बस्ती सरकारी जमीनों पर दबंगों का कब्जा, गरीब बेघर -अवैध कब्जे: नवागत जिलाधिकारी के लिए बड़ी चुनौती..

सरकारी जमीनों पर दबंगों का कब्जा बरकरार, गरीब अब भी बेघर - बस्ती में कार्रवाई की उम्मीद नई जिलाधिकारी से लेकिन राजेश कर्मियों द्वारा पैसा लेकर रिपोर्ट लगाया जा रहा है

बस्ती सरकारी जमीनों पर दबंगों का कब्जा, गरीब बेघर -अवैध कब्जे: नवागत जिलाधिकारी के लिए बड़ी चुनौती..

बस्ती- बस्ती जिले में राजस्व गर्मियों द्वारा दबंग की मिली भगत से गरीबों और सरकारी जमीनों पर हो रहे हैं कब्जे पर प्रशासन रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहा है जिले में दबंग घुमा पिया सक्रिय हैं सरकारी और ग्रामसभा की जमीनों पर दबंगों का कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर, ऐसे हजारों गरीब परिवार हैं जो भूमि के अभाव में आज भी प्रधानमंत्री आवास जैसी सरकारी योजनाओं से वंचित हैं। प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक संरक्षण के चलते ये कब्जे अब स्थायी स्वरूप ले चुके हैं, जबकि अदालतों और सरकार दोनों ने स्पष्ट आदेश दिए हैं कि सार्वजनिक उपयोग की जमीनों पर से अवैध कब्जा हर हाल में हटाया जाए।
 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि ग्रामसभा और सार्वजनिक उपयोग की जमीनों से कब्जा 90 दिनों के भीतर हटाया जाए। अदालत ने यह भी कहा है कि जो अधिकारी इस कार्य में लापरवाही बरतेंगे, उन पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद, जमीनी हकीकत यह है कि नियम सिर्फ गरीबों पर लागू होते दिखते हैं, जबकि सत्तारूढ़ दलों से जुड़े प्रभावशाली लोग और उनके करीबी सरकारी जमीनों पर अब भी कब्जा जमाए बैठे हैं।
 
बस्ती जिले में भी लगभग हर ग्रामसभा, नगर पंचायत और नगर पालिका क्षेत्र में करोड़ों की सरकारी भूमि पर कब्जे की स्थिति बनी हुई है। कई स्थानों पर यह देखा गया है कि प्रधान, नगर पंचायत अध्यक्ष, नगर पालिका सदस्य या राजनीतिक रसूखदार अपने घरों या खेतों के आसपास सरकारी जमीन पर कब्जा कर अस्थायी निर्माण कर लेते हैं। वहीं प्रशासन अक्सर इन मामलों में मौन रहता है।
 
जब अंद्रा वामसी जिलाधिकारी बस्ती के रूप में तैनात थे, तब एक समय लगा था कि जिले से अवैध कब्जे हटाने की कार्रवाई शुरू होगी, लेकिन वह उम्मीद अधूरी रह गई। अब जब कृतिका ज्योत्सना ने जिले की कमान संभाली है, तो लोगों में फिर से उम्मीद जगी है। अपने पिछले कार्यकाल में कृतिका ज्योत्सना राजस्व विभाग की सक्रिय और सख्त अधिकारी रही हैं, जिनके निर्देशों से कई जिलों में जमीन विवादों का समाधान हुआ था।
 
बस्ती के आम नागरिक अब चाह रहे हैं कि नए जिलाधिकारी जिले की सरकारी जमीनों पर हो रहे कब्जों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करें, ताकि गरीबों को उनका हक मिल सके और सरकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक पात्रों तक पहुंचे। बस्ती में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे: प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती, समाधान की राह कठिन लेकिन जरूरीजिले में सरकारी और गरीबों के जमीन पर दबंगों द्वारा किया गया कब्जा प्रशासन के लापरवाही रवैया से गरीब जनता को इंसाफ नहीं मिल पा रहा  कब्जा ग्रामसभा की जमीनों पर कब्जा कोई नया मसला नहीं है, लेकिन बस्ती जैसे जनपदों में यह एक पुरानी बीमारी की तरह जड़ें जमा चुका है। प्रशासनिक सख्ती के अभाव, स्थानीय राजनीति के हस्तक्षेप और व्यवस्था की चुप्पी ने इस समस्या को इतना गहरा कर दिया है कि अब इसे केवल “राजस्व विवाद” कहना उचित नहीं रहेगा — यह अब सामाजिक असमानता और प्रशासनिक निष्क्रियता का दर्पण बन चुका है।
 
