आखिर क्यों जल रहा है मणिपुर ?

 
कर्नाटक में बजरंगबली को दांव पर लगाकर आपको शायद पता नहीं होगा की देश का सीमांत प्रदेश मणिपुर बुरी तरह से जल रहा है .मणिपुर में भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी,लोक जनशक्ति पार्टी और ंगा पीपुल्स फ्रंट की मिलीजुली सरकार है .डबल इंजिन की इस सरकार के इस समय हाथ-पांव फूले हुए हैं .दोनों सरकारें मिलकर भी मणिपुर की आग बुझाने में नाकाम साबित हो रहीं हैं .यहां बजरंगबली की जय बोलने वाला कोई नहीं है .


मै भी आपकी तरह मणिपुर से बहुत दूर बैठा हूँ लेकिन मेरे पास तमाम सूत्र हैं जो मणिपुर के खौफनाक हालात को लगातार देश के लिए रिपोर्ट कर रहे हैं. इन्हीं रिपोर्ट्स के मुताबिक़ राज्य में मैतेई समाज को अनसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग के बाद हुई इस हिंसा शुरू हुई और अब इसे रोकने के लिए फ़ौज की मदद ली जा रही है. मणिपुर में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं .खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमितशाह को इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करना पड़ा है क्योंकि राज्य में डबल इंजिन की सरकार हालात से निबटने में नाकाम रही . केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने  मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से बात कर  राज्य की स्थिति का जायजा लिया. इसके अलावा केंद्रीय गृह सचिव, आईबी के निदेशक और संबंधित अधिकारियों के साथ दो वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग बैठकें कीं. उन्होंने मणिपुर के पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी बात की.


 ‘आभूषणों की भूमि’  माने और कहे जाने वाला  मणिपुर स्वतंत्रता के पहले भारत की एक  रियासत था । आजादी के बाद यह भारत का एक केंद्रशासित राज्य बना। यहाँ नागा तथा कूकी जाति की लगभग 60 जनजातियाँ निवास करती हैं। यहाँ के लोग संगीत तथा कला में बड़े प्रवीण होते हैं। यहाँ कई बोलियाँ बोली जाती हैं। पहाड़ी ढालों पर चाय तथा घाटियों में धान की खेती होती है। मणिपुर से होकर एक सड़क बर्मा को जाती है।लेकिन अब यही मणिपुर आग उगल रहा है .कारण साफ़ है की राज्य सरकार स्थानीय जनता की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी .


पांच साल पहले यहां भाजपा ने क्षेत्रीय राजनितिक दलों के साथ मिलकर अपनी पैठ बनाई और आज मणिपुर का मुख्यमंत्री पद भाजपा के पास है ,लेकिन वे यहां कमल खिलाने के बजाय आग से खेल रहे हैं.ये खेल भाजपा को अब भारीपाद रहा है. राज्य की सत्ता और जनता को बचने के लिए सरकार को मणिपुर में फ़ौज की तैनाती करना पड़ रही है .लेकिन भाजपा के असल बजरंगब,ली केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह इस नाकामी को मानने के लिए राजी नहीं हैं .हो भी नहीं सकते .


कोई तीन लाख की आबादी वाले मणिपुर को जलने से बचाने के लिए सुरक्षा बलों को  भेजा गया है. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफल्स के 55 ‘कॉलमको तैनात किया गया है. हालात के दोबारा बिगड़ने की सूरत में कार्रवाई के लिए सेना के 14 ‘कॉलमको तैनाती के लिए तैयार रखा गया है. वहीं सेना और असम राइफल्स ने गुरुवार को चुराचांदपुर और इंफाल घाटी के कई इलाकों में फ्लैग मार्च किया और काक्चिंग जिले के सुगनु में भी फ्लैग मार्च किया गया. मणिपुर में स्थिति की निगरानी कर रहे केंद्र ने रैपिड एक्शन फोर्स’ (आरएएफ) की कई टीम को भी भेजा है.


