चार में से ये तीन भाई सिनेमा में आए : चमन पुरी, मदन पुरी और अमरीश पुरी।

अमरीश रंगमंच से कला फ़िल्मों और वहां से कमर्शियल सिनेमा में आए। शुरुआत में दुबले पतले अजीब से दिखाई देते थे।

चमन पुरी , अमरीश से सबसे ज़्यादा मिलते हैं देखने में। हिन्दी फिल्मों में कुछ नामालूम सी चरित्र भूमिकाएँ उनके हिस्से में आईं। याद में टिकने जैसी भूमिकाएँ उनके हिस्से में नहीं हैं।

स्वतंत्र प्रभात-

चमन पुरी , अमरीश से सबसे ज़्यादा मिलते हैं देखने में। हिन्दी फिल्मों में कुछ नामालूम सी चरित्र भूमिकाएँ उनके हिस्से में आईं। याद में टिकने जैसी भूमिकाएँ उनके हिस्से में नहीं हैं।

 

मदन पुरी जबर्दस्त खलनायक और बाद में चरित्र अभिनेता रहे। न जाने कितने निर्देशकों की टीम में वे स्थायी अभिनेता थे। बहुत लम्बी और क़ामयाब पारी रही उनकी।

 

अमरीश रंगमंच से कला फ़िल्मों और वहां से कमर्शियल सिनेमा में आए। शुरुआत में दुबले पतले अजीब से दिखाई देते थे। 'प्रेम पुजारी' में वे लगभग एक्स्ट्रा जैसे हैं। एक उनकी तब की फ़िल्म याद है : 'खिलौने वाला'। पहली बार उन्हें कायदे से नोटिस किया 'भूमिका' में।

 

अमरीश के बॉडी बिल्डिंग के शौक ने उनका व्यक्तित्व बदला और उसे प्रभावशाली बनाया। उनके पास एक असरदार और दमदार क़िस्म की आवाज़ तो थी ही। 'हम पांच' वह पहली व्यावसायिक फ़िल्म थी जिसमें वे अपने इस नए व्यक्तित्व के साथ मौजूद हुए और पसन्द किए गए। 

 

उसके बाद तो अमरीश पुरी का सफ़र सफलता की ओर लगातार आगे ही आगे बढ़ने का सफ़र है। वे नए नए गेटअप और मेकअप में कमर्शियल सिनेमा के व्याकरण में छा गये।

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