सत्ता, संरक्षण और कब्जे की राजनीति
बस्ती जिले में हालात यह हैं कि ग्रामसभा की जमीनों से लेकर बंजर और चारागाह भूमि तक पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है। कई स्थानों पर तो खुद जनप्रतिनिधियों, नगर पंचायत अध्यक्षों, नगर पालिका सदस्यों के चहेते और प्रभावशाली लोगों ने सरकारी जमीनों पर स्थायी निर्माण कर रखा है। प्रशासनिक ढिलाई और राजनीतिक संरक्षण के कारण यह कब्जे वर्षों से बने हुए हैं।
 
वहीं, गरीब परिवार जिन्हें सरकारी आवास योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए था, वे बिना भूमि के ही रह गए हैं। यह विडंबना है कि सरकारी योजनाएं गरीबों को घर देने के लिए हैं, लेकिन जमीन का मालिक दबंग बन बैठा है।अदालत के आदेश, लेकिन ज़मीन पर असर कम इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया कि ग्रामसभा और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को 90 दिनों के भीतर हटाया जाए, और लापरवाह अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की जाए। केंद्र और राज्य सरकारें भी बार-बार ऐसे निर्देश जारी करती रही हैं कि कोई भी सरकारी या सार्वजनिक भूमि कब्जे में न रहे।
 
लेकिन सवाल यह है कि जब आदेश इतने स्पष्ट हैं, तो अमल क्यों नहीं हो रहा? जवाब सीधा है — जब तक राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं होगी, तब तक प्रशासनिक सख्ती टिक नहीं पाएगी।अब जब बस्ती जिले की कमान आईएएस कृतिका ज्योत्सना के हाथों में आई है, तो लोगों में उम्मीद की एक नई लहर दिख रही है। कृतिका ज्योत्सना का पूर्व कार्यकाल उनकी सख्त और संवेदनशील कार्यशैली के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई जिलों में राजस्व विभाग की गड़बड़ियों को ठीक किया और जमीन से जुड़ी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की।
 
जनपद के लोग मानते हैं कि यदि जिलाधिकारी अपने अधिकारिक दायरे में रहकर ईमानदारी से कार्रवाई करें, तो बस्ती की सरकारी जमीनों को कब्जामुक्त करना संभव है।समाधान की राहसरकारी जमीनों को कब्जामुक्त करने के लिए केवल बुलडोज़र की कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। इसके लिए तीन स्तरों पर काम करने की जरूरत है —
 
राजस्व अभिलेखों की डिजिटाइजेशन और पारदर्शिता: हर ग्रामसभा की जमीन का ऑनलाइन रिकॉर्ड सार्वजनिक हो, ताकि
कोई भी नागरिक कब्जे की शिकायत कर सके। राजनीतिक जवाबदेही: जो भी जनप्रतिनिधि या अधिकारी कब्जे में सहयोगी पाए जाएं, उनके विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। स्थायी निगरानी तंत्र: जिला प्रशासन द्वारा एक “भूमि संरक्षण समिति” गठित की जाए, जो हर माह रिपोर्ट दे कि किस ग्रामसभा की भूमि पर क्या स्थिति है। बस्ती के लोग अब एक ऐसे प्रशासन की उम्मीद कर रहे हैं जो दबंगों के पक्ष में नहीं, बल्कि गरीबों के हक में खड़ा हो। क्योंकि सरकारी जमीनें किसी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि जनता की धरोहर हैं — और इनकी रक्षा करना प्रशासन की जिम्मेदारी भी है और नैतिक कर्तव्य भी।

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