हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कब तक?

 

फिल्म आदिपुरुष भगवान राम पर बनी इस फिल्म का देशव्यापी विरोध हो रहा है। कई लोगों को फिल्म के डायलॉग पसंद नहीं आ रहे हैं तो कुछ लोगों को राम बने प्रभास का लुक पसंद नहीं आ रही है। घनी मूंछे, योद्धाओं जैसे शरीर वाले प्रभास में लोगों को भगवान राम की शालीनता खल रही है। आदिपुरुष का विरोध केवल भारत तक सीमित नहीं है। नेपाल में थिएटर मालिकों का कहना है कि जब तक फिल्म के कुछ डायलॉग हटाए नहीं जाते हैं, फिल्म को नेपाल में रिलीज नहीं होने दिया जाएगा। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि यह फिल्म मूल रामायण का अपमान है, इसमें धार्मिक कथाओं को अलग तरीके से पेश किया गया है। इसे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बताया जा रहा है ।

दरअसल यह फिल्म अपने टीजर के लॉन्च के दिनों से ही विवादों के केंद्र में है। लोग इस फिल्म की कॉस्ट्यूम डिजाइन से लेकर संवाद आदायगी तक पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कई हिंदू संगठनों ने इस फिल्म पर बैन लगाने की मांग की है।  फिल्म पर बैन लगाने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि सेंसर बोर्ड की ओर से जारी होने वाले सर्टिफिकेट पर रोक लगा दी जाए।

नेपाल में थिएटर मालिक इस बात से नाराज हैं कि आदिपुरुष में सीता मां को भारत की बेटी बताया गया है। काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी के मेयर ने मांग की है कि अगर यह लाइन हटाई नहीं जाती है तो फिल्म को रिलीज नहीं होने दिया जाए। फिल्म में एक डायलॉग है 'जानकी भारत की बेटी है।' सीता मां का मायका, माना जाता है कि जनकपुर में है, जो नेपाल में है। इस डायलॉग को लेकर अब सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

प्रभास इस फिल्म में राम बने हैं। सीता की भूमिका में हैं कृति सैनन और रावण बने हैं सैफ अली खान। सैफ अपने लुक को लेकर ट्रोल हो रहे हैं। लोगों को सबसे ज्यादा ऐतराज फिल्म में किरदारों के लुक पर है। ज्यादातर लोगों को फिल्म के किरदारों का कास्ट्यूम पंसद नहीं आ रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि राम, न तो राम लग रहे हैं, लक्ष्मण का लुक भी मैच नहीं कर रहा है। हनुमान का लुक, रामानंद सागर वाले रामायण से बिलकुल अलग है। लोग, अरुण गोविल के लुक से प्रभास की तुलना कर रहे हैं, जो उनके लुक से बेहद उलट है। यह लोगों को रास नहीं आ रहा है।

लोगों का मानना  हैं कि सैफ अली खान का रावण वाला लुक भी बेहद बुरा है। फिल्म के टीजर से लेकर ट्रेलर तक पर बवाल हो रहा है। 2022 से ही इस फिल्म पर विवाद जारी है। आदिपुरुष फिल्म के निर्माता ओम राउत, प्रभास, सैफ अली खान समेत 5 लोगों के खिलाफ पहली बार 2022 में यूपी के जौनपुर में केस दर्ज हुआ। फिल्म पर भगवान राम, हनुमान, सीता और रावण के किरदारों का अभद्र चित्रण करने का आरोप लगा। शिकायतकर्ता ने कहा कि फिल्म धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है।

आदिपुरुष के खिलाफ यहाँ मुंबई में भी शिकायत दर्ज हुई है। आरोप है कि यह फिल्म रामचरित मानस के पात्र राम के किरदार को गलत तरीके से दर्शा रही है। हिंदू धर्म समाज ने भी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने का आरोप लगाया है। कुछ लोगों को किरदारों के जनेऊ न पहनने पर भी ऐतराज है। यह फिल्म रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिरी है।


कृष्ण देव, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हैं। उन्होंने फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद कहा कि इस फिल्म के सभी पात्रों को बेमन से चुना गया है। सुपरस्टार के भरोसे फिल्म हिट कराने की कोशिश की गई है। रावण से लेकर हनुमान तक के किरदार ऐसे हैं जो देखने में विदूषक लग रहे हैं। सबके कपड़े, रामायण में वर्णित किरदारों के स्वरूप से बिलकुल भी नहीं मिलते हैं।

दर्शकों का मानना है कि धार्मिक फिल्म को भी बंबइया फिल्म बना दिया है। ऐसा लग रहा है कि सलमान खान की फिल्मों के डायलॉग चल रहे हैं। एक सीन में भगवान हनुमान का डायलॉग है- कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, जलेगी भी तेरे बाप की।' दूसरे सीन में अशोक वाटिका के रखवाले हनुमान से कहते हैं- तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया। फिल्म में 'जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उकी लंगा देंगे, आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं और मेरे एक सपोले ने तु्म्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया, अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है' जैसे डालॉग हैं। लोगों का कहना है कि ये डायलॉग किसी टिपिकल बॉलीवुड फिल्म वाले हैं, इन्हें फिल्म में नहीं लेना चाहिए था।

 

इस फिल्म में कई आपत्तिजनक शब्द हिंदू धर्म के बारे में कहा गया है।मर्यादापुरुषोत्तम राम के साथ और रामायण की मूल भावना के साथ मजाक किया गया है। सवाल है कि क्यों बार-बार हिंदू धर्म से जुड़ी फिल्मों में ही आस्था और भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है। यह फिल्म सेंसर बोर्ड से पास होकर आई है ।

लोगों का घुस्सा सेन्सर बोर्ड पर भी है । लोगों का कहना है वर्तमान में सेंसर बोर्ड या अन्य नियामक संस्थाओं की कानूनी औपचारिक बाध्यताओं से स्वतंत्र- ओटीटी प्लेटफार्म एक ऐसे अड्डे एवं हथियार के रुप में उभरा है जिसमें फिल्मों व वेबसीरीज के माध्यम से हिन्दू विरोध, देवी देवताओं एवं धर्म को अपमानित करने की खेप पर खेप इन्टरनेट के माध्यम से लगातार पहुंचाई जा रही है।हिन्दू धर्म से नफरत करने वाले फिल्म निर्माता- निर्देशक-पटकथा लेखक इस बेलगाम अनियंत्रित प्लेटफार्म के द्वारा लगातार ऐसी फ़िल्में / वेबसीरीज बनाकर परोस रहे हैं जिनके निशाने पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दू धर्म एवं उसकी आस्था,धार्मिक स्थल व प्रतीक हैं।

इन सभी का तंत्र बेहद शातिर है, जो जानबूझकर हिन्दू धर्म की आस्था एवं भावनाओं से खिलवाड़, अपमानित करता है। इनमें बौध्दिक व अर्बन नक्सली, अकादमिक लफ्फाज,छद्म पत्रकार, राजनैतिक तोपची,देशद्रोही वामपंथियों का गिरोह व विभिन्न माफियाओं समेत भारत विरोधी अराजक तत्वों की गैंग शामिल है जो विविध तरीके से एक-दूसरे के लिए माहौल निर्मित करती है। हिन्दू धर्म विरोध, अपमान के पीछे इनकी वही नफरत है जो इनके विभिन्न कार्यकलापों, बयानों से प्रायः सामने आती रहती है। हिन्दू धर्म व उसकी व्यवस्था तथा आस्था इनके लिए आसान सा लक्ष्य है,क्योंकि इन्हें यह बखूबी पता होता है कि हिन्दू अपने धर्म, आस्था के प्रति उतना दृढ़ नहीं है और मुंहतोड़ जवाब नहीं देता है। साथ ही जो इनके कुकृत्यों के विरोध में आता है उसे ये अपने 'अभिव्यक्ति' शब्द के जुमले से ढंकने का प्रयास करते हैं।

इन फिल्म निर्माताओं, पटकथा लेखकों, फिल्म निर्देशकों, प्रसारणकर्ताओं का जो तंत्र होता है वह एक वैचारिकी के घेरे से बंधा हुआ व इन्हीं लक्ष्यों को प्रसारित करने के उद्देश्य के लिए ही सिनेमा में आया हुआ है कि- उन्हें हर हाल में 'हिन्दू-हिन्दुत्व' के विरोध,धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने के लिए काम करना है, जिसे वे सिनेमा के माध्यम से आसानी के साथ साध लेते हैं।
चाहे फिल्मों के नाम हों याकि उसके दृश्य, धारावाहिक, कॉमेडी, वेबसीरीज या अन्य दृश्य सामग्री जिन्हें विवादित कहा गया हो तथा जिन पर समाज ने आपत्ति दर्ज करवाकर विरोध किया हो। उन सभी का गहराई से विश्लेषण करने पर सबके मूल में एक बात ही सामने आती है कि फिल्म निर्माता,निर्देशकों ने इसके पीछे खास रणनीति के तहत काम किया है।

