परदेस में भूखे प्यासे रहे, नहीं दिखी मानवता /

परदेस में भूखे प्यासे रहे, नहीं दिखी मानवता /

परदेस में भूखे प्यासे रहे, नहीं दिखी मानवता / गैरों जैसा हुआ व्यवहार, मजबूरन नौ दिन पैदल चलकर घर लौटे सरस राजपूत( रिपोर्टर ) भदोही । दूसरे राज्यों से सैकड़ों किमी. नंगे पांव चलकर आने वाले श्रमिकों का दर्द रुला रहा है। हजारों किलोमीटर मजदूरों के साथ पैदल चल रही महिलाएं, बच्चों को देखकर आंसू

परदेस में भूखे प्यासे रहे, नहीं दिखी मानवता /

  • गैरों जैसा हुआ व्यवहार, मजबूरन नौ दिन पैदल चलकर घर लौटे

सरस राजपूत( रिपोर्टर )

भदोही ।

दूसरे राज्यों से सैकड़ों किमी. नंगे पांव चलकर आने वाले श्रमिकों का दर्द रुला रहा है। हजारों किलोमीटर मजदूरों के साथ पैदल चल रही महिलाएं, बच्चों को देखकर आंसू भर आते हैं। ऐसा लगता है ईश्वर ऐसा दिन किसी गरीब के जीवन मे न दे। कोरोना महामारी से बचाव को लागू किया लॉकडाउन परदेश में रोजी रोटी के लिए गए लोगों को अपने-पराए का पाठ सिखा गया। भूख और अकेलेपन के साथ घर लौटने की चिंता ने उन्हें सैकड़ों ही नहीं, हजारों किमी. पैदल यात्रा को मजबूर कर दिया।

इस दौरान उन्हें क्या-क्या झेलना पड़ा इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब वो दोबारा अपना घर व गांव छोड़कर परदेश जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। ज्यादातर का कहना है कि जहां अपने नहीं वहां अब जाना नहीं। मालूम हो कि अकेले भदोही क्षेत्र में ही परदेश से कई सैकडा लोग लॉकडाउन के दौरान अपनी रोजी रोटी छोड़कर वापस लौटे हैं। परदेश से लॉकडाउन के दौरान संघर्ष कर लौटे क्षेत्रवासियों के मन को टटोला तो उन्होने आप बीती बताई।

विकास खंड कपसेठी के गांव कालीका बारा निवासी प्रकाश उर्फ बाबू भैया पिछले कई सालो से महाराष्ट्र के भयंदर में रहकर स्टील के बर्तनों में पॉलिश का काम करते थे। बताया कि लॉकडाउन के समय जब पैसे खत्म हो गए तो वहां लोग मदद करने के बजाय घर लौट जाने की सलाह देने लगे। मजबूरन नौ दिन पैदल चलकर यहां पहुंचे हैं। अब यहां क्वारन्टीन सेंटर में हैं। दस साल वहां रहने के बावजूद वहां के लोगों का व्यवहार देखकर अब जाने का मन नहीं है।

अब यही मेहनत मजदूरी करके जिंदगी पार कर लूंगा, लेकिन अब परदेश नहीं जाऊंगा। इसी गांव निवासी सुनील का कहना है कि कभी कभी लगता था कि घर पहुंचकर अपनों से मिल भी पाएंगे या नहीं। बेरोजगारी में जीना मुश्किल है फिर भी अब इतनी दूर काम करने नहीं जाएंगे। यहीं रहकर कुछ करेंगे। क्योंकि वहां पर अपना कोई नज़र नही आता है।

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