शिक्षा का डिजिटलीकरण नहीं, मानवीकरण: सीबीएसई का नया मॉडल

शिक्षा का डिजिटलीकरण नहीं, मानवीकरण: सीबीएसई का नया मॉडल

[समझ की जीतभय की हार — यही है नई शिक्षा का आधार]

[बोर्ड परीक्षा नहींभविष्य की प्रयोगशाला — जहाँ सोच को मिले अंक]

सीबीएसई ने 2025-2026 सत्र से बोर्ड परीक्षाओं में एआई-सहायक डिजिटल मूल्यांकन प्रणाली लागू करने का क्रांतिकारी निर्णय लिया है। इस प्रणाली में एक छात्र की मामूली इकाई-त्रुटि अब शून्य अंक नहींबल्कि आंशिक अंक दिलाएगी। उदाहरण के लिएयदि कोई छात्र विज्ञान के प्रश्न में मानक वायुमंडलीय दबाव पर पानी का क्वथनांक 100 डिग्री सेल्सियस लिखता है लेकिन तापमान को फ़ारेनहाइट में बदल देता हैतो एआई तुरंत अवधारणा की सत्यता पहचान लेगा। वह शिक्षक को सही समझछोटी गलती का सुझाव देगा और अंतिम फैसला शिक्षक का रहेगा। यह तकनीक मानवीय न्याय को मजबूत करती हैउसे प्रतिस्थापित नहीं करती। यही वह ऐतिहासिक कदम है जो शिक्षा के लोकतंत्रीकरण को साकार करेगा। लाखों भारतीय छात्रों की मेहनत को अब सही मूल्य मिलेगाजहाँ समझ की जीत होगी और औपचारिकता की हार नहीं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा को रटंत से मुक्त कर समझकौशल और नवाचार पर आधारित बनाने का सपना दिखाया था। सीबीएसई ने इसे ठोस रोडमैप में बदल दिया है। नई प्रणाली का मूल मंत्र है—स्कैनएआई विश्लेषणमानव अनुमोदन। उत्तर-पुस्तिकाएँ अब कागज़ के बोझ से मुक्त होकर क्लाउड के सुरक्षित सर्वर पर एन्क्रिप्टेड रूप में संग्रहीत होंगी। प्रत्येक पृष्ठ उच्च-रिज़ॉल्यूशन में स्कैन होगा और अधिकृत मूल्यांकनकर्ता कहीं से भी—घरस्कूल या डिजिटल केंद्र से—इसे एक्सेस कर सकेंगे।

इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार Read More इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार

एआई तीन स्तरों पर काम करेगा। पहला स्तर हैंडराइटिंग की पहचान और डिजिटाइज़ेशन हैजिसमें टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट भी सटीक पढ़ी जाएगी। दूसरा स्तर उत्तर-कुंजी से स्वचालित तुलना और स्कोरिंग सुझाव हैजहाँ समान अवधारणा को पहचानकर आंशिक अंक का प्रस्ताव रखा जाएगा। तीसरा स्तर असंगतियों का फ्लैग हैजैसे इकाई त्रुटिवैकल्पिक शब्दावली या रचनात्मक दृष्टिकोण को चिह्नित करना। लेकिन संवेदनशीलतारचनात्मकता और संदर्भ जैसे मानवीय तत्वों का अंतिम अधिकार शिक्षक के पास रहेगा। तकनीक सहायक हैमालिक नहीं।

इस प्रणाली की सबसे बड़ी उपलब्धि समय की बचत और निष्पक्षता की गारंटी होगी। वर्तमान में एक उत्तर-पुस्तिका के मूल्यांकन में औसतन 12 से 15 मिनट लगते हैं। डिजिटल प्लस एआई मॉडल में यह समय 4  से 6 मिनट तक सिमट जाएगा। परिणामस्वरूपदसवीं और बारहवीं के परिणाम 45 दिनों के अंदर घोषित हो सकेंगेजबकि वर्तमान में यह 60 से 75 दिन लेता है। यह तेज़ी केवल सुविधा नहींबल्कि कॉलेज प्रवेश प्रक्रिया को सुचारु बनाएगी। साथ हीप्रत्येक मूल्यांकन का डिजिटल लॉग रहेगा। इसमें दर्ज होगा कि कौन से शिक्षक ने कब कितने अंक दिएएआई ने क्या सुझाव दिया और किन बिंदुओं पर असहमति थी। यह पारदर्शिता भ्रष्टाचार की जड़ें काटेगी। पुनर्मूल्यांकन की मांग आने पर पूरी प्रक्रिया 48 घंटे में दोहराई जा सकेगीबिना कागज़ी दस्तावेज़ों के इंतज़ार के। इससे छात्रों का विश्वास बढ़ेगाक्योंकि अब हर अंक का हिसाब स्पष्ट होगा।

सीबीएसई ने दो बार बोर्ड परीक्षा की व्यवस्था को भी इसी पारिस्थितिकी तंत्र में जोड़ा है। छात्र फरवरी और मई में परीक्षा दे सकेंगे और बेहतर स्कोर गिना जाएगा। यह नीति मानसिक स्वास्थ्य की वैज्ञानिक समझ पर आधारित है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की 2024 रिपोर्ट के अनुसारएकल उच्च-दांव परीक्षा से 68 प्रतिशत छात्रों में चिंता बढ़ती है। दो अवसर इस दबाव को 40 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। एक मौकासब ख़त्म की मानसिकता अब टूटेगी। असफलता सीखने का अवसर बनेगी। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन छात्रों के लिए वरदान है जो पारिवारिक दबावस्वास्थ्य समस्या या अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करते हैं। फरवरी में असफल छात्र मई में सुधार कर सकता हैबिना एक साल गँवाए। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और शिक्षा का दबाव कम होगा।