वे जानबूझकर ऐसे नाम, दृश्य, डॉयलॉग इत्यादि उसमें सम्मिलित करते हैं जिससे 'विवाद' की स्थिति निर्मित हो। अब ऐसा करने के पीछे यही है कि प्रथमतः वह विवाद के द्वारा अपनी फिल्म, सीरीज का बिना पैसे के प्रचार प्रसार कर लेते हैं। दूसरा यह कि जिस विशेष उद्देश्य के अन्तर्गत उन्होने फिल्म,धारावाहिक, वेबसीरीज में जानबूझकर 'विवादित' चीजें जोड़ी हैं। उन सबको व्यापक स्तर पर फैलाने में भी सफल हो जाते हैं। क्योंकि जब कोई चीज चर्चा में होती है तब लोग जिज्ञासावश उसे देखते हैं कि-आखिर! इस फिल्म या धारावाहिक में ऐसा क्या है कि जिससे इतना बवाल मचा हुआ है। बस यहीं से वे अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं। मुफ्त में उनकी फिल्म, धारावाहिक, वेबसीरीज का प्रचार और उनका कुत्सित मंसूबा दोंनों एक साथ सध जाते हैं।

इसके साथ जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है वह यह कि इन फिल्म या धारावाहिक, वेबसीरीज निर्माताओं द्वारा विवाद उत्पन्न करने के उपरांत शाब्दिक भ्रमजाल के सहारे 'माफीनामा' व फिल्म, वेबसीरीज के टाईटल, दृश्य, डॉयलॉग में मामूली फेरबदल कर बड़ी ही चतुराई के साथ अपना दामन बचा लेने में सफल हो जाते हैं। उनकी हिन्दू विरोधी मानसिकता से भरी 'फिल्म और नैरेटिव' दोनों हिट हो जाते हैं और वे आर्थिक वारा-न्यारा करने के साथ-साथ हिन्दू भावनाओं को आहत कर मदमस्त रहते हैं।

हालांकि पिछले कई वर्षों से हिन्दू समाज इस पर जाग उठा है और उसने अकादमिक, सिनेमाई षड्यंत्र को समझकर प्रतिकार करने का साहस जुटाया है,लेकिन इस साहस में स्थायी उबाल व दृढ़ता नहीं दिखती।यदि धर्म की रक्षा करनी है तो इन सबकी जड़ों में प्रहार करना होगा अन्यथा ये सिनेमाई विधर्मी इसी तरह से अपमानित एवं आस्था से खिलवाड़ करते रहेंगे। यदि धार्मिक भावनाओं को आहत करने एवं हिन्दू धर्म के विरोध में बनाई गई फिल्मों, धारावाहिकों, वेबसीरीज के निर्माता, निर्देशक,लेखक, अभिनय टीम के विरूद्ध हिन्दू समाज समूचे देश में मुकदमे दर्ज करवा कर कानूनी कार्रवाई करवाने का अभूतपूर्व साहस दिखलाने के साथ ही राजनैतिक हुक्मरानों की कॉलर पकड़कर उनकी जवाबदेही तय करवाने का काम करते तो किसी की इतनी मजाल ही न होती कि वह हिन्दू धर्म को अपमानित कर सके। शासन ,सत्ता तो अपनी जिम्मेदारी समझने से रहे लेकिन यदि हिन्दू समाज नहीं जागता व शासन, सत्ता से यह निर्णय नहीं करवा पाता कि जो भी तत्व उसकी धार्मिक भावनाओं, आस्था से खिलवाड़ करेंगे। उन पर विधिवत दण्डात्मक कार्रवाई होगी। तब तक हिन्दू धर्म को सिनेमाई विधर्मी अपमानित करने व घ्रणा फैलाने में सफल होते रहेंगे।

अशोक भाटिया,

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार .लेखक एवं टिप्पणीकार

About The Author: Swatantra Prabhat Desk