लावारिस लाशों के वारिश बने लाश वाले बाबा अब कोरोना से मरने वालों का कर रहे हैं अंतिम संस्कार

स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो रिपोर्ट-प्रमोद रौनियार पडरौना,कुशीनगर। संवाद सूत्र-उपेंद्र कुशवाहा कोरोना से फैली बीमारी का सबसे डरावना पक्ष मौत है। वह मौत जिसके बाद अपने अंतिम संस्कार करने को भी राजी नहीं होते। वह मौत जिसके बाद शव छूने की इजाजत तक नहीं। कई मामलों में तो आखिरी बार अपनों को मरने वाले की सूरत देखना

स्वतंत्र प्रभात

ब्यूरो रिपोर्ट-प्रमोद रौनियार

पडरौना,कुशीनगर।

संवाद सूत्र-उपेंद्र कुशवाहा

कोरोना से फैली बीमारी का सबसे डरावना पक्ष मौत है। वह मौत जिसके बाद अपने अंतिम संस्कार करने को भी राजी नहीं होते। वह मौत जिसके बाद शव छूने की इजाजत तक नहीं। कई मामलों में तो आखिरी बार अपनों को मरने वाले की सूरत देखना भी नसीब नहीं होता है। सोशल डिस्टेंसिंग की चीख-पुकार के बीच कोरोना वायरस ने दूरी इतनी बना दी है कि परिजन शवों के करीब भी जाना नहीं चाहते।

कुछ मामले तो ऐसे भी आए,जहां परिजन शवों का दाह संस्कार नहीं करना चाहते हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं,जो इन परायों को अपनों की तरह अलविदा कर रहे हैं। जो कोरोना संक्रमण के बीच शवों के करीब भी जा रहे हैं। उन्हें कंधा भी दे रहे हैं। परिजनों के साथ पर अग्नि भी दे रहे हैं। यहां तक कि कुछ तो अंतिम संस्कार का जिम्मा तक उठा रहे हैं। परिवार इनका भी है। घर पर छोटे बच्चे भी हैं। खतरा इन्हें भी है,लेकिन बावजूद इसके ये बेखौफ यह काम कर रहे हैं।

कुशीनगर जिले के पडरौना तहसील क्षेत्र के गांव सिसवा मठिया निवासी पशुपति नाथ मिश्र उर्फ लाश वाले बाबा कोरोना योद्धा की कहानी है।

वैसे तो पशुपति नाथ मिश्र लाश वाले बाबा कोरोना काल से पहले विभिन्न थाना क्षेत्रों में रेलवे ट्रैक व बडी नहर से मिलने वाली लावारिस शवों का पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार करते थे। पेशे से आटो रिक्शा चालक लाश वाले बाबा विगत कई वर्षों से जिला अस्पताल पर इसी मामले में ड्यूटी दे रहे हैं।

सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक यहीं रहते हैं। वे कहते हैं कि,‘लावारिस शवों को मैं खुद अग्नि देता हूं। अब कोरोना संक्रमित शव भी आ रहे हैं,इन्हें भी अग्नि दे रहा हूं।’लाश वाले बाबा पिछले 8 सालों से कुशीनगर में सेवाएं दे रहे हैं। जबकि लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का खर्च पुलिस उठाती हैं।

लाश वाले बाबा अपने साथ मृतक के परिजनों के सहयोग से पीपीई किट पहनकर करते हैं काम

एक शव को जलाने में 1700 से 1800 रुपए का खर्चा आता है। इसमें ढाई क्विंटल लकड़ी,30 कंडे और दो संटी लगती हैं। पोस्टमार्टम हाउस पर शव को लाने व यहां से लेकर श्मशान घाट तक ले जाने में मृतक के परिजन खर्च उठाने काम करते हैं।

अस्पताल से ऑटो पर आने जाने वाले वाले मरीजों से मिले पैसे पर चलाता हैं परिवार का खर्च

वैसे तो लाश वाले बाबा हर दिन जिला अस्पताल पे ही रहते हैं, रात का एक टाइम इसी अस्पताल पर गुजरात हैं। कोरोना काल के बाद से इनका पूरा समय इसी अस्पताल पर ही बीत रहा है। हालाकी लाश वाले बाबा को स्वास्थ विभाग ने अपनी ओर से पीपीई किट दी गई है। इसे पहनकर पूरी सुरक्षा के साथ सेवा कार्य में जुटे रहते हैं। जबकि अब घरवाले तो बाहर निकलने से भी मना करते हैं,वो कहते हैं कि नहीं निकलूंगा तो परिवार का पालन कैसे कर पाऊंगा

सुबह से शाम तक जिला अस्पताल पर ही रहते हैं लाश वाले बाबा

पशुपति मिश्र उर्फ लाश वाले बाबा कहते हैं कि,बहुत से शव लावारिस होते हैं। वैसे इनका मोबाइल नंबर अस्पताल के इमरजेंसी मे लिखा हुआ मिल जाएगा। हादसे या अन्य मामले से जुड़े संदिग्ध परिस्थितियों में मिले लावारिस शव आने पर पुलिस इसी लाश वाले बाबा को सूचना देते हैं। एसे में वो सरकारी एम्बुलेंस या अपने आटो से शव बुलवा लेते हैं। फिर इन शव का अंतिम संस्कार होता है। हालांकि अब तक जितने भी कोरोना से मौत हो चुकी उन सभी का शव का इनके द्वारा ही अंतिम संस्कार किया गया है।

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