असम का विधान, नारी सम्मान का नया संविधान

असम का विधान, नारी सम्मान का नया संविधान

[असम से उठी वह लहरजो समाज की दिशा बदल देगी]

[परंपरा बनाम समानता: असम का ‘पॉलिगैमी बिल 2025]

एक छोटा-सा राज्यएक विराट फैसला। असम की मिट्टी में सदियों से जड़ जमाए बहुविवाह की प्रथा अब कानून की मजबूत दीवार से टकराने वाली है रविवार की उस शांत शामजब गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी लहरों को समेटे चुपचाप बह रही थीउसी क्षण मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा की कैबिनेट ने एक ऐसा बिल पारित किया जिसने पूरे पूर्वोत्तर को स्तब्ध कर दिया

‘असम प्रोहिबिशन ऑफ पॉलिगैमी बिल 2025’ 25 नवंबर को विधानसभा में पेश होने वाला यह कानून  केवल एक व्यक्ति को एक से अधिक जीवित पत्नी रखने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएगाबल्कि उल्लंघन करने वालों को सात वर्ष तक की कठोर कैद और पीड़ित महिलाओं को न्यायोचित मुआवजे का मजबूत अधिकार भी देगा। यह कोई साधारण विधेयक नहींयह एक सांस्कृतिक क्रांति का उद्घोष है—जहाँ एक ओर महिलाओं की गरिमा का प्रश्न हैतो दूसरी ओर सदियों पुरानी परंपराओं का अटूट किला।

सबसे पहले समझना जरूरी है कि बहुविवाह असम में कोई दुर्लभ प्रथा नहीं रही। खासकर कुछ समुदायों में इसे सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता रहा है। जमीन-जायदाद बिखरने से बचाने के नाम परवंश-वृद्धि के नाम परया बस इसलिए कि ‘हमारे पूर्वजों की यही रीति थी’- बहाने अनगिनत थे। किंतु इन बहानों के पीछे छिपी थीं हजारों महिलाओं की कुचली हुई आकांक्षाएँटूटे हुए सपने दूसरीतीसरीचौथी पत्नी बनकर घर में प्रवेश करने वाली स्त्री  कानूनी अधिकार रखती थी सम्मान। बच्चे जन्म लेते थेपर उनका भविष्य हमेशा अनिश्चय के अंधेरे में लटका रहता था। संपत्ति का हकवह तो पहली पत्नी के बच्चों को भी दुर्लभ था। सरकार ने ठीक यहीं प्रहार किया है-उस जड़ परजो सदियों से महिलाओं को रौंदती आई है।

इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार Read More इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार

कानून का मसौदा स्पष्ट है- कोई भी व्यक्तिकिसी भी धर्म या समुदाय का हो, एक जीवित पत्नी रहते दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा। अपवाद सिर्फ उन मामलों में है जहाँ पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो या तलाक हो चुका हो। उल्लंघन पर सात वर्ष की सजा और जुर्माना। पर सबसे क्रांतिकारी है मुआवजे का प्रावधान। अगर कोई व्यक्ति छिपाकर दूसरा विवाह करता है, तो पीड़ित पत्नी को न्यायालय के माध्यम से मुआवजा मिलेगा। यह प्रावधान इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि अब तक ऐसी महिलाएँ  पुलिस के पास जाती थीं अदालत शर्मसामाजिक दबाव और आर्थिक मजबूरी उन्हें मौन रहने को बाध्य करती थी। अब कानून उन्हें सशक्त आवाज दे रहा है।

विरोध अपेक्षित था। बिल की खबर जैसे ही बाहर आईकुछ संगठनों ने इसे ‘सांस्कृतिक आक्रमण’ करार दिया। उनका दावा है कि यह विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा हैक्योंकि इस्लाम में चार विवाह की अनुमति है। किंतु सरकार का उत्तर अडिग है- यह बिल किसी धर्म-विशेष के विरुद्ध नहीं। हिंदूईसाईआदिवासी-सब पर समान रूप से लागू होगा। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा, “हम किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं कर रहेहम केवल महिलाओं को उनका जन्मसिद्ध अधिकार लौटा रहे हैं। वास्तव में यह यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में असम का पहला दृढ़ कदम है। केरलगोवा जैसे राज्य पहले से इस पथ पर हैं। असम अब गर्व से उस सूची में शामिल हो रहा है।

दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता इसे युगांतकारी बता रहे हैं। गुवाहाटी की एक वकील कहती हैं, “मैंने सैकड़ों महिलाएँ देखीं जो दूसरी-तीसरी पत्नी बनकर नौकरानी से बदतर जीवन जीती हैं। उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पाते क्योंकि पिता उनका नाम तक नहीं लिखाता। यह बिल उन्हें न्याय की किरण देगा।उनके साथ असंख्य महिला संगठन खड़े हैं। पर प्रश्न यह भी है- क्या कानून बनते ही प्रथा समाप्त हो जाएगीग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें आज भी निकाह कराती हैंबिना किसी रजिस्ट्रेशन के। सरकार ने सभी निकाहों का रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण अनिवार्य किया है। किंतु क्या काजी मानेंगेक्या पंचायतें स्वीकार करेंगीयही असली परीक्षा होगी।

एक और दिलचस्प पहलू है- राजनीतिक। असम में सत्तारूढ़ दल अपनी छवि को संतुलित करने का प्रयास कर रहा है। कुछ कड़े कानूनों के बाद अब महिलाओं के अधिकारों की जोरदार वकालत करके उन शहरी मध्यम वर्गबुद्धिजीवी और अल्पसंख्यक समुदायों को लुभाना चाहता हैजो उसे अब तक सांप्रदायिक मानते आए हैं। विपक्ष इसे महज चुनावी स्टंट और वोट की राजनीति कहकर खारिज कर रहा हैलेकिन सच्चाई यह है कि उनकी अपनी सरकारों ने कभी इस मुद्दे पर इतना साहसिक कदम उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई। 2026 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह बिल एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।

अंततः प्रश्न वही है—क्या कानून समाज बदल सकता हैबहुविवाह रातोंरात समाप्त नहीं होगा। किंतु जब पहली महिला अदालत से मुआवजा लेकर लौटेगीजब पहला पुरुष सात वर्ष की सजा भुगतेगातभी समाज को अहसास होगा कि युग बदला है। असम ने एक साहसी शुरुआत की है। अब बाकी राज्यों की बारी है। ब्रह्मपुत्र की लहरें शांत हैंपर गहराई में एक नया तूफान उठ रहा है—महिलाओं की मुक्ति का तूफान। 25 नवंबर को जब विधानसभा में यह बिल पेश होगापूरा देश देखेगा कि परंपरा और न्याय की इस टक्कर में विजय किसकी होती है। अभी तो हवा में एक ही नारा गूंज रहा है—एक पुरुषएक विवाह। बस यही काफी है एक नईउज्ज्वल सुबह के लिए।

 प्रो. आरके जैन अरिजीत,

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel