रिजर्व बैंक के निर्देश से क्या उपभोक्ताओं को मिलेगी राहत  या यूं  ही लूटता  रहेगा फाइनेंस  सेक्टर

 जितेन्द्र सिंह पत्रकार

बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान से फाइनेंस कराने वाला उपभोक्ता यदि एक भी किश्त देने से चूक जाता था तो ये फाइनेंस संस्थान उस पर इतना ब्याज लगा देते थे कि उपभोक्ताओं को मूल धन का दुगना तीन गुना पैसा जमा कर के सेटलमेंट कराना पड़ता था। जो उपभोक्ताओं के लिए काफी भारी पड़ता था। ये अधिक ब्याज वो इसलिए लगाते थे कि ज्यादा से ज्यादा राजस्व की वसूली वो सरकार को दिखा सकें। 

लेकिन अभी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सभी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को निर्देशित किया है कि वे अब  दंडात्मक ब्याज न लगाकर एक उचित दंड शुल्क ही लगाएं । निश्चित इस आदेश से उपभोक्ताओं को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन अब ये बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान किस तरह से उचित दंडात्मक शुल्क का निर्धारण करेंगे ये देखना होगा।

  रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक जनवरी 2024 से बैको और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए एक नई एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा है कि कर्ज पर लगने वाले दंडात्मक ब्याज के लिए संशोधित नियमावली जारी की गई है इसके तहत अब बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान कर्ज भुगतान में चूक के मामले में संबंधित ग्राहक से दंडात्मक ब्याज नहीं वसूल सकेंगे। इसके बजाय उन पर उचित दंडात्मक शुल्क लगाया जा सकेगा।

      रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार दंडात्मक ब्याज लगानें की मंशा कर्ज लेने वाले में ऋण को लेकर अनुशासन की भावना के लिए होती है। इसे बैंकों द्वारा अपना राजस्व बढ़ाने के माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। एडवाइजरी में रिजर्व बैंक ने बैंक और अन्य फाइनेंस सेक्टर द्वारा दंडात्मक ब्याज के रूप में अपना राजस्व बढ़ाने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की।

  रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एडवाइजरी में कहा गया है कि कर्ज लेने वाले व्यक्ति द्वारा ऋण अनुबंध की शर्तों का अनुपालन नहीं करने पर उससे दंडात्मक शुल्क लिया जा सकता है। इसे दंडात्मक ब्याज के रूप में नहीं लगाया जा सकता।

होता यह है कि बैंक दंडात्मक ब्याज को अग्रिम किस्त ब्याज दरों में जोड़ देते हैं । नई व्यवस्था में ऋण लेने वाले व्यक्ति द्वारा ऋण अनुबंध की शर्तों का अनुपालन नहीं करने पर उससे दंडात्मक ब्याज के रूप में नहीं लगाया जा सकता ।यह किसी कर्ज या उत्पाद श्रेणी में पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए। रिजर्व बैंक ने कहा है कि दंडात्मक शुल्क का कोई पूंजीकरण नहीं होगा और ऐसे शुल्कों पर अतिरिक्त ब्याज की गणना नहीं की जायेगी।

   भारतीय रिजर्व बैंक की इस नई एडवाइजरी से निश्चित ही उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचेगा। अधिक ब्याज को लेकर उपभोक्ता अभी तक कम कराने के लिए बैंक और फाइनेंस कंपनी के चक्कर काटता रहता था। तब कहीं जाकर अधिक ब्याज दरों पर उसका सेंटिमेंट हो पाता था। अब देखना यह है कि क्या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इस तरफ ध्यान रखेगा कि ये संस्थान कितना दंडात्मक शुल्क लगाते हैं क्योंकि दंडात्मक शुल्क लगाने का अधिकार तो इन संस्थानों के पास ही होगा जिसको वो अपनी तरह से स्तेमाल करेंगे ।

About The Author: Swatantra Prabhat Desk