भारत के बढ़ते कद के नेपथ्य में कुशल नेतृत्व, सामूहिक चेतना और प्रगतिशील विचारों का योगदान
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भारत आज विश्व पटल पर एक ऐसी शक्ति बनकर उभरा है जिसकी अनदेखी अब कोई भी राष्ट्र नहीं कर सकता। यह भारत का ऐतिहासिक पुनर्जागरण काल है जहां विकास, विज्ञान, तकनीक, कूटनीति और आत्मविश्वास एक साथ अपनी पराकाष्ठा पर हैं। मैं किसी भी राजनीतिक दल का हिमायती नहीं हूं, परंतु यह निर्विवाद सत्य है कि आज भारत की वैश्विक स्थिति पहले से कहीं अधिक सशक्त और प्रभावशाली बनी है। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री 76% लोकप्रियता के साथ विश्व नेताओं में शीर्ष पर हैं जबकि जो बाइडेन, शी जिन पिंग, पुतिन, ऋषि सुनक और जस्टिन ट्रूडो जैसे वैश्विक नेता उनसे काफी पीछे हैं। यह केवल किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि भारत की सामूहिक चेतना, प्रगतिशील नीतियों और विकासोन्मुख दृष्टि की जीत है। भारत ने पिछले वर्षों में डिजिटलाइजेशन के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व क्रांति की है, उसने उसे विश्व के अग्रणी देशों की पंक्ति में ला खड़ा किया है। डिजिटल इंडिया के रूप में आज भारत दुनिया के लिए एक आदर्श बन चुका है।
विश्व बैंक, आईएमएफ और संयुक्त राष्ट्र के कई रिपोर्ट्स में भारत की प्रगति को विकासशील देशों के लिए प्रेरणास्रोत बताया गया है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा था कि “किसी राष्ट्र की सच्ची शक्ति उसके मानव संसाधनों में निहित होती है,” और भारत ने इस कथन को साकार किया है। विशाल जनसंख्या, तीव्र औद्योगिकीकरण और तकनीकी नवाचारों ने भारत को एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति में बदल दिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों से जूझते हुए भी भारत ने नियोजन की नीति अपनाकर 1951 से अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति की। 2015 में नीति आयोग की स्थापना ने विकास को एक नई दिशा दी, जिससे भारत को वैश्विक मंच पर सशक्त पहचान मिली। 1991 के बाद के उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार से जोड़ दिया और उत्पादन, निर्यात व निवेश में असाधारण वृद्धि हुई।
भारतीय अर्थशास्त्री जगदीश भगवती के अनुसार, “भारत ने आर्थिक सुधारों से न केवल अपनी सीमाओं को खोला बल्कि संभावनाओं को भी जगाया।” यही कारण है कि भारत अब चीन का प्रबलतम आर्थिक प्रतिस्पर्धी बनकर उभरा है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दौड़ में अग्रणी है। भारत के तकनीकी विकास ने दुनिया को चकित किया है। सॉफ्टवेयर और आईटी के क्षेत्र में भारतीयों ने जो प्रभुत्व स्थापित किया है वह अमेरिका और यूरोप के लिए भी चुनौती बना है। विश्वप्रसिद्ध कंपनियों में भारतीय मूल के अधिकारी—इंदिरा नूई, सुंदर पिचाई, सत्य नडेला और अरविंद कृष्णा भारत की बौद्धिक क्षमता के जीवंत उदाहरण हैं।
औद्योगिक क्षेत्र में लक्ष्मी मित्तल, मुकेश अंबानी, रतन टाटा जैसे उद्योगपतियों ने भारत की आर्थिक पहचान को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिष्ठित किया है। टाटा समूह द्वारा कोरस स्टील और जगुआर-लैंडरोवर जैसी कंपनियों का अधिग्रहण यह दर्शाता है कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि उत्पादक राष्ट्र के रूप में उभर चुका है। 1974 में भारत द्वारा पोखरण में किया गया परमाणु परीक्षण, 1998 के शौर्यपूर्ण ‘ऑपरेशन शक्ति’ और 2008 में अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की वैज्ञानिक शक्ति अब विश्व पटल पर स्थापित हो चुकी है। नोबेल विजेता वेंकटरमन रामकृष्णन, अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन, लेखक सलमान रुश्दी और झुंपा लाहिड़ी जैसे भारतीय मूल के वैश्विक प्रतिभाशाली व्यक्ति भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक गहराई के प्रतिनिधि हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दृष्टि से भी भारत ने अद्भुत प्रगति की है। अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं तथा रणनीतिक साझेदारी ने भारत को एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में स्थापित किया है। 2018 में जब भारत के प्रधानमंत्री ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच का उद्घाटन किया, तो विश्व ने स्वीकार किया कि भारत अब ‘निर्णायक शक्ति’ की भूमिका में है। प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक सैमुअल हंटिंगटन ने कहा था कि “21वीं सदी का वास्तविक भू-राजनीतिक संतुलन एशिया में तय होगा,” और उस एशिया का नेतृत्व भारत के पास होता दिखाई दे रहा है। आज भारत की जीडीपी वृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक है, और उसकी जनसांख्यिकीय संरचना उसे दीर्घकालीन विकास की स्थिरता प्रदान करती है।
देश की युवा शक्ति, तकनीकी कौशल और नवाचार की भावना ने भारत को ‘न्यू इंडिया’ के स्वरूप में रूपांतरित कर दिया है। भारत का लोकतंत्र, जिसकी जड़ें गहरी हैं, आज पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श है। यही लोकतंत्र, यही वैचारिक स्वतंत्रता और यही प्रगतिशील सोच भारत की नई चमक का आधार है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत अब केवल दक्षिण एशिया का नेता नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर विचार, तकनीक और कूटनीति का सूत्रधार बन चुका है। निश्चय ही यह भारत का स्वर्णिम काल है, जब विश्व के कोने-कोने से गूंज रही है—“भारत अब भविष्य नहीं, वर्तमान का नेतृत्व कर रहा है।”
संजीव ठाकुर
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