लोकसभा से पहले 5 राज्यों के वि0 सभा चुनाव

यहां इंडिया से नहीं, कांग्रेस से होगा भाजपा का

सीधा मुकाबला, मध्य प्रदेश पर जोर ज्यादा

 

  जितेन्द्र सिंह पत्रकार
 
इसी वर्ष के अन्त में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के साथ छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम शामिल हैं।
 
इन राज्यों में विधानसभा चुनाव इसलिए और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अगले साल 24 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले होने हैं। और ख़ास बात ये है कि यहां पर विपक्ष के नये गठबंधन इंडिया का कोई महत्व नहीं है और ये सीधे कांग्रेस के विरुद्ध ही होने हैं।
 
 
तेलंगाना और मिजोरम की बात बाद में करते हैं। पहले हिन्दी भाषी तीन राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तो लोकसभा के लिहाज से बेहद खास हैं। जहां तक राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बात की जाये तो यहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकारें हैं। और पूरे पांच साल चली हैं तो यहां सत्ता विरोधी या सत्ता से नाराज़गी वाले वोट का भाजपा को सीधा फायदा होगा।
 
लेकिन भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और राजस्थान में अशोक गहलोत को हल्के में कतयी नहीं लेगी और पूरी ताकत से उनकी राज्य की इकाई सत्ता की एक एक गलतियों को तेजी से पकड़ कर जनता के सामने रख रही है और फिर चुनाव नजदीक आने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरों से जो हवा बदलती है उसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। 
 
 
 विधानसभा चुनाव के इस वर्ष के लिहाज से तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण हिंदी   भाषी राज्य है मध्य प्रदेश, क्यों कि यहां भारतीय जनता पार्टी ने काफी जद्दोजहद के बाद सत्ता हासिल कर पाई थी क्योंकि कि पहले सरकार तो कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की ही बनी थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की वगावत के बाद आखिरकार कांग्रेस के हाथों से सत्ता निकल गई
 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में आखिरकार भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हो सकी ।  मध्य प्रदेश में मामला इस लिए और दिलचस्प है क्योंकि कि यहां मामला पिछले चुनावों में भी लगभग बराबरी पर था और इस समय भी नेक टू नेक वाला लग रहा है कोई विशेषज्ञ यहां भविष्य वाणी करने से बच रहा है।
 
इस लिए भारतीय जनता पार्टी इसको बहुत ही गंभीरता से लेने के मूड में है। एक बात और कि मध्यप्रदेश में इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। महाराज पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ थे और कांग्रेस की सरकार बनी थी।
 
महाराज के रुष्ठ होने से ही कांग्रेस की सरकार गिरी और भाजपा को सत्ता मिली तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी यहां पूरी निगाह रखे हैं है और पल पल की खबर अपने पास रखें है क्योंकि मध्य प्रदेश हाथ से जाने का मतलब महाराज की ख्याति का कमजोर होना होगा।
 
 
अभी कुछ समय पहले कांग्रेस की महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के ही गढ़ ग्वालियर चंबल संभाग में एक बड़ी सभा का आयोजन किया। क्यों कि कांग्रेस भी मध्य प्रदेश को आसानी से नहीं जाने देना चाहती । कांग्रेस की रैली के तुरंत बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने क्षेत्र ग्वालियर चंबल संभाग का दौरा किया और उसके विषय में जानकारियां ली। पत्रकारों से बातचीत की और उनके सवालो के जबाव भी दिये। मध्य प्रदेश की रणनीति से भाजपा के शीर्ष नेता सीधे जुड़े हैं और ग्रह मंत्री अमित शाह लगातार मध्य प्रदेश के दौरे कर चुनावी अभियान को धार दे रहे हैं। 
 
पार्टी के केन्द्रीय चुनाव प्रभारियों ने टीम की कमान संभाल ली है। जो एक एक सीट का फीड बैक लेकर रणनीति तैयार कर रही है। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं जिनमें 28 भाजपा के पास है लेकिन सत्ता के विरोधाभास का सामना तो यहां उनको करना ही होगा लेकिन फिलहाल उनकी स्थिति यहा मजबूत लग रही है। बीते दिनों अमित शाह ने भोपाल में प्रदेश कोर ग्रुप के प्रमुख नेताओं से लंबी मतरणा की थी। अब शाह 30 जुलाई को फिर से राज्य के दौरे पर रहेंगे और इंदौर में बूथ कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करेंगे
 
 
 तेलंगाना की बात की जाये तो यहां भाजपा को अभी नयी ताकत बनना है। छत्तीसगढ़ में उन्हें एंटी सत्ता के लाभ की उम्मीद है। इधर मिजोरम में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल उसको ताकत प्रदान करने के लिए आगे रहेंगे।
 
कुल मिलाकर इन विधानसभा चुनाव वाले पांचों राज्यों में वह कोई कसर नहीं छोड़ रही है और पूरी तन्मयता से लग गई है रही सही कसर आखिर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरों से पूरी हो जाएगी।
           

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