मणिपुर में हिंसा के कारण हजारों  लोग विस्थापित हो गए हैं.  राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्से वाले गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के खिलाफ चुराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) के बुलाए गए आदिवासी एकजुटता मार्चके दौरान हिंसा भड़क गई थी. नगा और कुकी आदिवासियों के इस मार्च में भड़की हिंसा ने रात में और गंभीर रूप ले लिया.


  स्थिति को देखते हुए गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिलों और आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. कर्फ्यू लगाने संबंधी अलग-अलग आदेश आठ जिलों के प्रशासन ने जारी किए गए हैं. गृह विभाग के एक आदेश में कहा गया कि शांति और सार्वजनिक व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए तत्काल प्रभाव से पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है. पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं भी निलंबित हैं.


दरअसल  मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर खुद को  जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी. इसी याचिका पर बीती 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसले सुनाया. इसमें कहा गया कि सरकार को मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया. अब इसी फैसले के विरोध में मणिपुर में हिंसा हो रही है. हाईकोर्ट के फैसले का राज्य का जनजातीय वर्ग विरोध कर रहा है. जनजातीय संगठनों का कहना है, 'मैतेई समुदाय को अगर जनजातीय वर्ग में शामिल कर लिया जाता है तो वह उनकी जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे.' विरोध में एक और तर्क दिया जाता है कि जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों में मैतेई का दबदबा है.


दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वाली मैरीकॉम के राज्य मणिपुर की हिंसा को लेकर अभी सियासत बयानों तक सीमित है. कांग्रेस के राजीव गांधी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र से राज्य में सामान्य स्थिति भाल करने का आग्रह किया .सवाल ये है की राज्य में जब बजरंगबली सरकार में बैठे हैं तब यहां हिलना कैसे हुई ? सवाल ये भी है की क्या राज्य सरकार का सूचना तंत्र इतना  कमजोर है कि उसे इस असंतोष की भनक तक नहीं लगी ? सरकार नींद से तब जाएगी ,जब की हालात बेकाबू हो गए .


मणिपुर को जलने से बचना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इसे देश की 'ऑर्किड बास्केट' भी कहा जाता है। यहाँ ऑर्किड पुष्प की 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। समुद्र तल से लगभग 5 हजार  फीट की ऊँचाई पर स्थित शिरोइ पहाड़ियों में एक विशेष प्रकार का पुष्प शिरोइ लिली पाया जाता है। शिरोइ लिली का यह फूल पूरे विश्व में केवल मणिपुर में ही पैदा होता है। इस अनोखे और दुर्लभ पुष्प की खोज फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड नामक एक अंग्रेज ने 1946 में की थी। यह खास लिली केवल मानसून के महीने में पैदा होता है। इसकी विशेषता यह है कि इसे सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इसमे सात रंग दिखाई देते हैं।


कुल 16  जिलों वाले मणिपुर का इतिहास  ईसवी युग के प्रारम्भ होता है . यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है. उसने इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में 120 वर्षों (33-154 ई ) तक शासन किया. उसके बाद अनेक राजाओं ने मणिपुर पर शासन किया. आगे जाकर मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, खागेम्बा ने 1597, चराइरोंबा ने 1698, गरीबनिवाज ने 1714, भाग्यचन्द्र (जयसिंह) ने 1763, गम्भीर सिंह ने 1825 को शासन किया .इन जैसे महावीर महाराजाओं ने शासन कर मणिपुर की सीमाओं की रक्षा की.


मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सदी के आरम्भ तक बनी रही. उसके बाद सात वर्ष (1819 से 1825 तक) बर्मी लोगों ने यहां पर कब्जा करके शासन किया. 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध (अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध ) हुआ जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाउना ब्रजबासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की। इस प्रकार 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और 1947 में शेष देश के साथ स्वतंत्र हुआ। ऐसे मणिपुर को सेना कि हवाले करने कि बजाय बजरंगबली कि हवाले किया जाये तो शायद वहां शांति हो जाए !


राकेश अचल   

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