अपने विनाश और बर्बादी की पटकथा लिखता खुद कंगाल पाकिस्तान।
स्वतंत्रता के पश्चात ही पाकिस्तान अपनी गलत नीतियों, गलत आर्थिक नियोजन और भारत के विरोध की चालों के कारण आज जर्जर हालत में दक्षिण एशिया के सर्वाधिक कंगाल एवं गरीब देश की श्रेणी में खड़ा हो गया है।
पाकिस्तान अभिनयमेंयह अपने अस्तित्व के सबसे गहरे संकट से गुजर रहा है। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से वह एक ऐसी अव्यवस्था में डूब चुका है, जहाँ से निकलने के लिए अब केवल आत्ममंथन और दिशा परिवर्तन की आवश्यकता है। कभी इस्लामी एकता और सामरिक शक्ति का दंभ भरने वाला यह राष्ट्र अब अपनी ही गलतियों का शिकार बन गया है। स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान की राजनीति में विकास नहीं, बल्कि विरोध और वैमनस्य की भावना का वर्चस्व रहा है।
इमरान सरकार के पतन के बाद जनता को उम्मीद थी कि शाहबाज शरीफ कुछ सुधार करेंगे, पर यह सरकार तो और अधिक असमर्थ और दिशाहीन साबित हुई। पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में अब केवल कुछ अरब डॉलर शेष हैं, जिससे सरकार को रोजमर्रा का खर्च चलाने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे हाथ फैलाने पड़ रहे हैं।
कराची में बलूच आतंकवादियों द्वारा किए गए बम विस्फोट में चीनी नागरिकों की मौत के बाद पाकिस्तान का सबसे विश्वसनीय सहयोगी देश- चीन भी उससे दूरी बना चुका है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की कई परियोजनाएँ ठप हो गई हैं, और आर्थिक सहायता तत्काल प्रभाव से रोक दी गई है। चीन के बाद सऊदी अरब, तुर्की और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी पाकिस्तान की मदद को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। इस आर्थिक अलगाव ने पाकिस्तान को कूटनीतिक स्तर पर भी हाशिए पर पहुँचा दिया है।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और यूरोपीय देशों के साथ उसके संबंध पहले से ही शिथिल थे। भारत के प्रति उसकी कटुता ने उसे दक्षिण एशिया में भी अकेला कर दिया है।इसी बीच पाकिस्तान प्राकृतिक आपदाओं के भीषण दौर से गुजर रहा है। बिजली उत्पादन ठप है, जलस्रोत सूख चुके हैं, और विभिन्न प्रांतों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया है। बिजली की कमी के कारण पानी की आपूर्ति बाधित है, जिससे सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान जैसे प्रमुख कृषि क्षेत्र भयंकर सूखे और भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
फसलों का विनाश इतना व्यापक है कि अब खेत केवल राख और धूल में बदल चुके हैं। सिंध के मुख्यमंत्री के सलाहकार मंजूर वासन ने स्वीकार किया है कि पानी की कमी और भीषण गर्मी से कपास की पूरी फसल नष्ट हो चुकी है। चावल, गेहूं, गन्ना और आम जैसी प्रमुख फसलें भी झुलसकर बर्बाद हो गई हैं। इस विनाश ने पाकिस्तान की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है। किसान आसमान की ओर देखते हैं, लेकिन वहाँ से राहत नहीं बरसती—सिर्फ धूप और निराशा गिरती है।
मीडिया और जनता दोनों ही अब सरकार से पूरी तरह निराश हैं। शाहबाज शरीफ का मंत्रिमंडल अनुभवहीन और विभाजित है, और जनता के मुद्दों से कट चुका है। नवाज शरीफ की सलाहें अप्रासंगिक साबित हो रही हैं, जबकि शाहबाज शरीफ का प्रशासनिक कौशल इस संकट की गंभीरता के सामने फीका पड़ गया है। राजनीतिक अस्थिरता, आंतरिक आतंकवाद और बढ़ती बेरोजगारी ने आम नागरिक को निराशा के गर्त में धकेल दिया है। पाकिस्तान की मीडिया जो कभी सुधार की उम्मीद कर रही थी, अब सरकार की बखिया उधेड़ने में लगी है। जनता के बीच यह धारणा मजबूत हो चुकी है कि उनके नेता केवल भारत-विरोध के सहारे सत्ता में बने रहना चाहते हैं, न कि जनता की भलाई के लिए शासन चला रहे हैं।
पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति आत्मविनाश की पराकाष्ठा है। एक ओर वह अंतरराष्ट्रीय सहायता के लिए गिड़गिड़ा रहा है, तो दूसरी ओर अपने ही पड़ोसी भारत के खिलाफ अनर्गल बयानबाज़ी जारी रखे हुए है। शाहबाज शरीफ का यह कहना कि “वह अपनी कमीज बेचकर भी जनता को रोटी देंगे”, अब व्यंग्य बड़ा प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि देश के पास रोटी देने की क्षमता तो दूर, बिजली और पानी तक की उपलब्धता नहीं रह गई है।
यदि पाकिस्तान को वास्तव में अपनी स्थिति सुधारनी है, तो उसके पास एक ही विकल्प बचा है कि वह अपनी पुरानी दुश्मनी और कट्टर मानसिकता को त्यागकर भारत से व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करे। भारत अतीत में भी पाकिस्तान को कपास, गेहूं और चावल जैसी वस्तुएँ रियायती दरों पर उपलब्ध कराता रहा है। भारत ने श्रीलंका जैसे देशों की आर्थिक मदद कर उनके पुनर्निर्माण में सहयोग दिया है। पाकिस्तान चाहे तो उसी मार्ग पर चलकर आर्थिक स्थिरता प्राप्त कर सकता है। पर इसके लिए उसे अपनी नीति, दृष्टि और व्यवहार में आमूल परिवर्तन करना होगा।
पाकिस्तान को अब यह समझना चाहिए कि उसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी जनता, उसके खेत और उसके संसाधन हैं न कि उसकी बंदूकें। जब तक वह अपने लोगों को भोजन, रोजगार और शिक्षा नहीं देगा, तब तक उसकी कोई भी सरकार टिक नहीं सकती। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, चीन या सऊदी अरब की सहायता भी तब तक निष्फल रहेगी, जब तक पाकिस्तान स्वयं आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाएगा।पाकिस्तान की दुर्दशा किसी बाहरी शक्ति की साज़िश नहीं, बल्कि उसके आत्मघाती निर्णयों का परिणाम है।
धर्म और कट्टरता के नाम पर नीतियाँ बनाना, आतंकवाद को प्रश्रय देना और भारत के साथ निरंतर वैमनस्य बनाए रखना—यही उसकी सबसे बड़ी भूलें रही हैं। यदि अब भी पाकिस्तान अपने अंधकार से निकलने का साहस दिखाए और लोकतांत्रिक तथा विकासोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाए, तो पाँच से छह वर्षों में वह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में लौट सकता है। लेकिन यदि उसने वही पुरानी राह चुनी, तो उसके राष्ट्र के अस्तित्व पर संकट स्थायी हो जाएगा। आज पाकिस्तान के सामने इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती है क्या वह अपने अतीत की गलतियों से सीखकर सुधार का मार्ग अपनाएगा, या फिर स्वयं अपने अंत की पटकथा लिखेगा? यही प्रश्न आने वाले वर्षों में उसकी नियति तय करेगा।
संजीव ठाकुर,स्तंभकार, चिंतक, लेखक

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