भारत का गौरव ! चन्द्रयान -3 की सफलता से दुनियां की टकटकी लगाए नज़र भारत पर 

जितेन्द्र सिंह पत्रकार

चन्द्रयान -3 की सफलता के बाद दुनिया भर की नजर भारत पर हैं क्योंकि हमारे वैज्ञानिकों ने वो उपलब्धि हासिल की है जो अब तक दुनिया के केवल तीन देश अमेरिका, रुस और चीन ही हासिल कर पाए थे। और अब इसमें चौथे देश के रूप में भारत ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। भारत की यह उपलब्धि इसलिए और ख़ास है क्योंकि चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश बन गया है।

यहां पर आसंका व्यक्त की गई थी कि इस सतह पर बर्फ और पानी हो सकता है तो वहां पर यान को लैंडिग कराना खतरे से खाली नहीं था। भारत की इस उपलब्धि पर दुनियां भर की सरकारें वैज्ञानिक और समाचार पत्र भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दे रहे हैं। अब हमारा देश भी तकनीकी रूप से सम्पन्न हो चुका है। और अब हम किसी से पीछे नहीं हैं।

                          चन्द्रयान -3 की सफलता में इसरो प्रमुख एस सोमनाथ के नेतृत्व में सैकड़ों इसरो वैज्ञानिकों के योगदान को हम कभी भी नहीं भुला सकते। इसके लिए हमारे सभी वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। यहां पर हम भारतीय विज्ञान के जनक डॉ विक्रम ए साराभाई के उस योगदान की बात किये बिना नहीं रह सकते जिनके अथक प्रयास से इसरो जैसे संस्थान की नींव पड़ी थी। इसरो वेवसाईट के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो ) भारत की अंतरिक्ष एजेंसी है इस संगठन में भारत और मानव जाति के लिए ब्राह्म अंतरिक्ष लाभों को प्राप्त करने के लिए

 जिनमें विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रोद्योगिकी शामिल हैं। प्रारंभ में इसरो को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) के नाम से जाना जाता था जिसे डा. विक्रम ए साराभाई की दूरदर्शिता पर 1962 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इसके बाद इसरो का गठन 15 अगस्त 1969 को किया गया था तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए विस्तारित भूमिका के साथ इन्कोस्पार की जगह इसरो ने ले ली अंतरिक्ष विज्ञान की स्थापना हुई और 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विज्ञान के तहत लाया गया।

                       इसरो का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास और अनुप्रयोग है।इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए इसरो ने संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम संबंधी सेवाओं, संसाधन मानीटरिग और प्रबंधन, अंतरिक्ष आधारित नौसंचालन सेवाओं के लिए प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है। इसरो ने उपग्रहों को अपेक्षित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपण यान, पी.एस.एल.वी. और जी.एस.एल.वी. भी विकसित किए कुल मिलाकर आज से 60 वर्ष पूर्व महान वैज्ञानिक डॉ विक्रम ए साराभाई ने जो सपना देखा था और इसरो की स्थापना की गई थी उनका वह सपना आज भारतीय वैज्ञानिकों ने बड़े ही गर्व से पूरा करने में सफलता प्राप्त की।

 भारतीय वैज्ञानिकों की इस सफलता के बाद बड़े स्तर पर तकनीकी का आदान प्रदान हो सकता है। और अब दुनिया भारतीय वैज्ञानिकों की ताकत का लोहा मानेगी। भारतीय वैज्ञानिकों की इस सफलता से खगोलशास्त्रियों को ब्रह्मांड से जुड़े रहस्यों को जानने में मदद मिलेगी। भारत रेडियो टेलीस्कोप का निर्माण केन्द्र भी बन सकता है।

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