गोण्डा–बहराइच राष्ट्रीय राजमार्ग पर तो हालात और भी गंभीर हैं - यहाँ लकड़ियों के अड्डे खुलेआम संचालित
जिले के सभी राजमार्गों पर लड़कियों के अवैध अड्डे सड़क सुरक्षा और पर्यावरण सहित दोनों को खतरा जिम्मेदार कौन ?
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गोंडा। राष्ट्रीय राजमार्ग पर मौत को दावत दे रहा है और विभाग मूकदर्शक बना हुआ है। हरे-भरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से क्षेत्र की हरियाली खतरे में पटी हुई है और राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे सुरक्षा और पर्यावरण दोनों पर संकट मडरा रहा है
कटरा वन रेंज के अंतर्गत ब्लॉक रूपईडीह के कई ग्राम पंचायतों में हरे-भरे वृक्षों पर लगातार आरा चल रहा है। जिन सड़कों के किनारे कभी घने पेड़ छाया करते थे, वहाँ अब सूनी ज़मीन और उड़ती धूल रह गई है। गोण्डा–बहराइच राष्ट्रीय राजमार्ग पर तो हालात और भी गंभीर हैं - यहाँ लकड़ियों के अड्डे खुलेआम संचालित हो रहे हैं, जहाँ से रोज़ाना ट्रक भर-भरकर लकड़ी अन्य ज़िलों में भेजी जा रही है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि रात के अंधेरे में पेड़ों की कटाई कर लकड़ी को ट्रकों में लादा जाता है और सुबह होते ही जंगल के टुकड़े शहरों में पहुंच जाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार शिकायतें करने के बावजूद वन विभाग और पुलिस की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सूत्रों के मुताबिक, इन अवैध लकड़ी अड्डों से प्रति माह “सुविधा शुल्क” के नाम पर रकम वसूली की जाती है, जो कथित रूप से कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंचती है। यही कारण है कि यह अवैध व्यापार वर्षों से निर्भय होकर फल-फूल रहा है।
पर्यावरणीय संकट और सुरक्षा खतरा
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे वृक्षों की कटाई से अब सड़क सुरक्षा पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। पेड़ों की अनुपस्थिति से सड़क किनारे छाया खत्म हो चुकी है, जिससे गर्मी के मौसम में तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है। वहीं, बरसात में कटे पेड़ों के स्थान पर मिट्टी का क्षरण और जलभराव दुर्घटनाओं को दावत दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पेड़ न केवल ऑक्सीजन का स्रोत हैं, बल्कि सड़क किनारे उनका होना वाहन चालकों को सुरक्षा और दिशा प्रदान करता है। पेड़ों के हटने से दृश्यता कम हो जाती है, जिससे हादसे की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
वन विभाग की चुप्पी पर सवाल
वन विभाग की भूमिका इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है। विभागीय अधिकारी निरीक्षण के नाम पर कागज़ों में खानापूर्ति कर रहे हैं, जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। अधिकारियों की यह उदासीनता न केवल प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के साथ विश्वासघात भी है।जनजागरण की जरूरत पर्यावरणविदों का कहना है कि जब तक आम जनता अपनी आवाज़ नहीं उठाएगी, तब तक हरियाली का यह ह्रास रुकने वाला नहीं। स्थानीय युवाओं और सामाजिक संगठनों को आगे आकर वृक्षों की सुरक्षा की मुहिम चलानी चाहिए। अब वक्त आ गया है कि वन विभाग, पुलिस प्रशासन और स्थानीय प्रतिनिधि इस अवैध कटान पर सख्त कार्रवाई करें। वरना वह दिन दूर नहीं जब यह क्षेत्र हरे पेड़ों की जगह केवल उजड़े ठूंठों और गर्म हवाओं के लिए पहचाना जाएगा।
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