नगर निगम की मिलीभगत से जालसाजी करके करोड़ों का मकान हड़पने की साजिश इफआइआर दर्ज।
38 वर्ष से मालिकाना हक का मुकदमा जिला न्यायालय में विचाराधीन है किंतु फैसला नहीं ।
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स्वतंत्र प्रभात।ब्यूरो प्रयागराज।
प्रयागराज का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सिविल लाइंस में करोड़ों का आलीशान बंगला कानूनी गांव पेज में फस करके न्यायालय फैसले की राह जोह रहा है ।लेकिन 35 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक फैसला नहीं हुआ। इस करोड़ के मकान में सरकारी कार्यालय के लिए किराए पर दिया गया है उसका भी किराया नहीं मिल रहा है।
कूट रचित दस्तावेज और जालसाजी करके नगर निगम से उसमें से दो हिस्सेदारों ने करोड़ों के मकान का मालिकाना हक अपने नाम करने में जरुर सफल हो गए लेकिन जब इसका पर्दाफाश हुआ तो इसमें पुलिस ने ए फ आई आर दर्ज कर लिया और विवेचना कर रही है। प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने वाली मृदुल सरकार द्वारा गए दिए गए विवरण के अनुसार सिविल लाइंस के पास ताशकंद मार्ग प्रयागराज में स्थित 41 / 43 आलीशान मकान वीके सरकार का था। पारिवारिक बंटवारे में उनके पिता ने इस मकान को तीन भागों में बांट दिया था जिसमें एक भाग जो पश्चिमी हिस्से में है उसमें वे स्वयं और अपनी पत्नी राजरानी के हिस्से में रखे थे । दो हिस्सा अपने लड़के के नाम कर दिए थे।

उनके मरने के बाद दो हिस्से में उनका लड़का और उनके पोते अशोक श्रीवास्तव और आलोक श्रीवास्तव रहते थे और पश्चिम भाग में उनकी पत्नी राजरानी रहती थी जिन्होंने 27/4/82 को एक वसीयत लिखा जिसमें अपने रहने वाले पोर्शन कोअपनी लड़की शोभा रानी सरकार को वसीयत कर दिया था शेष पूर्वी और दक्षिणी भाग के मकान में उन्होंने अपने लड़के का नाम कर दिया था जिसमें उनके लड़के अशोक कुमार और अमित कुमार रहते थे लेकिन 24 मार्च 88 को राजरानी का जब निधन हो गया तो 27/4/1982को लिखी गई वसीयत को छुपाते हुए अशोक कुमार श्रीवास्तव और अमित श्रीवास्तव में पूरे मकान पर नगर निगम से मालिकाना हक लिखवा लिए ।
यही नहीं इस को लेकर जिला जज के यहां 1988 से ही मलकाना हक का विवाद शोभा रानी ने दायर किया था जो अभी तक फैसला नहीं हुआ और ना ही विपक्षी उसमें रुचि रखते हैं। लेकिन नगर निगम में ना इस मामले में कोई मुकदमा विचाराधीन है यह बताया गया और ना ही वसीयतनामे का जिक्र किया गया ।बल्कि नगर निगम से फर्जी नोटिस जारी करवाया गया और उनके फर्जी हस्ताक्षर करके नोटिस रिसीव कराया जबकि कोई आपत्ति दाखिल न करने पर अशोक कुमार आलोक कुमार ने जालसाजी करके सच को छुपाते हुए अपने नाम करवा लिया ।
राजरानी की मृत्यु के बाद जब उनकी लड़कियां तीनों शोभा रानी सरकार 1990 में जिला न्यायालय में प्रावेट वाद दाखिल किया जो आज तक विचाराधीन है तो पता चला कि उनके मकान पर तो अशोक कुमार आलोक कुमार का नाम दर्ज हो गया है ।

उसके बाद उन्होंने नगर निगम में इसका विरोध दर्ज कराया और सारे कागजात अपनी मां का वसीयतनामा रजिस्टर्ड तथा जिला न्यायालय में प्राइवेट वार्ड का मुकदमा दिखाए जिसकी काफी छानबीन के बाद पुलिस ने एक 1/1 1 /25 को अशोक कुमार श्रीवास्तव और आलोक कुमार श्रीवास्तव के विरुद्ध जलसाजी और कूट रचित दस्तावेज प्रस्तुत करके मकान हड़पने की नीयत वसीयतनामा का प्रमाणिक दस्तावेज को छुपाते हुए जालसाजी करके मकान हड़पने की नीयत से पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है।
दर्ज कराया।
मुकदमे को दर्ज करने वाली मृदुल सरकार और इनको दोनों बहने लखनऊ में रहती हैं और न्यायालय में न्यायिक अधिकारी होने के बावजूद तथा भारत सरकार में एक अच्छे पद पर नौकरी करने के बावजूद अपना मकान नगर निगम की कृपा से नहीं बचा पा रही हैं। उनका कहना है कि नगर निगम में ऐसा अंधेर कर दी कि वह लौंग के जाली हस्ताक्षर बनाकर मकान अपने नाम कर लिया गया और नगर निगम ने यह भी जांच करने की जमहत नहीं उठाई। यह केवल अंधेर नगरी में हो सकता है।
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