
शक्ति के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता माता का हुआ पूजन-अर्चन ।
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है स्कंदमाता-विनय । ए •के • फारूखी (रिपोर्टर ) ज्ञानपुर,भदोही । नवरात्र के समय में पूरा जनपद भक्तिमय हो गया है। देवी मंदिरों व अपने घरों में भक्तजनों के द्वारा माता रानी की पूजा व आरती बड़े आस्था के साथ की जा रही है। कलश स्थापन जहां किया गया है वहाँ की
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है स्कंदमाता-विनय ।
ए •के • फारूखी (रिपोर्टर )
ज्ञानपुर,भदोही ।
नवरात्र के समय में पूरा जनपद भक्तिमय हो गया है। देवी मंदिरों व अपने घरों में भक्तजनों के द्वारा माता रानी की पूजा व आरती बड़े आस्था के साथ की जा रही है। कलश स्थापन जहां किया गया है वहाँ की बात ही निराली है। विभिन्न प्रकार के देवी से सम्बंधित अनुष्ठान भी हो रहे है, ऐसा दिखाई दे रहा है। बुधवार को शक्ति के पाँचवे स्वरुप स्कंदमाता की पूजा हुई।
इन्हें स्कंदमाता क्यों कहा जाता है इस सम्बन्ध में बताया जाता है कि भगवान स्कंद की माता होने के कारण देवी को स्कंदमाता कहा जाता है। शिवकांत दुबे ने बताया कि सच्चे मन से मां की पूजा करने से मां अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें मोेक्ष प्रदान करती हैं। माता के पूजन से व्यक्ति को संतान प्राप्त होती है। मां स्कंदमाता भगवान स्कंद को गोद में लिए हुए हैं।
मां का ये स्वरूप दर्शाता है कि वात्सल्य की प्रतिमूर्ति मां स्कंदमाता अपने भक्तों को अपने बच्चे के समान समझती है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान स्कंद की पूजा भी स्वत: हो जाती है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। माता दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं।
बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। उन्होंने ने बताया कि कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।
माता को कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। देवी स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा इनकी मनोहर छवि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होती है। सच्चे मन से मां की पूजा करने से व्यक्ति को दुःखों से मुक्ति मिलकर मोक्ष अौर सुख-शांति की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में ही मां स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद स्कंदमाता का जो मन्त्र है उस मंत्र का जाप करने से भक्त पर मां का कृपा सदैव बनी रहती है।
जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना करता है मां उसकी गोद हमेशा भरी रखती हैं। देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकडे हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकडा हुआ है।
माँ का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें पद्मासना की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है । यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है।
एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। ऐसा माना जाता है कि देवी स्कंदमाता के कारण ही माँ -बेटे के संबंधो की शुरुआत हुई।
देवी स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है । स्कंदमाता अगर प्रसन्न हो जाये तो बुरी शक्तियाँ भक्तो का कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं। देवी की इस पूजा से असंभव काम भी संभव हो जाता है । देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है।
यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं।
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