शैक्षिक सामग्री में भी क्रांति हो रही है। कक्षा छठी से कोडिंगएआईरोबोटिक्स और डेटा साइंस पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगे। एनसीईआरटी ने 2025 के लिए नई पाठ्यपुस्तकें जारी की हैंजिनमें 40 प्रतिशत सामग्री प्रोजेक्ट-आधारित है। उदाहरण के लिएगणित में पाइथागोरस प्रमेय याद करने की बजाय छात्र जीपीएस ऐप बनाकर त्रिभुज की दूरी मापेंगे। विज्ञान में प्रकाश का अपवर्तन को समझने के लिए वे लेज़र और मोबाइल ऐप से वर्चुअल प्रयोग करेंगे। यह परियोजना-आधारित शिक्षा मॉडल 21वीं सदी के चार स्तंभों—सहयोगआलोचनात्मक चिंतनसंचार और रचनात्मकता—को बढ़ावा देगा।

छात्र अब किताबी कीड़ा नहींबल्कि समस्या-समाधानकर्ता बनेंगे। वे वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से जुड़ेंगे और नवाचार की भाषा सीखेंगे। मूल्यांकन में कौशल-आधारित प्रश्नों का वज़न 50 प्रतिशत से अधिक होगा। एमसीक्यू अब केवल तथ्य नहींबल्कि परिदृश्य-आधारित होंगे। लिखित उत्तरों में भी निर्देश होंगे—विश्लेषण करो, “समाधान सुझाओ, “वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करो इससे रटंत विद्या की जगह समझ और अनुप्रयोग लेगा। छात्र सोचनेतर्क करने और रचनात्मक समाधान देने में सक्षम होंगे।

ग्रामीण भारत के लिए यह क्रांति पूरी तरह समावेशी है। सीबीएसई ने हर जिले में कम से कम एक डिजिटल मूल्यांकन केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई हैकुल 1000 केंद्र। ये केंद्र सौर ऊर्जा और ऑफ़लाइन मोड से लैस होंगेताकि बिजली या इंटरनेट की कमी बाधा न बने। शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय डिजिटल अकादमी शुरू हो रही हैजहाँ छह महीने का मुफ़्त प्रशिक्षण मिलेगा। पायलट प्रोजेक्ट दिल्लीबेंगलुरु और गुवाहाटी में सफल रहा। इसमें 92 प्रतिशत शिक्षकों ने कहा कि एआई ने उनका समय बचाया और 87 प्रतिशत छात्रों ने परीक्षा को कम डरावना पाया। इससे ग्रामीण छात्रों को भी शहरों के बराबर अवसर मिलेंगे

चुनौतियाँ हैंलेकिन समाधान भी मजबूत हैं। डेटा गोपनीयता सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी सर्वर भारत में होंगे और जीडीपीआर-स्तरीय एन्क्रिप्शन का उपयोग होगा। डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए डिजिटल इंडिया के तहत पाँच लाख स्कूलों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड पहुंचाया जा रहा है। शिक्षक प्रशिक्षण के लिए एनआईओएस और डीआईटीई के साथ साझेदारी की गई है। सबसे महत्वपूर्णएआई पूर्वाग्रह से बचाव। एल्गोरिदम को विविध डेटासेट पर प्रशिक्षित किया जा रहा हैजिसमें क्षेत्रीय भाषाएँ और विभिन्न हैंडराइटिंग शैलियाँ शामिल हैं। इससे ग्रामीण छात्र की टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट भी सटीक पढ़ी जाएगी। वैश्विक संदर्भ में भारत अब शिक्षा प्रौद्योगिकी के अग्रणी देशों की श्रेणी में शामिल हो रहा है। एस्टोनिया में 2018 से ई-एग्ज़ाम सिस्टम हैजहाँ 98 प्रतिशत परीक्षाएँ डिजिटल हैं। सिंगापुर का स्मार्ट नेशन मॉडल एआई से व्यक्तिगत शिक्षण पथ बनाता है। सीबीएसई का मॉडल इनसे प्रेरित हैलेकिन भारतीय संदर्भ में अनुकूलित—क्षेत्रीय भाषाओंविविध पाठ्यक्रम और बड़े पैमाने के लिए।

यह बदलाव केवल परीक्षा प्रणाली का नहींबल्कि राष्ट्रीय चरित्र का पुनर्निर्माण है। जब एक गाँव का बच्चा जानता है कि उसका उत्तर दिल्ली के शिक्षक द्वारा निष्पक्ष जांचा जाएगाजब वह असफल होने पर भी दूसरा मौका पाएगाजब वह कोड लिखकर रोबोट चला सकेगा—तब वह केवल नौकरी नहींबल्कि भविष्य का निर्माण करेगा। सीबीएसई का नया मॉडल यह संदेश देता है कि शिक्षा अब सज़ा नहींसशक्तिकरण है। यह वह भारत है जो 2047 के विकसित राष्ट्र का आधार बनेगा—जहाँ हर बच्चे की क्षमता को तकनीक निखारेगी और मानवीय स्पर्श उसे दिशा देगा। यह क्रांति नहींबल्कि विकास की स्वाभाविक गति है—और इसका समय अब आ गया है।

प्रो. आरके जैन अरिजीत,

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel