिन इसके विपरीत हम जो नहीं कर सके वह हम अपने बच्चों पर थोपते हैं और उसको कमजोर बनाते हैं। 

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