स्वतंत्र प्रभात
प्रयागराज मनुष्य को कभी सब कुछ पाने के बाद अभिमान नहीं करना चाहिए और स्वाभिमान को झुकने नहीं देना चाहिए। स्वाभिमान और अभिमान में बड़ा अंतर होता है। अभिमान पतन का कारण होता है स्वाभिमान जीने का साधन होता है।
यह बात। देवनह री गांव में आयोजित भागवत सप्ताह में व्यासपीठ से धर्मेंद्र कुमार शास्त्री ने कही।
शास्त्री जी ने उदाहरण दिया की हम माता पिता के साथ रहते हैं यह स्वाभिमान है ।लेकिन माता पिता हमारे साथ रहते हैं यह कह ना अभिमान है ।इसलिए अभिमान और स्वाभिमान केइस बारीक अंतर को समझ कर के ही व्यक्ति को समाज में
अच्छी तरह व्यवहार करना चाहिए ।शास्त्री जी ने कहा की गोपियों को भी अभिमान हो गया कि कन्हैया तो हमारे पीछे ही नाचता है यह छोड़ कर कहा जा सकते हैं। उपदेश लंबा-लंबा भले देते है। यह गोपियों को भ्रम था और जो कृष्ण उनके प्रेम में
वशीभूत होकर अपने तन मन से उनसे प्रेम करता था उनके इतने अभिमान के कारण अंतर्ध्यान हो गया गोपियों को यह आभास हुआ तो बहुत रोई बहुत पश्चाताप किया लेकिन फिर उनके हाथ नहीं आए ।और वृंदावन चले गए कहने का अर्थ यह है
कि कोई भी वस्त्र धन दौलत मित्र शुभचिंतक जिसे आप को मिलने की आशा नहीं थी अगर मिल गया है अभिमान के कारण से उसे गवाना नहीं चाहिए गोपियों का दर्द और दवा दोनों श्याम ही थे।
आचार्य शास्त्री जी ने कहा कि भगवान कृष्ण को जो भी प्रेम से पुकारा मन से उनका ध्यान किया वह दौड़े-दौड़े उसके पास चले जाते हैं लेकिन जिसने अभिमान किया उसका अभिमान भी उन्होंने ठिकाने लगा कर के ही द्वारकाधीश गए ।
रुकमणी मन क्रम वचन तीनों से कृष्ण का वरण कर लिया था और शादी के तय होने के बावजूद शादी से पहले भगवान के पास चली गई। इसलिए मनुष्य को कभी भी भक्ति में अभिमान नहीं करना चाहिए और स्वाभिमान को गिरने नहीं देना चाहिए ।
शास्त्री जी मुख्य जजमान हरिप्रसाद शुक्ला और उनके परिवारी जन को भागवत कथा सुना रहे हैं। इस अवसर पर क्षेत्र के आसपास के गांव के अनेक संभ्रांत लोग भी सुनने आए जिनका स्वागत शुक्ल परिवार के सदस्यों ने किया। कथा का आज अंतिम दिन है।