
इसलिये नाग हो गए इतने विषैले, दो टुकड़ो मे हुई जीभ ।
कहां से आया सांप के अंदर इतना विष? उमेश सिंह (ब्यूरो चीफ ) सांपों को हमारे देश में दैवीय जीव के रूप में पूजा जाता है, वहीं सांपों को लेकर अलग-अलग प्रकार की धार्मिक मान्यताएं हैं. माना जाता है कि सर्प की उत्पत्ति शिवजी के अंश से हुई थी, इसलिए भोलेबाबा को समर्पित श्रावण मास
कहां से आया सांप के अंदर इतना विष?
उमेश सिंह (ब्यूरो चीफ )
सांपों को हमारे देश में दैवीय जीव के रूप में पूजा जाता है, वहीं सांपों को लेकर अलग-अलग प्रकार की धार्मिक मान्यताएं हैं. माना जाता है कि सर्प की उत्पत्ति शिवजी के अंश से हुई थी, इसलिए भोलेबाबा को समर्पित श्रावण मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है
सांप को एक ओर जहां नागदेवता के रूप में पूजा जाता है वहीं सांप का विष हम सभी को डराता भी है. सांप अगर किसी को काट ले तो पूरे शरीर में विष फैल जाता है और व्यक्ति की मौत हो जाती है. क्या आप जानते हैं कि सांप के अंदर इतना विष कहां से आया? इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है. चलिए आपको बताते हैं सांप और उसके विष से जुड़ी ये खास बातें.
पाताल लोक के स्वामी
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं में सांप को पाताल लोक और नाग लोग का स्वामी माना जाता है. सांप के विषैले होने के पीछे यह मान्यता है कि समुद्र मंथन से जब हलाहल विष निकला तो सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया.
भगवान शिव जब हथेली से विष को पी रहे थे तो उसकी कुछ बूंदें वहीं पर गिर रही थीं. जिन्हें वहां रेंग रहे सांप, बिच्छू और अन्य कीड़ों ने पी लिया और इस कारण वे विषैले हो गए.
कब होता है सांपों का जन्म
भविष्य पुराण में सांपों के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसके अनुसार, ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में सांपों के बीच प्रेमालाप होता है और इस समय ही ये मैथुन क्रिया करते हैं और वर्षा ऋतु के 4 महीनों में सर्पिणी गर्भधारण करती है.
सर्पिणी कार्तिक मास में अंडे देती है और इनकी संख्या 250 तक होती है. माना जाता है कि कुछ अंडों को सर्पिणी खुद ही खा जाती है वरना पृथ्वी पर सांप ही सांप नजर आने लगेंगे.
आखिर क्यों होते सांप की जीभ के दो टुकड़े?
महर्षि कश्यप को सांपों का जनक कहा जाता है. उनकी 13 पत्नियों में से एक का नाम कद्रू था और धरती के सभी सांपों को कद्रू की ही संतान माना जाता है. कश्यप की ही दूसरी पत्नी का नाम विनता था और एक बार दोनों किसी बात को लेकर शर्त हार गईं.
तो विनता को कद्रू की दासी बनना पड़ गया. विनता के पुत्र गरुड़ को यह बात अच्छी नहीं लगी. अपनी मां को मुक्ति दिलाने के लिए कद्रू से विनती की. गरुड़ ने कहा कि वह अपनी मां को मुक्त कराने के बदले कोई भी कीमत देने को तैयार हैं.
कद्रू और उसके पुत्रों ने रखी यह शर्त
कद्रू के पुत्रों ने गरुड़ से स्वर्ग से अमृत लाने को कहा. गरुड़ ने शर्त को स्वीकार करते हुए स्वर्ग से अमृत लाकर कद्रू के पुत्रों के समक्ष कुशा नामक घास पर रख दिया. कुशा के तिनकों को बहुत ही धारदार घास माना जाता है. अमृत को पीने से पहले कद्रू के पुत्र स्नान करने चले गए और इतने में इंद्र देवता धरती पर आए और अमृत के इस कलश का स्वर्ग वापस ले गए.
अमर होने के लालच में कद्रू के पुत्रों को लगा कि अमृत का कुछ हिस्सा तो घास पर रह गया होगा. यह सोचकर वे घास को चाटने लगे. ऐसा करते ही कुश की धार से उनके जीभ कटकर दो हिस्सों में बंट गई. तभी ये यह माना जाता है कि सांप की जीभ के दो टुकड़े हो गए /
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