खेती करने के लिए किसानों में आत्मविश्वास बहुत जरूरी है- कुलपति

स्वतंत्र प्रभात 
 
मिल्कीपुर, अयोध्या।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय द्वारा मसाला एवं सगंध पौध की प्राकृतिक खेती एवं प्रसंस्करण विषय पर दो दिवसीय जिला स्तरीय सेमिनार के आयोजन का शुभारंभ हुआ।
 मिशन एकीकृत औद्यानिक विकास योजना, सुपारी एवं मसाला विकास निदेशालय, कोषिकोड द्वारा वित्त पोषित सेमिनार का उद्घाटन कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने किया। सेमिनार में अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर एवं बाराबंकी से 100 से अधिक किसानों ने हिस्सा लिया। 
 सेमिनार को संबोधित करते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने कहा कि खेती करने के लिए किसानों में आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। किसान मसाले एवं सगंध की खेती को प्राकृतिक तरीके से करें। प्राकृतिक खेती करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है और उत्तपन्न पैदावार उच्च गुणवत्ता की होती है। उन्होंने सगंध की कम फसलों पर चिंता जताते हुए किसानों से अपील किया कि वे सगंध फसलों की खेती पर अधिक ध्यान दें। लेमनग्रास के पौधों को खेत की मेड़ के चारों तरफ लगाएं। उन्होंने कहा कि खाली पड़ी जमीनों पर किसान मसाले की खेती कर उसका सदउपयोग करें। खस की खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित किया।  विशिष्ट अतिथि सीमैप के व्यापार विकास विभाग के विभागाध्यक्ष आर.के श्रीवास्तव ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथोल मिंट उत्पादक व निर्यातक देश है। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में मेंथो की खेती होती है जिसमें उत्तर प्रदेश का हिस्सा 90-95 फीसद उत्पादन अकेले यूपी का है। 
उन्होंने कहा कि सीमैप व विवि से लेमनग्रास लेकर किसान खेत के किनारे लगाएं। इससे किसानों को आर्थिक मुनाफा अधिक होगा। वानिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. संजय पाठक ने आर्गेनिक पद्धति से खेती करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आर्गेनिक पद्धति से खेती होगी तो भूमि स्वस्थ रहेगी और स्वस्थ पैदावार होगा। 
 इस दौरान पुस्तक का विमोचन किया गया। एनबीआरआई  के प्रधान वैज्ञानिक डा डी.के सिंह व डा. प्रियंका सिंह ने भी किसानों के समक्ष अपने विचारों को रखा। कार्यक्रम से पूर्व दूर-दराज से पहुंचे किसानों ने बुके भेंटकर सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का आयोजन अधिष्ठाता डा. संजय पाठक के संयोजन में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अन्वेषक एवं आयोजक सचिव डा. राम सुमन मिश्रा रहे। संचालन डा. श्यामा परवीन ने किया।

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