मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी चाहिए, जहां बैठकर मैं शहर की खूबसूरती को निहार सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक खिड़की भी चाहिए, जहां बैठकर मैं बाहर के नजारे झांक सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक कुर्सी भी चाहिए, जहां बैठ करके मैं अपने बगीचे की खुशबू, अपने अंदर समा सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक हमाम भी चाहिए, जहां फव्वारे से छन के आती सूरज की रोशनी में मैं नहा सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक मंदिर भी चाहिए, जहां दीप जलाकर मैं चंदन को माथे से लगा सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक दरवाजा भी चाहिए, जहां खड़े होकर मैं अपने प्रियतम की राह निहार सकूं l
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक बिस्तर भी चाहिए, जहां लेट कर मैं चैन की नींद पा सकूं l
प्रीति शुक्ला