कमलनाथ ,करप्शननाथ या कड़कनाथ

पूर्व केंद्रीय मंत्री और अभूतपूर्व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ मध्यप्रदेश में पोस्टरबाजी के बाद जाहिर हो गया है कि आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में सियासत किस स्तर तक  जा सकती है ? कमलनाथ ने पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को नाथ ने में अहम भूमिका निभाई थी और आगामी विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ ही सत्तारूढ़  भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती और आँख की किरकिरी हैं।


कलिकाल में पोस्टरबाजी गुरिल्ला युद्ध की तरह एक युद्धकला है। पूरे देश में इसका इस्तेमाल अपने शत्रु को हतोत्साहित करने के लिए किया जाता है।

 बिहार से लेकर मध्यप्रदेश तक पोस्टर युद्ध लोकप्रिय विधा है। कमलनाथ इस पोस्टरबाजी के पहले शिकार नहीं है।  मुझे याद है कि देश में ये पोस्टरबाजी आठवें दशक में शुरू हुई थी और जैसे -जैसे लिथो से विनायल प्रिण्टिंग का जमाना आया इस विधा में अभूतपूर्व क्रान्ति हुई। कमलनाथ के खिला ' वांटेड' और करप्शन नाथ के पोस्टर मध्य्प्रदेश की राजधानी भोपाल में चस्पा किये गए तो कमलनाथ भड़के। यानि पोस्टर लगाने का मकसद पूरा हो गया। कमलनाथ ने इन पोस्टरों से विचलित होकर कहा कि उन्होंने कहा, आज उनके पास मेरे खिलाफ कहने के लिए कुछ नहीं है इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।

कमलनाथ ने कहा,-' मुझे कोई अपमानित नहीं कर सकता और मेरे खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है, यह सब जानते हैं,आज उनके पास मेरे खिलाफ कहने के लिए कुछ नहीं है इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।  मुझे बीजेपी से किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है क्योंकि जनता गवाह है । कांग्रेस ने इसे बीजेपी की चाल बताया।  कांग्रेस मीडिया विभाग अध्यक्ष केके मिश्रा ने कहा, इस पोस्टर अभियान कि हमें चिंता नहीं है, क्योंकि कमलनाथ जनता के दिलों में हैं।  बीजेपी मुद्दों से भटकाने के लिए इस तरह के कृत्य कर रही है. यदि बीजेपी डर्टी पॉलिटिक्स पर आई तो हमारे पास भी भ्रष्टाचार के प्रमाणिक तथ्य हैं।

दरअसल पोस्टरबाजी एक तरह का अहिंसक युद्ध है ।  इसमें लागत कम और धमक  ज्यादा होती है। पोस्टर निशाने पर लग जाए तो मकसद पूरा हो जाए और न लगे तो पोस्टर फटने पर जो होता है सो सब जानते हैं।  पोस्टरबाजी कि जबाब में बयानबाजी की जाती है। बयानबाजी शुरू हो भी गयी है। बिना लागत कि इस युद्ध में राजनीतिक दलों को खूब मजा आता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने ट्वीट कर कहा, "भाजपा द्वारा कमलनाथ के आपत्तिजनक पोस्टर लगाना बता रहा है कि भाजपा में घबराहट है, सत्ता जाते हुए दिख रही है

तो बौखलाहट में आपत्तिजनक पोस्टर लगवा रहे हैं। यादव ने पोस्टर लगाने वालों को  पोस्टर लगाने वालों कोतत्काल गिरफ्तार कर कठोर कार्यवाही की मांग की है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि "यह पोस्टर किसने लगाए यह तो कमलनाथ ही बता सकते हैं, मगर किसी पर इस तरह के टैग लगाना, इस तरह का अर्थ है कि आप करप्ट नाथ थे, आपने मध्य प्रदेश को भ्रष्टाचार में डुबोया था, उसका परिणाम है कि जनता इस रुप में उसका प्रकटीकरण कर रही है।"

बहरहाल पोस्टरबाजी कि खिलाफ कार्रवाई का तो सवाल ही नहीं उठता । जांच-वांच की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि सियासत में वो दौर गुजर चुका है जब वर्तमान मुख्यमंत्री किसी पूर्व मुख्यमंत्री कि सम्मान कि लिए तत्पर रहा करते थे । अब तो एक-दूसरे  को नंगा करने की प्रतिस्पर्द्धा है। एक जमाने में बिहार में वहां कि मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार के खिलाफ  राजद ने जमकर पोस्टरबाजी की थी। पोस्टर   दीवारों और बिजली के खभ्भों के साथ साथ हाथों में थामने वाले भी बनाये जाते हैं ,जो अक्सर संसद और विधानसभाओं के सत्र के दौरान देखने को मिलते हैं। सियासत  में आप पोस्टरबाजी को ललित कला भी कह सकते हैं।

इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव ' महाराज बनाम शिवराज ' न होकर ' शिवराज बनाम कमलनाथ ' हो गया है । कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह या भाजपा के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब मुकाबले से बाहर है।  एक दलबदलू है तो दूसरे ' मिस्टर बंटाधार ' के नाम से बदनाम। ऐसे में कमलनाथ ही हैं जो मौजूदा सत्ता के लिए समस्या हैं। पोस्टर बनाने वाले यदि मुझसे परामर्श करते तो मै उन्हें कमलनाथ के बारे में  घटिया पोस्टर बनाने से रोकता ,कोई दूसरा परामर्श देता ,क्योंकि कमलनाथ शिवराज सिंह चौहान की तरह करपशन  चार्जों के शिकार नहीं है।  कमलनाथ को सही अर्थों में ' कड़कनाथ ' कहा जाना चाहिए। 19  महीने की कांग्रेस सरकार के वे सबसे ज्यादा कड़क मुख्यमंत्री साबित हुए । इतने कड़क कि उनके मित्र स्वर्गीय माधवराव  सिंधिया   कि पुत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना पड़ा।

राजनीति में कड़कनाथ होना स्वीकार नहीं किया जाता। राजनीति पोल्ट्री  फॉर्म कि वायलर मुर्गों जैसी हो गयी है ।  लिजलिजी,फुसफुसी ,इस तरह की राजनीति में हमारे माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माहिर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह माहिर थे। एक जमाने में मध्यप्रदेश से कांग्रेस का किला ध्वस्त करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने ' लेडी कड़कनाथ ' बनने की कोशिश की तो उन्हें 9  महीने में ही सत्ता से हटना पड़ा था। ' कड़कनाथ प्रवृत्ति की वजह से कमलनाथ 9 कि बजाय 19  महीने में सत्ताच्युत हो गए थे। कहने का अर्थ  ये है

 कि पोस्टरबाजी से युद्ध की दिशा बदलती नहीं है ,हाँ थोड़ी देर कि लिए भ्रमित अवश्य होती है। पोस्टर बरसात कि पहले पानी में ही बदरंग हो जाते हैं और पानी पड़ चुका है। भाजपा को कमलनाथ बनाम कड़कनाथ का मुकाबला करने और उन्हें परास्त करने के लिए कोई दूसरी तकनीक इस्तेमाल करना पड़ेगी ।  मुमकिन है कि कमलनाथ के खिलाफ ताजा पोस्टरबाजी के खिलाफ कांग्रेस में ही छिपकर बैठे उनके अपने प्रतिद्वंदी हों ,किन्तु अभी इसके लिए उँगलियाँ भाजपा की और ही उठ रहीं हैं। मुझे याद है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया या केवल संसद रहे अनूप मिश्रा सबके सब कभी न कभी इस पोस्टर युद्ध का निशाना बन चुके हैं। ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।  मेरा सुझाव है केंद्रीय चुनाव आयोग  को राजनीति की इस शैली को भी मान्य कर इसका खर्च चुनाव खर्च में जोड़ लेना चाहिए। हालाँकि पोस्टर युद्ध पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। पोस्टरों से जो गंदगी फैलती है वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए इसका विरोध भी किया जाना चाहिए।

मित्रों को बता दूँ कि वैसे पोस्टर का अविष्कार सियासत के लिए नहीं बल्कि राजकाज और व्यापार के लिए किया गया था। पोस्टर एक प्रकार का शब्दों चित्रों और नक्शों  का एक युग्म होता है, जिसके माध्यम से लोगो को किसी विषय से संबंधित जानकारी प्रदान कि जाती है ताकि  लोग उस विषय के बारे में जान सके और लोगो में उस विषय के बारे में जागरूकता बनी रहे, यह एक प्रकार का मार्केटिंग का साधन होता हैं।
पोस्टर का उपयोग करके किसी गंभीर विषय के बारे मे अवगत कराया जाता हैं जिससे लोग उस विषय के प्रति सतर्क रहे एवं इसका उपयोग करके बड़े बड़े ब्रांड्स अपने प्रोडक्ट या सर्विस की मार्केटिंग करके अपने प्रोडक्ट या सर्विस की बिक्री बढ़ाने के लिए  करते हैं जिससे उन्हे मुनाफा होता हैं।

दूसरी तरफ राजकाज में सरकारें औरसामाजिक संगठन इसका उपयोग करके किसी गंभीर विषय से संबंधित जानकारी को लोगों तक पहुंचाते हैं ताकि लोग उस विषय के प्रति जागरूक हो सके, मतलब अगर हम इसे आसान भाषा मे समझे तो पोस्टर शब्दों,चित्रों  और  नकशों की मदद से बनाया गया एक प्रकार  का जाहिर नोटिस  यानी आम सूचना होती है ।पहले पोस्टर हाथ से बनाये जाते थे,अब यही काम मशीनें कर रहीं हैं।

राकेश अचल

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