दशहरा मेला नजदीक आते ही शुरु की गई मेला भूमि की खोज
स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो उन्नाव। मौरावां कस्बे का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक दशहरा मेला जैसे ही नजदीक आता है वैसे ही मेले में जो की तालुकेदारों द्वारा दी गई जमीन को खोजने का कार्य शुरू किया जाता है जिसमें एसडीएम की मौजूदगी में जमीन की नाप शुरू की गई।विवरण के अनुसार मौरावां दशहरा मेला जोकि तालुकेदारों द्वारा
स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो उन्नाव। मौरावां कस्बे का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक दशहरा मेला जैसे ही नजदीक आता है वैसे ही मेले में जो की तालुकेदारों द्वारा दी गई जमीन को खोजने का कार्य शुरू किया जाता है जिसमें एसडीएम की मौजूदगी में जमीन की नाप शुरू की गई।विवरण के अनुसार मौरावां दशहरा मेला जोकि तालुकेदारों द्वारा लगवाया गया था जिसमें लगभग 93 बीघा जमीन मेला ट्रस्ट के नाम से लगी हुई है इसमें अध्यक्ष जिला अधिकारी उन्नाव है ट्रस्ट द्वारा लगभग 15 बीघा जमीन 100 बेड के अस्पताल को दान में दी जा चुकी है
वही सूत्रों से पता चला कि कुछ 13 बीघा जमीन पर कब्रिस्तान भी बने हुए हैं बाकी की शेष जमीन को खोजने के लिए कुंवर विवके सेठ ने जिला प्रशासन द्वारा एसडीएम पुरवा एवं थाना प्रभारी मौरावां, लेखपाल मौरावां ने मौके पर पहुंचकर नाप शुरू की नाप के दौरान मेले के अगल-बगल बने घर जोकि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व से लोग रह रहे हैं उनके बीच भय बना दिखाई दे रहा था वहीं कस्बे के लोगों का मानना है कि जब यह मेला आता है तभी नपाई क्यों शुरू होती है और जो लोग अवैध रूप से मेले की जमीन पर काबिज है उनको मेला ट्रस्ट द्वारा आखिर पहले क्यों नहीं रोका गया
और यह बात साफ है कि जो मकान बने हुए हैं उनका घर वाला टैक्स नगर पंचायत द्वारा किस बेस पर जमा हो रहा है जब मेले की जमीन है तो नगर पंचायत में मकान कैसे दर्ज हुए यह एक सोचनीय विषय बना हुआ है अब देखना यह है कि जिला प्रशासन किस तरह से मकान खाली कराने के बाद मकान वाले लोगों को रहने के लिए कहता है और अगर खाली करवाता है तो जो लोग वहां पर रह रहे है उनको कैसी व्यवस्था सरकार की ओर से की जाती है वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जब हमारे बुजुर्ग यहां रहने के लिए
आए तो उसके एवज में हमसे जो जमीन ली गई वह कौन देगा, हम लोग किसी की जमीन पर कोई जबरदस्ती तो काबिज नहीं हुए हैं मुझे यहां पर बसाया गया था। जब इस विषय में नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि नवनीत शुक्ला ‘नीतू’ से बात की गई तो उन्होंने साफ कहा की हम कानून के साथ है अगर कानून मेला की जमीन कही निकलती है तो वह ले सकते हैं लेकिन किसी के साथ कोई अत्याचार करके किसी को बेदखल करे यह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और जहां तक मुझे जानकारी है तो मैं नहीं यहां के रहने
वाले लोगों में से पूछ लिया जाये की यह लोग कब मकान बनवाए थे लगभग तीन पीढ़ियों से यह लोग मकान बनाकर निवास कर रहे हैं आखिर यह मकान कैसे बने थे किसी ने रोका क्यों नहीं यह बात तो उतने समय के तालुकेदार या फिर जिनके मकान है उनके बूर्जुग ही बता सकते थे की यह मकान कैसे बने।
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